ब्रह्मी एक प्रसिद्ध बूटी है. इसे ब्रेन टॉनिक कहा जाता है. वेदों और संस्कृत की किताबों को याद करने वाले ब्रह्मी का प्रयोग करते थे. ये मेमोरी को बढाती है. दिमाग को एक्टिव बनाती है. इससे सोचने, समझने और याद रखने की शक्ति बढ़ जाती है.
ब्रह्मी और दिमाग की दूसरी जड़ी बूटी शंखपुष्पी दोनों ठंडी हैं. कूल माइंड या ठन्डे दिमाग से ही ठीक प्रकार से सोचा समझा जा सकता है. इसलिए नेचर ने ये दवाएं ठंडी बनायी हैं.
ब्रह्मी को नीर ब्रह्मी और जल ब्रह्मी भी कहते हैं. इसका पौधा पानी के किनारे या उथले पानी वाली जगहों पर उगता है. ब्रह्मी को गीला यानि नम और गर्म वातावरण पसंद है. ये पानी में भी उग आती है. गंगा के किनारे पहाड़ों के दामन की ब्रह्मी उत्तम मानी जाती है. इसका स्वाद कड़वा होता है. इसके पत्ते कुल्फे के पत्तों से मिलते जुलते मोटे दल वाले होते हैं. ध्यान रहे कि ब्रह्मी के पत्ते कंगूरेदार या लहरदार नहीं होते. एक और बूटी है जिसे मण्डूकपर्णी कहते हैं. लोग इसे ही आम तौर से ब्रह्मी समझते हैं. इसके पत्ते गोलाईदार और कंगूरेदार या लहर वाले किनारों वाले होते हैं. इसके गुन ब्रह्मी से मिलते जुलते होते हैं. इसलिए असली आयुर्वेद वाली ब्रह्मी को नीर ब्रह्मी कहा गया है जिससे मण्डूकपर्णी न समझा जाए.
मण्डूकपर्णी का साइंटिफिक नाम Centella asiatica है जबकि ब्रह्मी का साइंटिफिक नाम Bacopa munnieri है. दोनों अलग अलग पौधे हैं.
ब्रह्मी का तेल बनाकर बालों में लगाने से बाल बढ़ते हैं और बालों का गिरना बंद हो जाता है.
आयुर्वेद में ब्रह्मी का सुरक्षित इस्तेमाल ब्रह्मी घृत या ब्रह्मी घी के रूप में किया जाता है. गाय के घी में ब्रह्मी का रस डालकर पका लिया जाता है और फिर इस घी को इस्तेमाल करते हैं. ये ब्रह्मी प्रयोग करने का सबसे सुरक्षित तरीका है
ब्रह्मी और दिमाग की दूसरी जड़ी बूटी शंखपुष्पी दोनों ठंडी हैं. कूल माइंड या ठन्डे दिमाग से ही ठीक प्रकार से सोचा समझा जा सकता है. इसलिए नेचर ने ये दवाएं ठंडी बनायी हैं.
ब्रह्मी को नीर ब्रह्मी और जल ब्रह्मी भी कहते हैं. इसका पौधा पानी के किनारे या उथले पानी वाली जगहों पर उगता है. ब्रह्मी को गीला यानि नम और गर्म वातावरण पसंद है. ये पानी में भी उग आती है. गंगा के किनारे पहाड़ों के दामन की ब्रह्मी उत्तम मानी जाती है. इसका स्वाद कड़वा होता है. इसके पत्ते कुल्फे के पत्तों से मिलते जुलते मोटे दल वाले होते हैं. ध्यान रहे कि ब्रह्मी के पत्ते कंगूरेदार या लहरदार नहीं होते. एक और बूटी है जिसे मण्डूकपर्णी कहते हैं. लोग इसे ही आम तौर से ब्रह्मी समझते हैं. इसके पत्ते गोलाईदार और कंगूरेदार या लहर वाले किनारों वाले होते हैं. इसके गुन ब्रह्मी से मिलते जुलते होते हैं. इसलिए असली आयुर्वेद वाली ब्रह्मी को नीर ब्रह्मी कहा गया है जिससे मण्डूकपर्णी न समझा जाए.
मण्डूकपर्णी का साइंटिफिक नाम Centella asiatica है जबकि ब्रह्मी का साइंटिफिक नाम Bacopa munnieri है. दोनों अलग अलग पौधे हैं.
ब्रह्मी को काली मिर्च के साथ प्रयोग किया जाता है. थोड़ी मात्रा में ब्रह्मी को दूध के साथ नियमित सेवन करने से मेमोरी बहुत बढ़ जाती है. भूली हुई बातें याद आने लगती हैं और पढ़ा हुआ याद करना आसान हो जाता है. ये याददाश्त की खराबी, अल्ज़ाइमर बीमारी और मिर्गी से बचाती है. घबराहट और एंग्जाइटी को ठीक करती है. दिमाग के साथ साथ शरीर को ठंडा रखने और ब्लड प्रेशर घटाने में इसका अहम् रोल है.
ब्रह्मी सभी को सूट नहीं करती. अजीब बात है कि ब्रह्मी का अधिक इस्तेमाल ज़बरदस्त उलटी लाता है, पेट के सिस्टम को बिगाड़ देता है और सर में चक्कर आने लगते हैं. कुछ लोगों में इसके थोड़े से इस्तेमाल से ही उलटी जैसी तकलीफे पैदा हो जाती हैं.ब्रह्मी का तेल बनाकर बालों में लगाने से बाल बढ़ते हैं और बालों का गिरना बंद हो जाता है.
आयुर्वेद में ब्रह्मी का सुरक्षित इस्तेमाल ब्रह्मी घृत या ब्रह्मी घी के रूप में किया जाता है. गाय के घी में ब्रह्मी का रस डालकर पका लिया जाता है और फिर इस घी को इस्तेमाल करते हैं. ये ब्रह्मी प्रयोग करने का सबसे सुरक्षित तरीका है