रविवार, 12 जून 2016

जामुन

जामुन एक बड़ा पेड़ है. इसे जामन, फलैंदा, कल जाम भी कहते हैं. छोटी नस्ल के जामुन को कथा जमन और बड़ी नस्ल के जामुन को फलैंदा कहते हैं. आम पर बौर आने के बाद इस पर बौर या फूल आता है. जून माह में जामुन पकने लगते हैं. बरसात होते ही ये फूलकर बड़े बड़े और रसीले हो जाते हैं. इनका रंग वॉयलेट, जामुनी या काला  होता है. अपने जामुनी रंग के कारण ही इसे जामुन कहते हैं.
जामुन की लकड़ी बहुत खरी या जल्दी टूटने वाली होती है. जामुन के पेड़ पर चढ़ना बहुत जोखिम भरा है. मोटी डालें भी टूट जाती हैं. आंधी में भी इसकी डालें जल्दी फट जाती हैं. आंधी में जामुन के पेड़ से दूर रहेँ
जामुन लीवर और पैनक्रियास  के लिए फायदेमंद है. ये शुगर लेवल को कंट्रोल करता है. लीवर को ताकत देता है. ये पाचन में सहायता करता है. आम खाने के बाद अगर कुछ जामुनें खाली जाएं तो आम आसानी से पच जाता है. जामुन की गुठली का पाउडर खाने से डायबेटिस में लाभ होता है. कुछ लोग जामुन के गुठली का पाउडर, गुड़मार बूटी का पाउडर और सदाबहार का पाउडर मिला कर डायबेटिस के लिए इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोगों को जामुन की गुठली सूट नहीं करती और पेट ख़राब हो जाता है.
जलने के बाद जो सफ़ेद दाग पद जाते हैं उनपर जामुन की अंतर छाल पानी में बारीक पीस कर लगाने से स्किन का रंग ठीक हो जाता है. लेकिन ये पुराने दागों में फ़ायदा नहीं करती.
जामुन में खून के बहाव को बंद करने का गुण है. इसकी छाल को पानी में पकाकर गारगल करने से दांत और मसूढ़े मज़बूत होते हैं और मुंह के छालों में आराम मिलता है.

गुरुवार, 9 जून 2016

शहतूत जंगली

शहतूत जंगली मध्य ऊंचाई का पौध है. ये बीज से उगता है. इसकी लकड़ी बहुत लचीली होती है. छोटी शाखा को एक रिंग की तरह मोड़ा जा सकता है और वो टूटती नहीं है. इसमें ज़्यादातर दो तरह के शहतूत लगते हैं. एक वैराइटी में सफ़ेद और दूसरी में लाल जो पककर काले हो जाते हैं.
जंगली शहतूत छोटे छोटे होते हैं. बागों में बोया जाने वाला शहतूत जिस पर रेशम के कीड़े भी पाले जाते हैं, लम्बा होता है और बहुत मीठा भी होता है. फरवरी माह में पतझड़ के बाद जंगली शहतूत लगने लगते हैं. मार्च अप्रैल में ये पाक जाते हैं. और खाने के काबिल हो जाते हैं. स्वाद कुछ खट्टा कुछ मीठा होता है.
शहतूत जंगली हो या काश्त किया हुआ दोनों के गुण लगभग सामान हैं. शहतूत प्रकृति से ठंडा होता है. इसका सीरप गले के दर्द में आराम पहुंचता है. शहतूत का सेवन त्वचा को चमक  देता है.और  त्वचा से झुर्रियों को दूर करता  है. इसमें ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो एजिंग प्रोसेस पर कंट्रोल करते हैं और असमय बुढ़ापे से बचाते हैं. ये पेट की गर्मी को शांत करता है और एसीडिटी में फायदा पहुंचाता है. इसका रस होटों पर लगाने  से होंटों की नरमी और  सुंदरता बनी रहती है. 

रविवार, 5 जून 2016

आड़ू के फायदे

आड़ू एक मौसमी फल है. फरवरी - मार्च में इसका पौधा खूबसूरत कलियों और फूलों से लद जाता है. उस समय पेड़ में पतझड़ हो चुका  है. पेड़ में फूल ही फूल दिखाई देते हैं.
आड़ू के फल मई जून में पक़ जाते हैं. ये थोड़ी कच्ची अवस्था में ही खाने के लायक होते हैं. बरसात में ज़्यादा पके आड़ू के फल खराब हो जाते हैं. इनमें कीड़े पद जाते हैं और खाने के लायक नहीं रहते.
आड़ू रक्त को साफ़ करता है. यह पेट के लिए फायदेमंद है. आड़ू दिल को ताकत देता है और ब्लॅड प्रेशर को कम करता है. इसके पत्तों का काढ़ा पेट के कीड़े मारता है. लेकिन खाली पेट आड़ू का सेवन गैस बनता है. कभी कभी इसके खाने से एसीडिटी भी हो जाती है. 
आड़ू का पौध मीडियम ऊंचाई का होता है. इसे बीज या फिर कटिंग से उगाया जाता है. तीन साल में ये फल देने लगता है. लेकिन आड़ू के पौधे की आयु ज़्यादा नहीं होती फल देने के आठ दस सालों बाद ये ख़राब हो जाता है. इसलिए इसके नए पौधे ही अच्छे होते हैं और उनमें  फल भी ज़्यादा आते हैं. 



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