पेड़ पौधे दवा में इस्तेमाल करने से पहले उनके बारे में जानना बहुत ज़रूरी है. आम तौर से पेड़ पौधों की पांच चीज़ें दवा के रूप में इस्तेमाल होती हैं. ये भाग हैं - पत्तियां, फूल/कलियां , फल/बीज, छाल और जड़. इन्हें ही पंचांग कहा जाता है.
कुछ जड़ी बूटियां फूल, पत्ते और शाखों के साथ पूरी इस्तेमाल की जाती हैं. जड़ हटा कर पूरा पौधा दवा के काम में लाया जाता है. जड़ी बूटी के उखाड़ने, पेड़ों से दवा के अवयव इकठ्ठा करने का एक उपयुक्त समय होता है. इस उपयुक्त समय में लिया गया पौधा या जड़ी बूटी अच्छी तरह से काम करता है.
कुछ जड़ी बूटियां पूरी तरह से परिपक्व हो जाने पर या सूखने पर उखाड़ी जाती हैं, कुछ फूल निकलने पर जब उनमें बीज न बना हो. कुछ फल और बीज आने पर उखड़ी जाती हैं. जिन पौधों की जड़ काम में आती है वे लगभग एक साल पुराने हों. कुछ पौधों की जेड दो साल के पौधे से ली जाती हैं.
फूल और पत्तियां एक साल तक ठीक फायदा देती हैं. मजबूरी में इन्हे दो साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन ये ख़राब न हुई हों, इनमे. फफूंदी न लगी हो और कीड़ों ने न खाया हो. बीज भी एक वर्ष से दो वर्ष तक ठीक रहते हैं उसके बाद उनकी शक्ति कमज़ोर पड़ जाती है.
पेड़ों की छाल ज़्यादा दिनों तक रखने से काम की नहीं रहती.
जड़ें बहुत दिनों तक ठीक रहती है. लेकिन ये देख लेना चाहिए की कीड़ा लगकर ये ख़राब न हो गयी हों.
जड़ी बूटियों के इस्तेमाल में एक और समस्या आती है. इन्हें हरे/कच्चे रूप में इस्तेमाल किया जाए या सूखे रूप में. कुछ जड़ी बूटियां हरी इस्तेमाल की जाती हैं. जैसे लिवर की सूजन के लिए कासनी, कसौंदी और मकोय, हरी अवस्था में इनके पत्ते इस्तेमाल किये जाते हैं. सांठ भी हरे रूप में इस्तेमाल होती हैं. गुलाब के फूल सूखी अवस्था में इस्तेमाल किये जाते हैं. लेकिन गुलकंद बनाते समय गुलाब के ताज़े फूल ही प्रयोग किये जाते हैं. सूखे फूलों का गुलकंद उतना फायदा नहीं करता.
इस्तेमाल से पहले कुछ जड़ी बूटियों को शुद्ध किया जाता है जिससे उनके विषैले प्रभाव से बचा जाए. मुलेठी जो एक जड़ है, को इस्तेमाल करने से पहले उसकी छाल को उतार दिया जाता है और अंदर की लकड़ी प्रयोग की जाती है. सना की पत्तियों में से सना की फलियां, उनके तिनके अलग कर दिए जाते हैं क्योंकि ये पेट में दर्द पैदा करते हैं. कौंच के बीजों के इस्तेमाल से पहले दूध में उबाल कर उनका विषैलापन दूर किया जाता है और उनका छिलका भी उतार दिया जाता है.
कुछ जड़ी बूटियां फूल, पत्ते और शाखों के साथ पूरी इस्तेमाल की जाती हैं. जड़ हटा कर पूरा पौधा दवा के काम में लाया जाता है. जड़ी बूटी के उखाड़ने, पेड़ों से दवा के अवयव इकठ्ठा करने का एक उपयुक्त समय होता है. इस उपयुक्त समय में लिया गया पौधा या जड़ी बूटी अच्छी तरह से काम करता है.
कुछ जड़ी बूटियां पूरी तरह से परिपक्व हो जाने पर या सूखने पर उखाड़ी जाती हैं, कुछ फूल निकलने पर जब उनमें बीज न बना हो. कुछ फल और बीज आने पर उखड़ी जाती हैं. जिन पौधों की जड़ काम में आती है वे लगभग एक साल पुराने हों. कुछ पौधों की जेड दो साल के पौधे से ली जाती हैं.
फूल और पत्तियां एक साल तक ठीक फायदा देती हैं. मजबूरी में इन्हे दो साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन ये ख़राब न हुई हों, इनमे. फफूंदी न लगी हो और कीड़ों ने न खाया हो. बीज भी एक वर्ष से दो वर्ष तक ठीक रहते हैं उसके बाद उनकी शक्ति कमज़ोर पड़ जाती है.
पेड़ों की छाल ज़्यादा दिनों तक रखने से काम की नहीं रहती.
जड़ें बहुत दिनों तक ठीक रहती है. लेकिन ये देख लेना चाहिए की कीड़ा लगकर ये ख़राब न हो गयी हों.
जड़ी बूटियों के इस्तेमाल में एक और समस्या आती है. इन्हें हरे/कच्चे रूप में इस्तेमाल किया जाए या सूखे रूप में. कुछ जड़ी बूटियां हरी इस्तेमाल की जाती हैं. जैसे लिवर की सूजन के लिए कासनी, कसौंदी और मकोय, हरी अवस्था में इनके पत्ते इस्तेमाल किये जाते हैं. सांठ भी हरे रूप में इस्तेमाल होती हैं. गुलाब के फूल सूखी अवस्था में इस्तेमाल किये जाते हैं. लेकिन गुलकंद बनाते समय गुलाब के ताज़े फूल ही प्रयोग किये जाते हैं. सूखे फूलों का गुलकंद उतना फायदा नहीं करता.
इस्तेमाल से पहले कुछ जड़ी बूटियों को शुद्ध किया जाता है जिससे उनके विषैले प्रभाव से बचा जाए. मुलेठी जो एक जड़ है, को इस्तेमाल करने से पहले उसकी छाल को उतार दिया जाता है और अंदर की लकड़ी प्रयोग की जाती है. सना की पत्तियों में से सना की फलियां, उनके तिनके अलग कर दिए जाते हैं क्योंकि ये पेट में दर्द पैदा करते हैं. कौंच के बीजों के इस्तेमाल से पहले दूध में उबाल कर उनका विषैलापन दूर किया जाता है और उनका छिलका भी उतार दिया जाता है.
कुछ दवाएं भूनकर प्रयोग को जाती हैं. कुछ पानी में भिगोकर प्रयोग की जाती हैं.
ज़हरीली दवाओं का प्रयोग सावधानी से किया जाता है. पहले इनके ज़हरीले प्रभाव को कम करने के उपाय किये जाते हैं जिससे केवल दवा की शक्ति का ही उपयोग किया जाए. ऐसा न हो कि दवा बजाय फायदे के नुकसान करे. भिलावां एक ऐसी दवा है जिसके इस्तेमाल से, या शरीर पर उसका रस लग जाने से सूजन आ जाती है. ऐसी दवा का प्रयोग करने से पहले भिलावां के फल से उसका चिपचिपा, काला पदार्थ जिसे भिलावां का शहद भी कहते हैं निकाल दिया जाता है. बाद में इस दवा को अन्य दवाओं के साथ मिलाकर जिससे इसके ख़राब गुण समाप्त हो जाएं, इस्तेमाल किया जाता है.
मुलेठी का ऊपर का छिलका उतार कर ही प्रयोग किया जाता है. कहा जाता है की ऊपर की छाल में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो नुकसान कर सकते हैं. मुलेठी को जोशांदे में डालने से पहले उसे कुचल लिया जाता है जिससे उसका असर जोशांदे में ठीक प्रकार से आ जाए.
इसी प्रकार गुर्च को भी प्रयोग से पहले कुचल लिया जाता है जिससे अगर काढ़ा बना रहे हैं तो उसका पूरा असर मिल सके.