बरगद ऐसा वृक्ष है जो कभी नहीं मरता. ये एक अजर अमर वृक्ष है. इसे अगर प्रकृति की शक्तियां और मानव नष्ट न करे तो ये हज़ारों साल तक बाकी रह सकता है. बरगद और अमरत्व साथ साथ चलते हैं. कहा जा सकता है कि नेचर में अगर किसी वृक्ष ने अमरत्व प्राप्त किया है तो वह बरगद है. बेलों में अमरत्व प्राप्त करने वाली गुर्च की बेल है. इसीलिए गुर्च का एक नाम अमृता भी है.
इसके अलावा भी ऐसे पौधे और पेड़ हैं जिनमें अमरत्व के के गुण पाए जाते हैं. लेकिन इन दो पौधों को लोग आम तौर से जानते और पहचानते हैं. इन पौधों में जीवन दायिनी और पुनरुत्पादन शक्ति अन्य पौधों के मुकाबले तेज़ होती है.
गुर्च और बरगद दोनों में हवाई जड़ें निकलती हैं जो पौधे को नया जीवन और सहारा देती हैं. बरगद लेटेक्स या दूध वाला पेड़ है जबकि गुर्च में दूध नहीं होता. गुर्च में एक चिपचिपा पदार्थ होता है. यही दूध बरगद को और चिपचिपा पदार्थ गुर्च को सूखने से बचाता है. पानी न मिलने पर भी ये पौधे ज़िन्दा रहते हैं.
बरगद के पेड़ से हवाई जड़ें निकलकर लटकती हैं. इन्हीं जड़ों को बरगद की जटाएं कहते हैं. जैसे बरगद कोई आदमी हो और ये जटाएं उसके बाल हों. इन्हीं जड़ों को बरगद की दाढ़ी भी कहते हैं.
ये जड़ें या जटाएं नीचे की ओर आकर ज़मीन में चली जाती हैं. अजीब बात ये है की जो भाग ज़मीन के अंदर चला जाता है वह जड़ का काम करता है और ऊपरी भाग तना बन जाता है. यही तना मोटा हो जाता है. ये शाखाओं को सहारा भी देता है. बिलकुल इसी तरह जैसे बिल्डिंग में पिलर होते हैं. मूल वृक्ष नष्ट भी हो जाए तो ये बहुत से पिलर पेड़ को बचाए रखते हैं. इस प्रकार ये पेड़ घना और मोटा होकर जड़ों और पिलर के सहारे फैलता जाता है और एक बड़ा एरिया कवर कर लेता है.
बरगद के पेड़ को बोहड़, और बढ़ या बड़ का पेड़ भी कहते हैं. इसके फल पकने पर लाल हो जाते हैं. इनका आकार गूलर के फलों के आकार से छोटा होता है. ये फल चिड़ियां और बन्दर चाव से खाते हैं. ये परिंदे बरगद के बीजों को दूर तक बिखरने में मदद करते हैं. बरगद के पेड़ इन्हीं बीजों से जमते हैं.
बरगद एक दूध वाला वृक्ष है. इसका दूध, फल, जटा सब दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. लेकिन इनका प्रयोग आम तौर पर नहीं किया जाता. अजीब बात ये है कि दवाई के रूप में इसका प्रयोग कम ही किया गया है.
कहते हैं की बरगद के पेड़ के नीचे बैठने और सोने से शरीर दुबला हो जाता है. बरगद की सूखी जटा अगर पानी में भिगो दी जाए और इन जटाओं का पानी, जब भी पानी पीना हो, प्रयोग करें तो भी शरीर दुबला हो जाता है. लेकिन किसी भी दवा के प्रयोग से पहले चिकित्सक की सलाह ज़रूरी है.
बरगद की जटाओं को तेल में पकाकर, छानकर ये तेल बनाकर सर में लगाने से बाल बढ़ते हैं ऐसा विश्वास प्रचलन में है. लेकिन कुछ लोगों के इसके प्रयोग से गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है और सर में जितने बाल थे वह भी झड़ गये. इसलिए किसी भी दवा/ जड़ी बूटी/पेड़ पौधे का बिना किसी हकीम या वैद्य की सलाह के प्रयोग नुकसानदायक साबित हो सकता है. पुरुषों की समस्याओं में बरगद का दूध बताशे में भरकर खाने को बताया जाता है. कई लोगों को इसके इस्तेमाल से पेट में दर्द और डिसेंट्री की शिकायत हो गयी है. एक व्यक्ति ने दांत के दर्द के लिए बरगद का दूध खोखले दांत में भर दिया. मसूढ़े सूज गए और ऑपरेशन कराना पड़ा.
पौधों का दूध अपने गुणों में सबसे ज़्यादा असरदार होता है. चाहे वह बरगद का दूध हो, आक का दूध हो या थूहड़ का. इसलिए पौधों के दूध का प्रयोग बहुत सावधानी और जानकारी चाहता है.
ऐसे प्रयोगों से सावधान रहें क्योंकि जीवन अनमोल है.
इसके अलावा भी ऐसे पौधे और पेड़ हैं जिनमें अमरत्व के के गुण पाए जाते हैं. लेकिन इन दो पौधों को लोग आम तौर से जानते और पहचानते हैं. इन पौधों में जीवन दायिनी और पुनरुत्पादन शक्ति अन्य पौधों के मुकाबले तेज़ होती है.
गुर्च और बरगद दोनों में हवाई जड़ें निकलती हैं जो पौधे को नया जीवन और सहारा देती हैं. बरगद लेटेक्स या दूध वाला पेड़ है जबकि गुर्च में दूध नहीं होता. गुर्च में एक चिपचिपा पदार्थ होता है. यही दूध बरगद को और चिपचिपा पदार्थ गुर्च को सूखने से बचाता है. पानी न मिलने पर भी ये पौधे ज़िन्दा रहते हैं.
बरगद के पेड़ से हवाई जड़ें निकलकर लटकती हैं. इन्हीं जड़ों को बरगद की जटाएं कहते हैं. जैसे बरगद कोई आदमी हो और ये जटाएं उसके बाल हों. इन्हीं जड़ों को बरगद की दाढ़ी भी कहते हैं.
ये जड़ें या जटाएं नीचे की ओर आकर ज़मीन में चली जाती हैं. अजीब बात ये है की जो भाग ज़मीन के अंदर चला जाता है वह जड़ का काम करता है और ऊपरी भाग तना बन जाता है. यही तना मोटा हो जाता है. ये शाखाओं को सहारा भी देता है. बिलकुल इसी तरह जैसे बिल्डिंग में पिलर होते हैं. मूल वृक्ष नष्ट भी हो जाए तो ये बहुत से पिलर पेड़ को बचाए रखते हैं. इस प्रकार ये पेड़ घना और मोटा होकर जड़ों और पिलर के सहारे फैलता जाता है और एक बड़ा एरिया कवर कर लेता है.
बरगद के पेड़ को बोहड़, और बढ़ या बड़ का पेड़ भी कहते हैं. इसके फल पकने पर लाल हो जाते हैं. इनका आकार गूलर के फलों के आकार से छोटा होता है. ये फल चिड़ियां और बन्दर चाव से खाते हैं. ये परिंदे बरगद के बीजों को दूर तक बिखरने में मदद करते हैं. बरगद के पेड़ इन्हीं बीजों से जमते हैं.
बरगद एक दूध वाला वृक्ष है. इसका दूध, फल, जटा सब दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. लेकिन इनका प्रयोग आम तौर पर नहीं किया जाता. अजीब बात ये है कि दवाई के रूप में इसका प्रयोग कम ही किया गया है.
कहते हैं की बरगद के पेड़ के नीचे बैठने और सोने से शरीर दुबला हो जाता है. बरगद की सूखी जटा अगर पानी में भिगो दी जाए और इन जटाओं का पानी, जब भी पानी पीना हो, प्रयोग करें तो भी शरीर दुबला हो जाता है. लेकिन किसी भी दवा के प्रयोग से पहले चिकित्सक की सलाह ज़रूरी है.
बरगद की जटाओं को तेल में पकाकर, छानकर ये तेल बनाकर सर में लगाने से बाल बढ़ते हैं ऐसा विश्वास प्रचलन में है. लेकिन कुछ लोगों के इसके प्रयोग से गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है और सर में जितने बाल थे वह भी झड़ गये. इसलिए किसी भी दवा/ जड़ी बूटी/पेड़ पौधे का बिना किसी हकीम या वैद्य की सलाह के प्रयोग नुकसानदायक साबित हो सकता है. पुरुषों की समस्याओं में बरगद का दूध बताशे में भरकर खाने को बताया जाता है. कई लोगों को इसके इस्तेमाल से पेट में दर्द और डिसेंट्री की शिकायत हो गयी है. एक व्यक्ति ने दांत के दर्द के लिए बरगद का दूध खोखले दांत में भर दिया. मसूढ़े सूज गए और ऑपरेशन कराना पड़ा.
पौधों का दूध अपने गुणों में सबसे ज़्यादा असरदार होता है. चाहे वह बरगद का दूध हो, आक का दूध हो या थूहड़ का. इसलिए पौधों के दूध का प्रयोग बहुत सावधानी और जानकारी चाहता है.
ऐसे प्रयोगों से सावधान रहें क्योंकि जीवन अनमोल है.