बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

लपेटुआ

लपेटुआ का वैज्ञानिक नाम यूरेना लोबाटा है. इस पौधे के बीज रोएंदार होते हैं और इस लिए ये किसी भी व्यक्ति या जानवर के आसानी से चिपक जाते हैं और दूर दूर पहुंच जाते हैं. बरसात में इन बीजों से लपेटुआ के नये पौधे निकलते हैं. ये पौधा खेत खलिहानो में और खाली पड़ी ज़मीनो में उगता है.  
इसका रेशा मज़बूत होता है. जूट के पौधों की तरह ही इसके रेशे भी निकाले जाते हैं और उनकी रस्सी बनायी जाती है या फिर इन रेशो को बुनकर कैनवास जैसा कपडा बनाया जाता है.  ये मालवेसी कुल का  पौधा है. इसे अंग्रेजी में सीज़र -वीड, कांगो-जूट, और मडगास्कर-जूट भी कहते हैं.
इसके बीज पानी में भीगकर लेसदार हो जाते हैं. बीजों का ये म्यूसिलेज, या चिपचिपा पदार्थ पेट के रोगों में फ़ायदा करता है.
इसका स्वाभाव गर्म है. इसकी जड़  को पानी में उबालकर पिलाने  से शिशु-जन्म आसानी से हो जाता है.
फूलों को सुखाकर  रख लिया जाता है. इन फूलो को पानी में पकाकर पीने से खांसी में आराम मिलता है और जमा हुआ बलगम निकल जाता है.
बीजों को पानी में पकाकर पीने से पेट के कीडे मर कर निकल जाते हैं.

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

गुंजा, गुंजा, रत्ती, रत्ती

रत्ती और गुंजा एक बेल के बीज हैं. इस बेल को और इसके बीजों को रत्ती, रतियां, घुंघची, घुमची, गुंजा आदि कहा जाता है. आम तौर से लाल और काले रंग की रत्ती मिलती है. इस बीज का आधे से ज़्यादा भाग लाल होता है और आधे से कुछ कम  भाग काला होता है. देखने में ये बीज मोती जैसे लगते हैं.
इन बीजों से सुनार सोना तोलते थे. लाल - काली रत्ती लगभग समान आकार और वज़न की होती है. इसे एक रत्ती भार के बराबर माना जाता
रत्ती के बेल के पत्ते इमली के सामान होते हैं. ये एक पतली और नाज़ुक से बेल होती है. इसके फलने - फूलने का समय बरसात का है. जाड़े आते आते रत्ती के बीज सूख जाते हैं और फलियां चटक जाती हैं. जिनमे से बीज बिखर जाते हैं.
रत्ती की एक वैराइटी सफ़ेद होती है जिसका बहुत थोड़ा सा भाग कला होता है. इसे सफ़ेद रत्ती कहते हैं. एक अन्य प्रकार की रत्ती सफ़ेद और ब्राउन रंग की होती है. ये रत्तियां काली लाल रत्तियों से आकर में बड़ी होती हैं और इस लिए इन्हे सोना तोलने के काम में नहीं लाया जाता.

रत्ती एक बहुत ज़हरीला पौधा है. दवाई के रूप में इसकी पत्तिया, जड़ और बीज का प्रयोग किया जाता है. पत्तियां और जड़ में कम विष होता है. अजीब बात हैं की इसके बीज बहुत विषाक्त होते हैं. इसका प्रयोग केवल लगाने की दवाई के रूप में किया जाता है. लेकिन भूलकर भी ये जड़ी बूटी खुले घाव वाले स्थान पर न लगायी जाय.  और इसका प्रयोग केवल  काबिल हकीम और वैद्य की निगरानी में ही किया जाए.
किसी खाने की दवा  में अगर रत्ती का  इस्तेमाल लिखा हो तो ऐसे नुस्खे का प्रयोग भूलकर भी न करें क्योंकि रत्ती या गुंजा खतरनाक ज़हर है. 

फूल के ऊपर पत्ता

फूल के ऊपर पत्ता गोमा जड़ी बूटी की विशेष पहचान है. गोमा को गुम्मा घास, और द्रोण पुष्पी भी कहा जाता है. इसमें सफ़ेद रंग के फूल खिलते हैं.
गोमा को सर्प दंश की अचूक दवा माना जाता है. गोमा को खिलाने और काटे हुए स्थान पर लगाने से सांप का विष दूर हो जाता है. एक हकीम ने जंगल में देखा की एक सांप और नेवला लड़ रहे हैं. सांप नेवले को कई बार काटता है और नेवला भागकर एक बूटी के पत्ते खाकर लड़ाई के लिए फिर आ जाता है. वह ये सब देखते रहे. जब नेवले ने सांप को मार  लिया और उसी बूटी के पत्ते खाकर चला गया तो उनहोंने उस बूटी को जड़ से उखाड़कर अपने झोले में डाल लिया और पास के रेलवे स्टेशन से अपने गांव जाने के लिए गाड़ी पकड़ ली.
उस ट्रेन में उन्हें एक मरीज़ मिला जिसके शरीर के हर भाग से खून बह  रहा था. पूछने पर पता लगा की इस आदमी को सांप ने काटा था. दवा से मरने से तो बच गया लेकिन ज़हर के असर से शरीर का खून इतना पतला हो चुका  है की त्वचा के छिद्रों से बह रहा है. इसे  डाक्टर को शहर में दिखाने ले गए थे.  उन्होंने कहा इसका कोई इलाज नहीं.
हकीम ने थैले में हाथ डाला और गोमा बूटी को रगड़कर गोली से बना दी. और ऐसी तीन गोलियां मरीज़ को देदी. कहा कि एक अभी खालो, एक तीन घंटे बाद और एक उसके तीन घंटे बाद खा लेना. रास्ते में उनका गांव आ गया और उनहोंने उतरने से पहले हकीम का पता ले लिया.
 तीसरे दिन हकीम अपनी दुकान पर बैठे थे कि एक आदमी आया और उनके पैरों पर गिर पड़ा. ये वही मरीज़ था. बिलकुल ठीक हो चुका  था.
गोमा कमाल की बूटी है.
बुखारों के लिए भी गोमा ज़बरदस्त असर रखती है. सूखी गोमा बूटी के भरे हुए गद्दे पर मरीज़ को लिटाने से ही पुराना बुखार भी उतर जाता है.
गोमा लिवर की बीमारियों की बड़ी दवा है. लिवर ठीक काम न करता हो, पीलिया रोग में और लीवर की सूजन घटाने में ये जड़ी बूटी लाभकारी है.


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