शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

ब्रेन टॉनिक ब्रह्मी

ब्रह्मी एक प्रसिद्ध बूटी है. इसे ब्रेन टॉनिक कहा जाता है. वेदों और संस्कृत की किताबों को याद करने वाले ब्रह्मी का प्रयोग करते थे. ये मेमोरी को बढाती है. दिमाग को एक्टिव बनाती है. इससे सोचने, समझने और याद रखने की शक्ति बढ़ जाती है.
ब्रह्मी और दिमाग की दूसरी जड़ी बूटी शंखपुष्पी दोनों ठंडी हैं. कूल माइंड या ठन्डे दिमाग से ही ठीक प्रकार से सोचा समझा जा सकता है. इसलिए नेचर ने ये दवाएं ठंडी बनायी हैं.
ब्रह्मी को नीर ब्रह्मी और जल ब्रह्मी भी कहते हैं. इसका पौधा पानी के किनारे या उथले पानी वाली जगहों पर उगता है. ब्रह्मी को गीला यानि नम और गर्म वातावरण पसंद है. ये पानी में भी उग आती है. गंगा के किनारे पहाड़ों के दामन की ब्रह्मी उत्तम मानी जाती है. इसका स्वाद कड़वा होता है. इसके पत्ते कुल्फे के पत्तों से मिलते जुलते मोटे दल वाले होते हैं. ध्यान रहे कि ब्रह्मी के पत्ते कंगूरेदार या लहरदार नहीं होते. एक और बूटी है जिसे मण्डूकपर्णी  कहते हैं. लोग इसे ही आम तौर से ब्रह्मी समझते हैं. इसके पत्ते गोलाईदार और कंगूरेदार या लहर वाले किनारों वाले होते हैं. इसके गुन ब्रह्मी से मिलते जुलते होते हैं. इसलिए असली आयुर्वेद वाली ब्रह्मी को नीर ब्रह्मी कहा गया है जिससे मण्डूकपर्णी न समझा जाए.
 मण्डूकपर्णी का साइंटिफिक नाम Centella asiatica  है जबकि ब्रह्मी का साइंटिफिक नाम Bacopa munnieri  है. दोनों अलग अलग पौधे हैं.

ब्रह्मी को काली मिर्च के साथ प्रयोग किया जाता है. थोड़ी मात्रा में ब्रह्मी को  दूध के साथ नियमित सेवन करने से मेमोरी बहुत बढ़ जाती है. भूली हुई बातें याद आने लगती हैं और पढ़ा हुआ याद करना आसान हो जाता है. ये याददाश्त की खराबी, अल्ज़ाइमर बीमारी और मिर्गी से बचाती है. घबराहट और एंग्जाइटी को ठीक करती है. दिमाग के साथ साथ शरीर को ठंडा रखने और ब्लड प्रेशर घटाने में इसका अहम् रोल है.

ब्रह्मी सभी को सूट नहीं करती. अजीब बात है कि ब्रह्मी का अधिक इस्तेमाल ज़बरदस्त उलटी लाता है, पेट के सिस्टम को बिगाड़ देता है और सर में चक्कर आने लगते हैं. कुछ लोगों में इसके थोड़े से इस्तेमाल से ही उलटी जैसी तकलीफे पैदा हो जाती हैं.
ब्रह्मी का तेल बनाकर बालों में लगाने से बाल बढ़ते हैं और बालों का गिरना बंद हो जाता है.
आयुर्वेद में ब्रह्मी  का सुरक्षित इस्तेमाल ब्रह्मी घृत या ब्रह्मी  घी के रूप में किया जाता है. गाय के घी में ब्रह्मी  का रस डालकर पका लिया जाता है और फिर इस घी को इस्तेमाल करते हैं. ये ब्रह्मी  प्रयोग करने का सबसे सुरक्षित तरीका है


महुआ

महुआ एक ऐसा वृक्ष है जिसके फूल, फल और बीज का प्रयोग खाने में किया जाता  है.  गांव के लोग  इसके फूलों का प्रयोग करते हैं. इसके फूल अजीब होते हैं. ये अंगूर के आकर के सफ़ेद और मोटे दल वाले होते हैं. रात में खिलते हैं और सुबह को गिर जाते हैं. मार्च अप्रैल में महुए के पेड़ के नीचे सफ़ेद सफ़ेद अंगूर जैसे फूल पड़े होते हैं, इन्हे ही महुआ कहते हैं.

महुए स्वाद में मीठे होते हैं. इनमे मीठी मीठी एक अजीब सी गंध आती है जिसे हीक कहा जाता है. 

यही महुए सुखा  लिए जाते है. सूखने पर ये लाल भूरे रंग के हो जाते हैं. इनकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है. बहुत मीठा होने के कारण लोग इन्हे खाते  भी हैं. इनका दवाई गुण ये है कि ये शरीर को पुष्ट बनाते हैं. बल को बढ़ाते है. ये रेप्रोडक्टिव सिस्टम को मज़बूत करते है. वीर्य की मात्रा और गाढ़ापन बढ़ाते हैं. 
महुए का स्वभाव गर्म तर है. जिन्हे नज़ला ज़ुकाम रहता हो, जिनका शरीर दुर्बल हो, जिनके जोड़ों में चिकनाई की कमी हो उनके लिए ताज़े या  सूखे महुए का सेवन कमाल का परिवर्तन लाता है. महुआ खाने वाले से ज़ुकाम और सर्दी दूर भागती है.


महुए ताज़े जो पेड़ों से गिरते हैं चाव से खाये जाते हैं. दूध में मिलकर इसकी खीर भी बनाई जाती है. सूखे महुए भी खाने में प्रयोग होते हैं. गरीब लोग महुए से पेट भरते है. रोटी के साथ खाते हैं. इसे मीठे की तरह प्रयोग करते हैं.
इनके फलो की सब्ज़ी बनाकर खायी जाती है. कहीं इनके फलों को गुलहंदे भी कहते हैं.
महुए के बीज में बहुत तेल होता है. इसके तेल का प्रयोग साबुन बनाने में होता है. ये खाने के काम भी आता है. लेकिन इस तेल में भी मीठी गंध यानि हीक आती है. इसके लिए महुए के तेल को गर्म करके उसमें नीबू का रस डालकर पकाते हैं. उस तेल में फिर हीक नहीं आती और ये तेल पूड़ी पकवान बनाने के काम आता है.
महुआ एक ऐसा वृक्ष है जिससे पेट भी भरता है। बीमारियां भी दूर होती  हैं 

बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

मुलेठी एक झाड़ीदार पौधा है

मुलेठी एक झाड़ीदार पौधा है. इसे गर्म और तर जलवायु चाहिए. इसे आयुर्वेद में यष्टिमधु और हिंदी उर्दू में मुलेठी कहते हैं. इसका अंग्रेजी नाम लिकोरिस और साइंटिफिक नाम ग्लीसरहिज़ा ग्लाब्रा है. इसकी जड़ दवा के रूप में प्रयोग की जाती है.
 मुलेठी की जड़े पौधा लगाने के दो साल बाद निकालने के लिए तैयार हो जाती हैं. इन्हे खोदकर छोटे टुकड़ो में काटकर सुखा लिया जाता है. मुलेठी की जड़ो  का रंग पीला और स्वाद मीठा होता है.
मुलेठी का सबसे बड़ा फायदा इसकी बलगम निकालने का गुण है जिसे जड़ी बूटी से थोड़ा सा लगाव रखने वाले सभी लोग जानते हैं. इसलिए ये एक्सपेक्टोरेन्ट के रूप में प्रयोग की जाती है. देसी, आयुर्वेद और हकीमी दवाओं में ये खांसी की मुख्य दवा के रूप में इस्तेमाल होती  है. जोशांदे में जो नज़ला, ज़ुकाम और कफ के लिए प्रयोग किया जाता है मुलेठी की जड़ को कूटकर डाला जाता है और अन्य दवाओं के साथ उबालकर पिया जाता है.


बच्चो के दांत निकलने के ज़माने में मुलेठी की जड़ को पानी में भिगोकर कुछ नरम करके बच्चे के हाथ में पकड़ा देते हैं जिससे बच्चा उसे बेबी टीथर की तरह चूसता रहे. इसके न सिर्फ दांत आसानी से निकल आते हैं, बच्चो को खांसी, ज़ुकाम और पेट की तकलीफे भी नहीं होती हैं.
मुलेठी पेट की भी अच्छी दवा है. ये आंतो को शक्ति देती है. दस्तों को बंद करती है, पेचिश में फायदेमंद है. इसका विशेष अजीब गुण ये है की ये कब्ज़ में भी लाभकारी है.
मुलेठी नर्वस सिस्टम की भी बड़ी दवा है. इसके पाउडर को दूध के साथ नियमित प्रयोग करने से नर्वस सिस्टम मज़बूत हो जाता है. डिप्रेशन जाता रहता है. शरीर की मांस पेशियां भी शक्तिशाली बनती हैं. इसके लिए मुलेठी को इमाम दस्ते (हावन दस्ते) में अच्छी तरह कूटकर पाउडर बनाले. और छानकर इसके रेशे निकाल दें. ये पाउडर 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ रोज़ 3 से 4 महीने इस्तेमाल करने से निश्चित ही लाभ होता है.
मुलेठी का स्वाभाव गर्म खुश्क है. ये शरीर में खुश्की पैदा करती है. तर या गीली खुजली और स्किन की बीमारियों में भी लाभदायक है.
मुलेठी की जड़ के ऊपरी छिलके  में कुछ ऐसे तत्व है जो सेहत के लिए लाभदायक नहीं हैं. इसलिए हकीम लोग इसकी ऊपरी छाल को हटाकर अंदर की लकड़ी प्रयोग करते हैं.

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