शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

हरड़

हरड़ एक जानी मानी दवा है. ये तिरफला का अव्यव है. हरीतकी यानि हरड़, विभीतकी यानि बहेड़ा और  अमालकी यानि अमला ये मिलकर तिरफला बनाते हैं.
अरबी हकीमो ने हलीलज, बलीलज और आमलज का नाम दिया तो बाद में यही नाम हलीला, बालीला और आमला हो गया. बाजार में हरड़ की तीन वैराइटी मिलती हैं. काली हरड़ वो हरड़ है जो छोटी और काले रंग की
होती है. ये हरड़ के अविकसित और छोटे फल हैं जो खुद हरड़ के पेड़ों से गिर जाते हैं या तोड़कर सूखा लिए जाते हैं. हरड़ की दूसरी और बहुत आम वैराइटी छोटी हरड़ है. यही आम तौर से दवा में प्रयोग होती  है. इसी का मुरब्बा बनाया जाता है और तिरफले के अव्यव में प्रयोग होती है.
हरड़ का तीसरा प्रकार हलीला काबुली या बड़ी हरड़ कहलाता है. ये हरड़ के फल का पूर्ण विकसित रूप है. ये हरड़ उस समय पेड़ों से तोड़ी जाती है जब हरड़ पकने लगती है और पीली पड़  जाती है.
सूखने पर हरड़ के फलों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं. ऐसे सूखे फल तीनो रूपों में बाजार में मिलते हैं. हरड़ का प्रयोग करने से पहले इसकी गुठली निकल दी जाती है और पीसकर पाउडर बना लिया जाता है.
हरड़ का स्वभाव कब्ज़ को दूर करने वाला है. तिरफला के रूप में कब्ज़ दूर करने के लिए ही इसका प्रयोग किया जाता है. टैनिक एसिड और गैलिक एसिड होने के कारण हरड़ का प्रयोग दांतों को मज़बूत करता है. हलीला स्याह या काली हरड़ को मुंह में रखकर चूसने से दांतो और मसूढ़ों के रोगों में लाभ होता है. मुंह की दुर्गन्ध जाती रहती है और मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है. हरड़ का नियमित इस्तेमाल आंतो के बहुत से रोगों और कैंसर से बचाता है.
तिरफला के रूप में हरड़ का इस्तेमाल आयु को बढ़ता है. जवानी को कायम रखता है. और सबसे बढ़कर यह कि रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है.
कब्ज़ के लिए रात को सोते समय एक या दो हरड़ का मुरब्बा खाना चाहिए. हरड़ का मुरब्बा बाजार में आसानी से मिल जाता है. घर पर भी सुखी हरड़ों को पानी में भिगोकर मुलायम होने पर शकर का पाग बनाकर मुरब्बा बनाया जाता है.
अजीब बात ये है की  हरड़ कब्ज़ दूर करने वाली दवा है लेकिन दस्त बंद करने में भी इसका  का प्रयोग किया जा सकता है. काली हरड़ को घी में भूनकर पाउडर बना लें और ठन्डे पानी के साथ इसका प्रयोग करे तो दस्त बंद हो जाते हैं.  

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

पोई की बेल

पोई की बेल बरसात में उगने वाली बेल है. इसका तना लाल रंग का होता है. पत्तियां गहरे हरे रंग की किनारों पर लाली लिए होते हैं. इसके पत्ते पालक के तरह मोटे लेकिन आकर में पालक के पत्तों से कहीं छोटे दिल के आकर के होते हैं. इसे मालाबार रेड स्पिनॉच यानि मालाबार का लाल पालक भी कहते हैं. आम भाषा में इसे पोई के बेल  के नाम से जानते हैं.

ये एक जंगली पौधा है. इसे गरीबों का साग भी कहते हैं. लोग इसके पत्तों की सब्ज़ी बनाकर कहते हैं. ये विटामिन ए, विटामिन बी और विटामिन सी का अच्छा स्रोत है. इसमें लोहा भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. सब्ज़ी के रूप में इसका प्रयोग बहुत सी बीमारियों से बचाता  है. ये कोलेस्ट्रॉल लेवल को घटाता है और रक्त में थक्का नहीं बनने देता.
पोई डायूरेटिक यानि पेशाब लाने वाली है. इसमें डाइटरी फाइबर के कारण कब्ज़ को दूर करती है. गरीबों के लिए ये भरपूर भोजन है जो विटामिन की कमी दूर करके उन्हें स्वस्थ रखती है. इसकी बेले बरसात में खुद- ब - खुद  उग आती हैं. इसलिए ये फ्री का भोजन है लेकिन बहुत लाभकारी है.
अजीब बात ये है के ये मामूली बेल पोई न केवल हार्ट की बीमारियों से बचाती है, ये आंत के कैंसर विशेषकर कोलन के कैंसर से भी बचाती है. पोई का प्रयोग स्किन और म्यूकस मेम्ब्रेन को स्वस्थ रखता है. 

बहेड़ा

बहेड़ा एक बड़े वृक्ष का फल है. ये तिरफला का एक फल है. हरड़, बहेड़ा और आमला मिलकर तिरफला कहलाते हैं. बहेड़े के फल का छिलका या बाहरी आवरण दवाओं में प्रयोग किया जाता है. इसकी गुठली तिरफला का भाग नहीं है. तिरफला पाउडर बनाने में आमला सूखा हुआ, बहेड़ा गुठली निकला हुआ और हरड़ गुठली नीलकी हुई बराबर मात्रा में पीसकर पाउडर बनाया जाता है. मार्केट में जो तिरफला पाउडर मिलते हैं उनमें गुठली भी मिली होती है.
बहेड़ा दस्तों को बंद करता है. इसमें शामिल टैनिक एसिड और गैलिक एसिड आँतों में सुकड़न पैदा करते हैं. इससे ये आँतों के मज़बूती देता है. बहेड़े के जोशांदे से गारगल करना दांतो और मसूढ़ों से खून आने में फ़ायदा करता है.
बहेड़े का प्रयोग ब्लड प्रेशर को भी घटाता है. ये बलगम निकलने में भी लाभकारी हैं. बहेड़े का प्रयोग चूर्णों में किया जाता है जो पेट के बीमारियों में लाभ करते हैं. बहेड़ा, काली मिर्च, और कला नमक का चूर्ण गैस बनने को रोकता है.
बहेड़े के पाउडर को मेहँदी के साथ मिलकर लगाने से बाल कालो रहते और मज़बूत होते हैं.
बहेड़े में एंटी एजिंग यानि आयु के प्रभाव को कम  करने का गुण है. इसका प्रयोग चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ने देता और बहुत सी  बीमारियों से बचाता है. बहेड़े की गुठली के अंदर इसका बीज होता है. ये बीज बालों का अच्छा टॉनिक है. बहेड़े के बीजों को पीसकर सरसों या तिलों के तेल में धीमी आंच पर पकाया जाता है. उसके बाद तेल को फ़िल्टर करके बालों में लगाने से बालो का झड़ना और असमय सफ़ेद होना रुक जाता है. ये नए बाल उगने में भी मदद करता है.

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