गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

शंखपुष्पी

शंखपुष्पी, संखाहोली, सनखुलिया, कौडियाला एक घास की तरह का पौधा है. ये ज़मीन पर बिछी हुई एक छोटी छोटी शाखाओं वाली बूटी है. इसकी पत्तियां बहुत बारीक और पतली पतली होती हैं. जब इसके फूल न खिले हों तो इसके घास में से पहचानकर अलग करना मुश्किल है.

गर्मी के शुरू में अप्रैल, मई में इसके फूल खिलते हैं. ये फूल सफ़ेद रंग के कटोरीनुमा होते हैं. इस समय ही इस जड़ी बूटी के पहचान बड़ी आसानी से की जा सकती है.
सफ़ेद फूलों के कारण इसे शंखपुष्पी कहा जाता है. यही नाम बिगड़ कर सांखुलया और संखाहोली यानी शंख के समान  सफ़ेद फूलों वाली बूटी हो जाता है.
कौड़ी भी एक समुंद्री जीव है. कौड़ी के सफ़ेद रंग के कारण भी इसका नाम कौडियाला भी है. ये बूटी अपने सफ़ेद फूलों से ही पहचानी जाती है और यही इसकी खूबी है.
शंखपुष्पी की प्रकृति ठंडी है. जिनको गर्मी जनित विकार हों. गर्मी के कारण शरीर और सर में जलन हो उनको ये बूटी फ़ायदा करती है. याददाश्त यानि मेमोरी को बढाने में इसका बहुत बड़ा नाम है. इसका प्रयोग मेमोरी को कायम रखने के लिए बरसों से हो रहा है. बाजार में शंखपुष्पी के नाम से सीरप आदि मिलते  हैं. गर्मी के मौसम में शंखपुष्पी के ताज़ी शाखायें बादाम और सौंफ के साथ पीसकर ठंडाई के रूप में पीने से मन शांत रहता है और गर्मी के विकार दूर होते हैं.
शखपुष्पी को सुखाकर पाउडर बना लिया जाता है. एक भाग शंखपुष्पी का पाउडर, एक भाग ब्राह्मी का पाउडर, एक भाग काली मिर्च का पाउडर और तीन भाग बादाम का पाउडर मिलाकर, एक चम्मच ये पाउडर सुबह शाम दूध के साथ लेने से मेमोरी बढ़ती है और हाइपर टेंशन में आराम मिलता है और नींद भी अच्छी आती है.

शनिवार, 7 जनवरी 2017

कसूरी मेथी

मेथी और कसूरी मेथी. दोनों अलग अलग पौधे हैं. आम तौर से मेथी के बीजों को मेथी और मेथी की सूखी हुई पत्तियों को कसूरी मेथी समझ जाता है.

मेथी की हरी पत्तियों को सब्ज़ी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. सर्दी के मौसम में अकटूबर से फरवरी तक बाजार में मेथी के पत्तियां मेथी के साग के नाम से मिल जाती हैं. सोया, मेथी और पालक की पत्तियों को साग के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यही पत्तियां सुखाकर सर्दी के सीज़न के अलावा विभिन्न प्रकार की डिश में प्रयोग की जाती हैं. ये न सिर्फ खाने को सुगन्धित बनाती हैं बल्कि इनके बहुत से फायदे भी हैं.
मेथी का बीज जिसे आम तौर से मेथी ही कहते हैं बाजार में मिल जाता है. इसे भी मसाले के रूप में खाने में प्रयोग किया जाता है. इसकी अपनी विशेष सुगंध होती है. मेथी का बीज दावा के रूप में भी इस्तेमाल होता है. और ये एक बहुत कारगर दावा है.

कसूरी मेथी का नाम अविभाजित पंजाब में कसूर नाम के स्थान से  जुड़ा हुआ है. कसूर पहले लाहौर में था अब ये पाकिस्तान का एक डिस्ट्रिक्ट है. कसूरी मेथी की पत्तियां मेथी  की पत्तियों से कुछ भिन्न होती है. सूख जाने पर इनमें से अच्छी खुश्बू आती है. कसूरी मेथी का बीज आम मेथी से छोटा होता है. दोनों तरह की मेथी को खाने में इस्तेमाल किया जाता है.
मेथी डायबेटिज़ के मरीजों के लिये फायदेमंद है. इसका साग या मेथी के बीजों का पाउडर नियमित इस्तेमाल में रखने से डायबेटिज़ को कंट्रोल में रखता है.
मेथी में विभिन्न प्रकार के पॉइज़न को सोख कर शरीर के बहार निकलने की शक्ति है. इसके साग के रोशे आँतों के कैंसर से बचाते हैं.
ये जोड़ों के दर्द की बेजोड़ दावा है. बढे हुए पेट को कम करती है. चर्बी को घटाती है. स्लिम होने के लिए यहाँ एक बेजोड़ फार्मूला दिया जाता है.
मेथी का बीज 50 ग्राम, ओरिजिनल ग्रीन टी की पत्ती 50 ग्राम, इसबगोल की भूसी जिसे सात इसबगोल या इसबगोल हस्क भी कहते है 100 ग्राम और कलौंजी 20 ग्राम. इन सबको ग्राइंडर में डालकर पाउडर बनालें. गर्म पानी के साथ एक छोटा चमच सुबह और एक शाम. 3 माह के लगातार इस्तेमाल से मोटापा जाता रहता है. जोड़ो का दर्द, कब्ज़, ब्लड प्रेशर की भी अचूक दवा  है.

सोमवार, 2 जनवरी 2017

खट्टी बूटी

ये बूटी आम भाषा में खट्टा स्वाद होने के कारण खट्टी बूटी और खटकल के नाम से जानी जाती है. तीन पत्तियों के कारण तिपतिया, और अंग्रेजी भाषा में  वुड सोरेल, या ऑक्ज़ेलिस के नाम से प्रसिद्ध है. ये गीली और नम जगहों पर उगती है. इसे छायादार स्थान और नमी पसंद है. क्यारियों और खली पड़ी जगहों पर बहुतायत से उग आती है.
इसकी बहुत से प्रजातियां हैं. आम तौर  से छोटे छोटे पीले फूल वाली बूटी पायी जाती है. लाल रंग के फूल और सफ़ेद की वैराइटी भी पायी जाती हैं. इसमें छोटी फलियां लगती हैं. जिनमें बारीक बीज होते हैं. फलियां चटककर बीज बिखर जाते हैं और नए पौधे जमते हैं.

इसका खट्टापन ऑक्ज़ेलिक एसिड के कारण होता है. इसका अजीब प्रयोग मधु मक्खी और कीड़े मकौड़ों के काटने में होता है और बड़ा कारगर है. यहाँ तक की बिच्छू के काटने पर भी असरदार पाया गया है. काटी  हुई जगह पर इसकी पत्तियों को रगड़ने से दर्द और जलन जाती रहती है. ये प्रयोग बहुत लोगों पर कारगर सिद्ध हुआ है.


इसका स्वाभाव ठंडा है. प्यास को शांत करती है. इसे खाने से बार बार प्यास नहीं लगती. लू लगजाने पर इसकी चटनी बनाकर खाने से आराम मिलता है.
गठिया के रोगियों, वे लोग जिनके गुर्दे या पित्ते में पथरी हो, को ये बूटी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ऐसे मरीजों को ये बूटी नुकसान करती है.
इसका इस्तेमाल काम मात्रा में फ़ायदा पहुंचता है. ऑक्ज़ेलिक एसिड की वजह से ज़्यादा इस्तेमाल नुकसानदेह होता है. पेशाब जलन के साथ आने लगता है. एसिडिटी के रोगी भी इसे इस्तेमाल न करें.


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