शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

हिबिसकस

 हिबिसकस को  चाइना रोज़ और गुड़हल के नाम से भी जाना जाता है. इसके फूल जो आम तौर से पाए जाते हैं लाल रंग के  होते हैं. वैसे हिबिस्कस कई रंगों में पाया जाता है. इसके फूल के भी कई वैराइटी होती हैं. सिंगल पांच पंखुड़ी का फूल, और बहुत से पंखुड़ियों वाला फूल जो गुलाब के फूल जैसा दिखाई देता है.

हिबिस्कस का स्वाभाव ठंडा और तर है. इसके फूल और पत्तों में लेसदार चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है. इसका फूल खाने में फीका और चिपचिपा होता है. गर्मी जनित रोगों और उच्च रक्तचाप में इसका फूल सेवन करने से लाभ होता है.
हिबिस्कस के फूल कई रंगों में पाए जाते हैं. आम तौर से मिलने वाला फूल लाल रंग का है. यही जड़ी बूटी के रूप में काम आता है. इसके अन्य रंग हल्का गुलाबी, पीला, सफ़ेद आदि होते हैं.

बालों के लिए हिबिस्कस एक उपयोगी जड़ी बूटी है. इसके फूल को पीस कर और अंडे के साथ मिला कर लगाने से बाल मज़बूत होते हैं.
मेंहदी के साथ पीस कर सर में लगाने से न केवल बालों के खुश्की / रूसी को दूर करता है, बल्कि मेंहदी का रंग भी अच्छा आता है.
बालों को असमय सफ़ेद होने से बचाने के लिए हिबिस्कस के फूल और पत्ते बराबर मात्रा में तिल के तेल में कुचलकर दाल दें उन्हें  बारह घंटे भीगा रहने दें. फिर तेल को हलकी आंच पर पकाएं अब तेल को ठंडा होने दें. छानकर फूल पत्तियां निकाल दें और तेल को इस्तेमाल करें. इसका नियमित इस्तेमाल बालों को काला रखता है.
हिबिस्कस की अजीब बात इसका ठंडा शरबत है. इसका रंग बहुत खूबसूरत होता है. ये नेचुरल कलर है और कोई नुकसान नहीं करता. गर्मी में इसका शरबत बनाने के  लिए हिबिस्कस के चार पांच फूल एक कांच के बर्तन में पानी में भिगो दें और उसमें एक नीबू का रास निचोड़ दें.  पांच - छ घंटे बाद देखेंगे की हिबिस्कस का रंग पानी में आ गया है. चीनी मिलाकर  शरबत बनालें  ये शरबत गर्मी में बहुत फ़ायदा करता हैं और बहुत से बाज़ारी शर्बतों से बेहतर है.
अगर इस शरबत को बनाकर रखना हो तो फूलों को ज़्यादा मात्रा में कई नीबुओं के रस के साथ कांच के बर्तन में भिगो दें  पानी में रंग निकल आने पर इसे शकर के साथ पकाकर शरबत बनालें और फ्रिज में सुरक्षित रखलें.
हिबिस्कस गर्मी जनित रोगों में फायदेमंद है. ये यूट्रस को शक्ति प्रदान करता है और स्त्रियों के श्वेतप्रदर  में लाभकारी है. इसके लिए इसके फूलों को शकर के साथ पकाकर प्रयोग करना चाहिए.
इसका गुलकंद भी बनाया जाता है. शकर के साथ मिलकर धूप  में रख देने से गुलकंद तैयार हो जाता है. ये गुलकंद चिपचिपा होता है. ये न केवल कब्ज़ दूर करता है बल्कि एसिडिटी में भी लाभकारी है. पेट की जलन को दूर करता है.
लाल हिबिस्कस एक बहु उपयोगी पौधा है. ये ने केवल सुन्दर लगता है. इसमें सुन्दर गुण भी हैं. लेकिन  स्वाभाव से ये ठंडा है. इसलिए हिबिस्कस को वो लोग इस्तेमाल न करें जिनका स्वाभाव ठंडा है, खांसी बुखार सरदर्द नज़ला ज़ुकाम से पीड़ित हैं. उन्हें बजाये फायदे के नुक्सान हो सकता है.
उपयोग से पहले  हकीम, वैध की सलाह अवश्य लें.

बुधवार, 31 अगस्त 2016

थूहड़

थूहड़ या सेंहुड़, डंडा थूहड़ आम तौर से पाया जाने वाला पौधा है. ये बाग़ बगीचों में बाढ़ के रूप में लगाया जाता है. इसका तन बेलनाकार और पत्ते लम्बे, आगे से गोलाई लिए चमच के आकर के होते हैं. ये कैक्टस के पौधों की वैराइटी का है. इसमें दूध या लैटेक्स पाया जाता है. काम पानी में भी ज़िंदा रह सकता है.
वर्षों से लोग इसके दूध को रेचक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. दूध में कब्ज़ को दूर करने का गुण है. इसका  दो से पांच बूँद दूध भुने चने के पाउडर में मिला कर गोली सी बना कर खाने से कब्ज़ दूर हो जाता है. दूध के प्रयोग के अन्य तरीके भी हैं. लेकिन कभी भी इसका ताज़ा दूध सीधे ज़बान पर नहीं डालना चाहिए. तेज़ स्वाभाव के कारण ये दाने और छाले पैदा कर सकता है. दूध त्वचा पर लग जाने से त्वचा पर घाव हो सकते हैं, लाल पड़ जाती है, दाने निकल आते हैं.

दूध का प्रयोग तेल में मिला कर और उस तेल को पाक कर और छान कर एक्ज़िमा त्वचा पर दाद, सोराइसिस पर लगाने में करते हैं. इससे त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं.
कान के दर्द में इसके पत्तों  को आग पर गर्म करके, जब पत्ते कुम्हला जाते हैं और मुलायम पद जाते हैं, उनका पानी या रास निचोड़ कर दो तीन बूँद कान में डालने से आराम होता है.
कच्चे फोड़ों को पकाने के लिए इसका पत्ता सरसों का तेल लगाकर, आग पर गर्म करके फोड़े पर बाँधने से फोड़े पाक कर फूट जाता है.
जाड़ों में एड़ियां फट  जाने पर  जब उनमें क्रैक पड़ जाते हैं. थोहड़ के गूदे /सैप को सरसों के तेल में पकाकर, और गूदे को तेल में अच्छी तरह मिक्स करके लगाने से लाभ होता है.
इसको बगीचों के बाढ़ पर लगाने से काँटों के कारण सांप आने का खतरा नहीं रहता. इसलिए इसे common milk hedge भी कहते हैं. 

रविवार, 28 अगस्त 2016

केबू का पौधा

केबू का पौधा वार्षिक पौधों की श्रेणी में आता है. इसके नये पौधे कंद से निकलते हैं. गर्मी के मौसम मई - जून में नमी मिलने पर कंद से इसका पौधा निकलता है. इसकी पत्तिया चक्राकार में व्यवस्थित होती हैं. इसमें सफ़ेद रंग के फूल आते हैं जो घंटी के आकर के होते हैं लेकिन मुड़े हुए होते हैं जैसे घंटी को किसी ने बीच में से मोड़ दिया हो.

इसका स्वाभाव गर्म है. ज़्यादातर इसकी जड़ प्रयोग की जाती है. हमोराइड के रोग को दूर करने में इसकी जड़ का प्रयोग किया जाता है. ये अत्यंत तीखे स्वाभाव की होने के कारण बिना चबाये पानी से बहुत काम मात्रा में निगल ली जाती है. लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले किसी हकीम, वैद्य की सलाह लेना ज़रूरी है.

जड़ अपने तेज़ स्वाभाव के कारण पेट के कीड़ों को मारकर निकल देती है. कुछ लोग इसकी जड़ या कंद को उबाल कर खाते भी हैं. लेकिन इसका प्रयोग कम मात्रा में किया जाता है. 

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