पपीता ऐसा फल है जिसे सभी जानते हैं. इसका पेड़ सीधा बढ़ता है. ऊपरी भाग पर बड़े बड़े पत्ते लगते हैं. इन्हीं पत्तों के बीच तने पर फल और फूल लगते हैं. पपीते में आम तौर से शाखें नहीं होतीं. कभी कभी पपीते के पेड़ में शाखें भी निकलती हैं और उनमें फल भी लगते हैं.
पपीते का तना कमज़ोर होता है. लगाने के एक वर्ष के भीतर ही इसमें फल आने लगते हैं. फल तने में चरों ओर लगते हैं. कुछ लोग इसे अरण्ड ख़रबूज़ा भी कहते हैं. क्योंकि इसके पत्ते अरण्ड से मिलते जुलते होते हैं.
अजीब बात है की पपीते के पौधे तीन तरह के होते हैं. एक नर पौधे जिसमें केवल फूल आते हैं और फल नहीं लगते. दुसरे वह जिनमे छोटे फल लगते हैं लेकिन ये मादा पौधे होते हैं. इनको पॉलेन न मिलने से फल बढ़ते नहीं हैं. या तो छोटे ही रहते हैं या सूखकर गिर जाते हैं. पपीते का तीसरे प्रकार का पौधा द्विलिंगी होता है. इनमें फल लगते हैं और बीज बनते हैं. बागों में यही पौधे लगाए जाते हैं.
पपीते के अंदर छोटे काले बीज होते हैं. ये बीज काली मिर्च के आकर के लेकिन कुछ लम्बे, अंडाकार होते हैं. काली मिर्च गोल होती है. काली मिर्च में पपीते के बीजों की मिलावट आसानी से बीजों के आकार से पहचानी जा सकती है. पपीते के गीले बीज चिपचिपे आवरण से ढके रहते हैं.
पपीता दूध वाला पेड़ है. इसका पत्ता तोड़ने पर या फल में खुरचने पर दूध निकलता है. ये दूध या लेटेक्स मीट को मुलायम करने और गलाने में उपयोगी है. इसी गुण के कारण पपीता पाचन करने में मददगार साबित होता है. पपीते और अदरक का चूरन एक प्रसिद्ध दवा है जो खाने के बाद खाने से बदहज़मी, खट्टे डकार, एसिडिटी और गैस बनने की समस्या से छुटकारा दिलाता है.
पपीते को चूरन के रूप में उपयोग करने के लिए कच्चे पपीते को पतले स्लाइस में काटकर सुखा लिया जाता है. फिर इसका पाउडर बनाकर चूरन में डाला जाता है. इसी प्रकार सुखी अदरक जिसे सोंठ कहते हैं, पाउडर बनाकर चूरन में डालते हैं. इसके साथ चूरन में डाली जाने वाले अन्य मसाले/दवाएं जैसे काला नमक, हरड़, सेंधा नमक, आदि डालकर चूरन बनाया जाता है.
पपीते का लेटेक्स दूध में डालने पर उसे फाड़ देता है. पनीर बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.
कच्चे पपीते की सब्ज़ी भी बनायीं जाती है. पपीता जिगर के लिए लाभकारी है. पका पपीता न सिर्फ पौष्टिक है बल्कि लिवर/जिगर के सेहत के लिए अच्छा है. ये जिगर की सूजन घटाता है. लेकिन पपीता स्वयं देर में पचता है. इसलिए जॉन्डिस के मरीज़ों को पका पपीता थोड़ी मात्रा में ही सेवन करना चाहिए. अधिक सेवन से अपच हो सकता है और मरीज़ को नुकसान पहुंच सकता है.
इसके दूध का प्रयोग सीधा खाने और लगाने में न करें. ये बहुत हानिकारक है. लगाने से स्किन पर एलर्जी हो सकती है. खाने में प्रयोग करने से जी मिचलाना, उलटी, डायरिया आदि की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.
पपीते का तना कमज़ोर होता है. लगाने के एक वर्ष के भीतर ही इसमें फल आने लगते हैं. फल तने में चरों ओर लगते हैं. कुछ लोग इसे अरण्ड ख़रबूज़ा भी कहते हैं. क्योंकि इसके पत्ते अरण्ड से मिलते जुलते होते हैं.
अजीब बात है की पपीते के पौधे तीन तरह के होते हैं. एक नर पौधे जिसमें केवल फूल आते हैं और फल नहीं लगते. दुसरे वह जिनमे छोटे फल लगते हैं लेकिन ये मादा पौधे होते हैं. इनको पॉलेन न मिलने से फल बढ़ते नहीं हैं. या तो छोटे ही रहते हैं या सूखकर गिर जाते हैं. पपीते का तीसरे प्रकार का पौधा द्विलिंगी होता है. इनमें फल लगते हैं और बीज बनते हैं. बागों में यही पौधे लगाए जाते हैं.
पपीते के अंदर छोटे काले बीज होते हैं. ये बीज काली मिर्च के आकर के लेकिन कुछ लम्बे, अंडाकार होते हैं. काली मिर्च गोल होती है. काली मिर्च में पपीते के बीजों की मिलावट आसानी से बीजों के आकार से पहचानी जा सकती है. पपीते के गीले बीज चिपचिपे आवरण से ढके रहते हैं.
पपीता दूध वाला पेड़ है. इसका पत्ता तोड़ने पर या फल में खुरचने पर दूध निकलता है. ये दूध या लेटेक्स मीट को मुलायम करने और गलाने में उपयोगी है. इसी गुण के कारण पपीता पाचन करने में मददगार साबित होता है. पपीते और अदरक का चूरन एक प्रसिद्ध दवा है जो खाने के बाद खाने से बदहज़मी, खट्टे डकार, एसिडिटी और गैस बनने की समस्या से छुटकारा दिलाता है.
पपीते को चूरन के रूप में उपयोग करने के लिए कच्चे पपीते को पतले स्लाइस में काटकर सुखा लिया जाता है. फिर इसका पाउडर बनाकर चूरन में डाला जाता है. इसी प्रकार सुखी अदरक जिसे सोंठ कहते हैं, पाउडर बनाकर चूरन में डालते हैं. इसके साथ चूरन में डाली जाने वाले अन्य मसाले/दवाएं जैसे काला नमक, हरड़, सेंधा नमक, आदि डालकर चूरन बनाया जाता है.
पपीते का लेटेक्स दूध में डालने पर उसे फाड़ देता है. पनीर बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.
कच्चे पपीते की सब्ज़ी भी बनायीं जाती है. पपीता जिगर के लिए लाभकारी है. पका पपीता न सिर्फ पौष्टिक है बल्कि लिवर/जिगर के सेहत के लिए अच्छा है. ये जिगर की सूजन घटाता है. लेकिन पपीता स्वयं देर में पचता है. इसलिए जॉन्डिस के मरीज़ों को पका पपीता थोड़ी मात्रा में ही सेवन करना चाहिए. अधिक सेवन से अपच हो सकता है और मरीज़ को नुकसान पहुंच सकता है.
इसके दूध का प्रयोग सीधा खाने और लगाने में न करें. ये बहुत हानिकारक है. लगाने से स्किन पर एलर्जी हो सकती है. खाने में प्रयोग करने से जी मिचलाना, उलटी, डायरिया आदि की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.