शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

शीकाकाई - एक नेचुरल माउथ वाश

शीकाकाई एक कांटेदार पौधा है. इसकी पत्तियां इमली से मिलती जुलती  हैं. इसकी फलियां बीज के स्थान पर फूली हुई होती हैं. शीकाकाई की फलियां प्राकृतिक साबुन और बालों को धोने के लिए शैम्पू की तरह प्रयोग की जाती हैं. इसकी पत्तियां स्वाद में इमली की पत्तियों की तरह खट्टी होती हैं.
शीकाकाई की फलियों से बीज निकाल कर उनका पाउडर बना लिया जाता है. इस पाउडर को पानी में भिगोकर इसे हिलाकर झाग पैदा करके बालों में शैम्पू की तरह लगाया जाता है. शीकाकाई के साथ सामान मात्रा में रीठा या सोपनट का पाउडर, और आमला का पाउडर मिलकर पानी में पेस्ट बनाकर बालों में लगाने से न केवल अच्छे शैम्पू का काम करता है बल्कि बालों को कला और चमकदार भी बनाता है.
शीकाकाई पानी में भिगोने से हल्का झाग देती है. सोपनट या रीठा में ज़्यादा झाग होता है. इन दोनों को मिलकर या अकेला गर्म कपडे धोने के काम में लाया जाता है. शीकाकाई और रीठा दोनों ऊनी और रेशमी कपड़ो को धोने  के लिए बेहतरीन हलके प्राकृतिक  डिटर्जेंट हैं. ये कपडे के रेशे ख़राब नहीं करते.
देसी दवाओं में शीकाकाई का प्रयोग अंदरूनी तौर पर 2 - 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में तीन बार इस्तेमाल करने से पीलिया रोग में लाभ करती हैं.  ये ब्लड में से टॉक्सिन निकाल देती है.
शीकाकाई की पत्तियां खट्टी होती हैं. इनकी चटनी बनाकर प्रयोग की जाती है. इसकी चटनी को भी लिवर के रोगों में लाभकारी माना  जाता है.
शीकाकाई स्किन के घाव को भर देती है. दाग धब्बे दूर करती है. शीकाकाई को हल्के गर्म  पानी में भिगोकर छान कर इस पानी से गारगल करने से दांतो और मसूढ़ों की बीमारियों में लाभ होता है. ये एक प्राकृतिक  माउथ वाश है.
इस पौधे के फूल और पत्तियां सब्ज़ी के रूप में भी प्रयोग की जाती हैं. भोजन को खट्टापन देने के लिए भी इसकी पत्तियों का प्रयोग होता है.
इस हर्ब की अजीब बात ये है कि  इसे तालाबों में मछली पकड़ने के लिए डाला जाता है और तब ये जड़ी बूटी विष का कार्य करती है.



गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

जटामांसी

जटामांसी को बालछड़  भी कहते हैं. इस जड़ी बूटी का प्रयोग पुराने ज़माने से आयुर्वेद  और यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता है. इसका पौधा हिमालय के पहाड़ों में पैदा होता है. इसकी जड़ को दवा के रूप में प्रयोग करते हैं. इसकी जड़ के बारीक रेशे बालों के समान होते हैं. इसीलिए इसे बाल - छड़ या बालों की छड़ी और जटामांसी यानि मनुष्य के बाल कहते हैं.

ये अपनी आकृति के अनुरूप बालों को बढ़ाने   वाली, उन्हें कला, घना और मुलायम रखने वाली जड़ी बूटी है. इसकी जड़ का प्रयोग पाउडर के रूप में बालों को धोने, और शैम्पू के अव्यव के रूप में होता हैं. इसका तेल बालों को घना बनाता  है.
ये दिमाग को शक्ति देती है. उलझन, घबराहट, उदासी दूर करती है. इसका इस्तेमाल एपिलेप्सी या मिर्गी के रोग में किया जाता है.
बालछड़ को यूनानी हकीम पेशाबआवर यानि डाययुरेटिक और दर्द निवारक दवा के रूप में प्रयोग करते हैं. हकीमों के अनुसार ये जिगर यानि लिवर को ताकत देती है. पेट की बीमारीयों में लाभकारी है. यूनानी दवाओं में बालछड़ पेट की बीमारियों की दवाओं का एक आवशयक अव्यव है.
बालछड़ लिवर को शक्ति देता है. ये पीलिया रोग और लिवर के बढ़ जाने में इस्तेमाल किया जाता है.
बालछड़ चेहरे के दाग धब्बे मिटाता है. इसके लिए बालछड़ को बारीक पीसकर उसका पाउडर और सफ़ेद चन्दन का बुरादा समान मात्रा में  दूध में मिलाकर, पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाया जाता है और जब ये लेप सूखा जाए तो पानी से धोकर साफ कर दिया जाता है. कुछ दिन में चेहरे के दाग धब्बे मिट जाते हैं.


  

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

हल्दी

हल्दी या टर्मरिक एक साल भर में पैदा होने वाली फसल है. इसका प्रयोग बहुतायत से मसालों में किया जाता है. इसका रंग खिलता हुआ पीला होता है. हल्दी को राइज़ोम से उगाया जाता है. यह राइज़ोम मार्च के महीने से मई तक लगा दिए जाते हैं. बारिश के पानी से इनसे हल्दी के पौधे निकलते हैं. ये बारिश में बढ़ने वाली फसल है. बरसात में यह खूब बढ़ती है. इसकी जड़ों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है. उसमें ही हल्दी के ट्यूबर  या राइज़ोम पैदा होते हैं.

हल्दी छायादार जगह में भी आसानी से उग आती है और बढ़ती है. अक्टूबर- नवम्बर में इसके पौधे सूख जाते हैं. फरवरी से मार्च तक इसकी खुदाई करके फसल निकली  जाती है. कच्ची हल्दी को मार्केट में लाने से पहले इसे उबालकर सुखा लिया जाता है.
हल्दी चाहे कच्ची हो या बाजार में मिलने वाली सुखी हल्दी ये एक गुणकारी मसाला ही नहीं एक बहुत गुणकारी दवा भी है. हल्दी चोट में लाभ करती है. इसमें शरीर के दर्दों को दूर करने की शक्ति है. चोट के स्थान पर हल्दी के साथ चुना मिलकर, दोनों का पेस्ट बनाकर, थोड़ा गर्म करके चोट के स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है. एक गिलास दूध के साथ हल्दी के एक चमच पाउडर का प्रयोग जोड़ों के दर्द और चोट, मोच के दर्द में लाभ्कारी है.
हल्दी के पाउडर को सामान मात्रा में दूध की मलाई में अच्छी तरह मिलकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाने से चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं और चेहरा चमक जाता है.
हल्दी को मोटा मोटा कूट कर थोड़े पानी और सामान मात्रा में अल्कोहल मिलाकर रख देते हैं. तीन दिन बाद  इस मिश्रण को  फ़िल्टर कर लेते हैं. ये चोट और घाव के लिए अच्छा लोशन बन जाता है. हल्दी कैंसर रोग में भी लाभदायक है. हल्दी में पाये जाने वाले तत्व कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. ऐसे रोगी जो अभी कैंसर की पहली, दूसरी अवस्था में हों उन्हें शुद्ध हल्दी के पाउडर का प्रयोग एक से तीन ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में चार बार पीने से लाभ मिलता है.
लेकिन ये ज़रूरी है की ऐसे मामले में हल्दी का पाउडर वह हो जो खुद बाजार में मिलने वाली हल्दी की गांठों को धोकर सूखा कर, और फिर ग्राइंड करके बनाया जाए, क्योंकि बाजार में मिलने वाली पिसी  हल्दी में अशुद्धियाँ होती हैं, मिलावट के अलावा इसमें लापरवाई से पीसने पर धनिया  और मिर्च  मिल जाती है. या फिर हल्दी में रंग मिला दिया जाता है. ऐसे हल्दी सिवाए नुकसान के और कुछ नहीं करती.  
 

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