शनिवार, 9 दिसंबर 2017

अतिबला

अतिबला मैलो जाति का पौधा है.  इस प्रकार के चार पौधों का प्रयोग दवाओं में किया जाता है. ये जड़ी बूटियां हैं - (एक) बला, (दूसरी) अतिबला, (तीसरी ) महाबला और (चौथी) नागबला। इनका  प्रयोग आयुर्वेद और सिद्ध मेडिसिन में किया जाता है. देश की विभिन्न भागों में देहाती लोग जो जड़ी बूटियों के जानकारी रखते हैं इस प्रकार की दवाओं का इस्तेमाल करते है.  अतिबला  खर-पतवार के रूप में सड़कों और रेलवे लाइनों के किनारे उगी हुई मिल जाएगी. अतिबला को शक्ति और बल बढ़ाने वाली जड़ी बूटी के रूप माना  जाता है. अतिबला के अन्य नाम खरैंटी, कंघी, आदि हैं.
इसमें पीले फूल खिलते हैं. इसका पॉड या फल गोलाकार और दन्दानेदार होता है. इसी पॉड के मदद से अतिबला की पहचान आसानी से की जा सकती है.
अतिबला एक झाड़ीदार पौधा है. इसके फूल जून - जुलाई माह से खिलना शुरू हो जाते हैं. लेकिन मालवेसी  कुल के अन्य पौधों के तरह ये सर्दियों के दिनों में फूलों और फलों से लद जाता है. फरवरी - मार्च तक इसके पॉड सूख जाते हैं और उनके बीजों से नए पौधे निकलते हैं.
अतिबला डायूरेटिक यानि पेशाब-आवर है. ये मूत्र संसथान के रोगों में डायूरेटिक होने के कारण लाभ करती है. अतिबला का तेल जोड़ों के दर्दों के लिए प्रयोग किया जाता है. इसके लिए अतिबला की जड़  को कुचलकर टिल या सरसों के तेल में धीमी आंच पर पकाया जाता है. पानी जल जाने पर जब केवल तेल रह जाता है तो तेल को छान कर ठंडा करके रख लेते हैं. जोड़ो के दर्द में इस तेल को गर्म करके मालिश की जाती है. फालिज से प्रभावित शरीर के भाग पर इसकी मालिश से लाभ होता है.
अतिबला के जड़ को सुखाकर पाउडर के रूप में सेवन करने से बुखार में लाभ होता है. बुखार दूर करने के गुण के कारण अतिबला को फेफड़ों की टीबी में भी प्रयोग किया जाता था.


  

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

आमला

आमला एक जाना मन फल है. इसका वृक्ष मीडियम साइज़ का होता है. इसकी पत्तियां इमली से मिलती जुलती होती हैं. आमले का मौसम सितम्बर से मार्च तक रहता है. इसके फल चमकदार हलके हरे रंग के होते हैं. फल पर छः धारियां पड़ी होती हैं. इसका फल उबलने या धुप में सूखने पर छः फांकों में बंट जाता है. इसकी गुठली भी पहलदार होती है और इसके अंदर बीज होते हैं.
आमला आयुर्वेद की तीन मुख्य दवाओं जिन्हे तिरफला कहते हैं के एक अहम् घटक है. तिरफला में तीन दवाएं - हरड़ बहेड़ा और आमला शामिल होती हैं.

आमला विटामिन और मिनरल का खजाना है. इसका स्वाभाव ठंडा होता है. इसका स्वाद बकठा होता है. हरे कच्चे आमले में पानी के मात्रा बहुत होती है. इसे दवाओं के अलावा मुरब्बा और अचार के रूप में प्रयोग किया जाता है. आमले को सुखाकर आमला, रीठा, और शिकाकाई मिलकर बालों को धोने के लिए देसी चूर्ण बनाया जाता है. इस चूर्ण को पानी में भिगोकर पीस लिया जाता है और इसे शैम्पू के तरह प्रयोग किया जाता है.
आमला चयवनप्राश का मुख्य घटक है. कहा जाता है के महर्षि चयवन बहुत बूढ़े और कमजोर हो गए थे. तब उन्होंने इस दवा का प्रयोग किया. चयवनप्राश अवलेह के नाम से बाजार में बहुत ब्रांड बिक रहे हैं.
आमले का स्वाद बकठा और कसैला  होने के कारण इसका मुरब्बा बनाते वक्त इसका बकठापन निकलने के लिए आमलो को इस्टेनलेस स्टील या लकड़ी के बने कांटे से अच्छी तरह छेद कर चूने के पानी में भिगो देते हैं. छः से बारह घंटे भीगने के बाद इसका कसैलापन कम हो जाता है. तब इसे उबालकर शकर के पाग में दाल देते हैं. अगले दिन पाग से निकलकर फिर से पाग को धीमी आंच पर पका कर गाढ़ा कर लेते हैं. निकले हुए आमले दुबारा पाग में दाल देते हैं. अगर आमलो से निकला पानी पाग में मिल जाता है तो उसमें फफूंदी लग जाती है. इसलिए आमले का मुरब्बा बनाते वक्त आमले को पाग से निकलकर कई बार गाढ़ा करना पड़ता है की उसमें पानी की मात्रा न रहे.
आमले का मुरब्बा मेमोरी को बढ़ाता है. ये शरीर की झुर्रियां मिटाता है. इसके लगातार इस्तेमाल से बुढ़ापा देर से आता है.
हरड़ की गुठली निकलकर उसका छिलका, बहेड़े की गुठली निकलकर उसका छिलका और सूखे हुए आमले सामान मात्रा में मिलकर पाउडर बनाले. यही तिरफला पाउडर है. रात को सोते समय पानी से एक चमच पाउडर खाने से शरीर को रोग नहीं लगते.
तिरफला पाउडर में अजीब बात ये है की अगर कब्ज़ दूर करना हो तो एक चमच से तीन चमच तिरफला पाउडर गरम पानी से रात को खाए. अगर दस्त बंद करना हों तो ठन्डे पानी से इस्तेमाल करें.
आमला बालों  बढ़ाता और चमकदार बनाता है. आमले के नाम से कई तेल बाजार में मिल रहे है. आमले का तेल बनाने के लिए कच्चे आमले की जगह सूखे आमले का प्रयोग किया जाता है. कच्चे या हरे आमले का तेल देखने में सुन्दर नहीं होता. कढ़ाई आदि में तेल के साथ आमले के रस को पकाने से उसमें कालापन आ जाता है.



बड़ी दुधी

बड़ी दुधी बरसात के मौसम में खर पतवार के साथ खाली पड़े स्थानों पर उगती है. इसकी दो पत्तियों के  जोड़ पर इसके बारीक़ फूलों और बीजों का गुच्छा लगा होता है. इस कारन ही इस बूटी की पहचान आसानी से के जा सकती है. इसकी शाखाये ज़मीन पर फैलने वाली गुच्छेदार और लचकदार होती हैं. शाखा तोड़ने पर इसमें से दूध निकलता है. इस दूध या  लेटेक्स  के कारण  ही इसका नाम दूधी पड़ा है.

एक और बूटी भी है  जिसे छोटी दूधी कहते हैं. इसके पत्ते  छोटे गहरे हरे रंग के शाखाएं बारीक़ होती हैं. इसको तोड़ने पर भी दूध निकलता है.
छोटी दूधी को पहले ही इसी बलाग अजीब हर्ब में वर्णित किया जा चुका है.
 दूधी को छाया में सुखाकर और पाउडर बनाकर पानी के साथ सेवन करने से डिसेंट्री में लाभ होता है. अपने तर स्वाभाव के कारण ये सूखी खांसी में भी लाभकारी है. खांसी में इसका प्रयोग काढ़े के रूप में करना चाहिए.


  

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