सोमवार, 8 अगस्त 2022

कायफल Myrica esculenta

 कायफल एक मध्यम ऊंचाई का वृक्ष है जिसका घर हिमालय का क्षेत्र गढ़वाल, कुमाऊं नेपाल और भूटान है. ये पहाड़ों की ऊंचाई पर 1000 से 2000 फिट की ऊंचाई पर उगता है. ये उत्तराखंड का विशेष फल है और वहां बहुत चाव से खाया जाता है. इसे काफल कहते हैं. 

ये फल छोटे, गोल आकार के पकने  लाल रंग के हो जाते हैं. इन फलों का सीज़न अप्रैल, मई का होता है जब मार्केट में ये बहुतायत से मिलते हैं. 

लेकिन दवाओं में इसकी छाल का प्रयोग होता है. इसकी छाल कायफल के नाम से बाजार में मिलती है. जड़ी बूटी बेचने वाली दुकानों से मांगने पर कायफल की छाल ही मिलती है. इसके लिए अलग से कायफल की छाल कहने की आवश्यकता नहीं है. 

कायफल की छाल का प्रयोग दवाओं में किया जाता है. इसका स्वाद कड़वा होता है और इसका प्रभाव गर्म तर है. दांतों की समस्याएं, दांतों से खून पीप निकलना, मसूढ़ों की सूजन में इसकी छाल का काढ़ा बनाकर गार्गल करने से लाभ होता है. 

कायफल की छाल एंटीसेप्टिक का कार्य करती है. इसका पाउडर बनाकर घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी भर जाते हैं और उनमें सड़न नहीं होती. 

एक आदमी बहुत पुराने नज़ला ज़ुकाम से परेशान था. दादी ने उसे कायफल की छाल का पाउडर बनाकर उसे एक पोटली में बांधकर दे दिया. उससे कहा की इस पोटली को हाथ में रखो और जब तब सूंघते रहो. उसने ऐसा ही किया. कायफल की छाल का पाउडर सूंघने से उसे बहुत छींकें आयीं और पुराना ज़ुकाम बह गया. फिर दादी ने उसे कुश्ता मरजान, खमीरा मरवारीद में मिलकर खाने को कहा. पुराना ज़ुकाम जो किसी दवा से नहीं जाता था, ठीक हो गया. 


कायफल की छाल से बना तेल जोड़ों के दर्दों के लिए भी लाभकारी है. इसे लगाकर सिंकाई करें और गर्म पट्टी बांधें. 

कायफल एक फल ही नहीं एक कमाल की दवा है. 

रविवार, 7 अगस्त 2022

हाथीसूँडी बूटी Heliotropium indicum

 हाथीसूँडी एक जड़ी बूटी है जो खली पड़े स्थानों, खेतों और सड़कों के किनारे उगती है. इसका मौसम जून जुलाई से अक्टूबर तक का है. इसमें लम्बी शाखाओं में गुच्छों में फूल लगते हैं. ये फूलों की शाखाएं हाथी की सूंड से मिलती जुलती होने के कारण इसे हाथीसूँडी बूटी कहते हैं. 

इसका प्रयोग पुराने हकीम चांदी की भस्म बनाने में करते थे. हकीम चांदी की भस्म को कुश्ता नुकरा कहते हैं. इसे शक्तिवर्धक और खून की कमी दूर करने में प्रयोग किया जाता है. इस बूटी के पत्तों को कुचल कर पेस्ट बनाकर उसमें चांदी के पतले टुकड़ों को जिसे चांदी का पत्रा कहते थे लपेटकर एक मिटटी के बर्तन में रखकर उसे अच्छी तरह कपड़मट करके सुखाने के बाद आग में फूँक लेते थे. इससे चांदी के बारीक़ पत्र खील खील हो जाते थे इसे ही चांदी का कुश्ता कहते थे. 


ये बूटी ताज़े घाव से खून को बंद करने और घाव को सुखाने में बहुत कारगर है. पुराने घाव भी इसके पत्तों का रस लगाने से ठीक हो जाते हैं. इसके स्वभाव गर्म-तर है. जिन महिलाओं को मासिक धर्म की समस्या हो, इसके पत्तों और जड़ का जोशांदा बनाकर पिलाने से मासिक खुलकर आता है. अधिक सेवन करने से गर्भवती महिलाओं को गर्भपात हो जाता है. इसलिए इस बूटी को गर्भवती महिलाऐं इस्तेमाल ने करें. 

इसकी जड़ का जोशांदा खांसी और बुखार में भी लाभ करता है. कहते हैं कि बारी का ज्वर जिसे मलेरिया कहते हैं हाथीसूँडी के सामने टिक नहीं सकता. ये बूटी ऐसे मौसम में पैदा होती है जिस मौसम में मलेरिआ का प्रकोप होता है. पुराने जानकार इस बूटी के जोशांदे के साथ काली मिर्च और तुलसी के पत्तों की गोली बनाकर इस्तेमाल करते थे और मलेरिआ छूमन्तर हो जाता था. 

आंखो की सूजन में इसके पत्तों को कुचलकर, आंख बंद करके ऊपर बांधने से आराम मिलता है. लेकिन ये ज़रूर देखलें की पत्ते साफ हों और उनमने गंदगी न हो. 

हाथीसूँडी जोड़ों के दर्द में भी लाभकारी है. इसका तेल बनाकर या फिर जड़ को पीसकर दर्द वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है. 


शनिवार, 6 अगस्त 2022

अश्वगंधा Withania somnifera

अश्वगंधा एक छोटा हर्ब है. इसे दवाई के लिए उगाया भी जाता है और ये जंगली पौधों की तरह भी उगता है. इसके फल या बीज पककर लाल रंग के हो जाते हैं और रसभरी की तरह एक कवर में बंद होते हैं. इनका आकार मकोय के बराबर होता है. इन फांफ में छोटे बीज भरे होते हैं. 

इसकी जड़ों को दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी ताज़ी जड़ों से घोड़े की गंध आती है इसलिए इसे अश्वगंधा या घोड़े की गंध वाली बूटी कहते हैं. इस पौधे से पुराने वैद्य खूब वाकिफ थे और वे ही इसे दवाई के रूप में प्रयोग करते थे. फिर इस दवा को हकीमों ने इस्तेमाल करना शुरू किया और वे भी इसके गुणों से परिचित हो गये और उन्होंने माना की अश्वगंधा कमाल की दवा है. 

इसे हकीमों ने असगंध कहा और यही नाम प्रचलित हो गया. नागौर के इलाके की अश्वगंधा बहुत कारगर मानी जाती है इसलिए हकीम इसे असगंध नागौरी लिखते हैं. 

बाजार में ये छोटी लकड़ियों के रूप में मिलती है. ये इसकी सुखी जड़ें होती हैं. इनका रंग क्रीम, भूरा होता है. पीसने पर आसानी से पिस कर पाउडर बन जाती हैं. इनमें रेशे भी नहीं होते. बाजार में इसका पाउडर भी मिलता है जिससे कूटने पीसने के झंझट से छुटकारा मिल जाता है. 

अश्वगंधा का इस्तेमाल घोड़े की तरह बल उतपन्न करता है. इसका पाउडर 1 से 3 ग्राम की मात्रा तक उपयोग किया जा सकता है. ये रक्त में हीमोग्लोबिन को बढ़ाता है और मांस पेशियों को मज़बूत करता है. 

जो लोग नींद की कमी, बेचैनी, घबराहट, डिप्रेशन का शिकार हैं अश्वगंधा उनके लिए बहुत लाभकारी टॉनिक का काम कर सकता है. 

इसके इस्तेमाल से दिल की ही नहीं, दिमाग की सेहत भी दुरुस्त रहती है. ये पुरुषों में कामोद्दीपन करने में सक्षम है. इससे टेस्टोस्टेरोन की मात्रा बढ़ती है और ज़िंदगी जीने की इच्छा बलवती होती है. जो लोग ज़िंदगी से मायूस हो चुके हों अश्वगंधा उनका बेहतरीन साथी है. ये मूड को फ्रेश करता है और अच्छी नींद लाने में मदद करता है. 

ये जोड़ों के दर्दों, कमर दर्द, स्त्रियों के श्वेत प्रदर, की अचूक दवा है. अश्वगंधा और सुरंजान का चूर्ण समान मात्रा में मिलकर खाने से जोड़ों और कमर के दर्द से छुटकारा मिल जाता है. 

ये लिवर के लिए भी अच्छी दवा है. शरीर से ज़हरीले माद्दे निकलकर शरीर को डिटॉक्स कर देता है. 

होम्योपैथी वाले भी इसे इस्तेमाल कर रहे हैं. अश्वगंधा मदर टिंक्चर में बाजार में मिलता है. 

अजीब बात है कि अश्वगंधा की जड़ों में बहुत गुण हैं लेकिन इसके फल और बीज अगर खाए जाएं तो बहुत नुक्सान करते हैं. उलटी और पेट में दर्द शुरू हो जाता है. 

अश्वगंधा को किसी काबिल हकीम या वैद्य की निगरानी में ही इस्तेमाल करें.  

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