कपूर को काफूर भी कहते हैं। ये बाजार में सफेद टुकड़ों के रूप में मिलता है. इसकी विशेष गंध होती है जो बहुत तेज़ होती है. कमरे में अगर कपूर रखा हो तो इसकी गंध दूर तक फैल जाती है. यह बहुत ज्वलनशील होता है. इसे तमाशा दिखने वाले जीभ पर जलाकर दिखते हैं.
बाजार में मिलने वाला कपूर सिंथेटिक होता है और नकली रूप से बनाया जाता है. असली कपूर वृक्ष से प्राप्त किया जाता है जो सफेद डलियों की शक्ल में होता है. कपूर का वृक्ष बड़ा होता है और इसकी आयु भी बहुत होती है. ये चीन, जापान, ताइवान, भारत लंका आदि में पाया जाता है. इसके वृक्ष में भी कपूर की गंध आती है. इसकी लकड़ी के टुकड़ों को पानी में उबालकर इसकी भाप को ठंडा करके कपूर प्राप्त किया जाता है.
कपूर के वृक्ष का वैज्ञानिक नाम Camphora officinarum है. इसमें सफेद फूल खिलते हैं और बाद में छोटे आकर के फल लगते हैं जो काले रंग के करी पत्ते के फलों की तरह होते हैं.
कपूर की लकड़ी में कीड़ा नहीं लगता. इसकी गंध से कीड़े, मकोड़े दूर भागते हैं. दवाओं में कपूर का प्रयोग लगाने में किया जाता है. ये फंग्सनाशक और कीटाणुनाशक है. खुजली के लिए इसे नारियल के तेल में मिलाकर लगते हैं. यह ठंडक उतपन्न करता है और खुजली को आराम देता है. नाखूनों का कला पड़ना जो अक्सर फंगस की वजह से होता है के लिए कपूर को नारियल के तेल या वैसलीन में मिलाकर लगाना लाभ करता है.
सर के दर्द, नज़ला ज़ुकाम, दर्द निवारक बाम में कपूर भी मिला होता है. नहाने के मेडिकेटेड साबुन में भी कपूर का प्रयोग किया जाता है.
कपूर को कभी भी खाने की दवा के रूप में प्रयोग न करें। ये बहुत हानिकारक हो सकता है.