बुधवार, 1 जून 2016

अंजीर जंगली

अंजीर
अंजीर जंगली आम तौर से जंगलों और खाली पड़ी जगहों पर उगता है. इसके पत्ते बड़े बड़े कटे फटे और खुरदुरे होते हैं. इस पौधे में भी दूध पाया जाता है. इसलिए यह खराब और सूखे मौसम में भी बचा रहता है. इसके फल गूलर के आकर के लेकिन उससे छोटे होते हैं. कच्चे फल हरे और सूख कर बैंगनी रंग के हो जाते हैं. फलों के अंदर इसके बहुत बारीक बीज होते हैं. इस बीजों का आवरण सख्त होता है और खाने वाले के पेट में भी नहीं पचता है. यही कारण है की चिड़ियाँ इसे खाकर जहाँ कहीं बीट करती हैं, मौसम की उपयुक्त अवस्था पाकर पौध उग आता है. 
अंजीर जंगली का पौधा 

बाज़ार में मिलने वाला अंजीर बड़ी वैराइटी का होता है. अंजीर जंगली हो या काश्त किया हुआ उसके गुण धर्म एक सामान होते हैं. अंजीर के दूध को कबायली तोग दाद पर लगाते हैं. कहते हैं इसके लगाने से दाद समूल नष्ट हो जाता है. जंगलों में जानवर चराने वाले अंजीर के पत्तों का दौना बनाकर इसमें दूध लेकर कुछ बूँदें अंजीर के दूध की मिला देते हैं तो थोड़ी देर में दूध दही की तरह जम  जाता है. 
अंजीर कब्ज़ को दूर करता है. सूखे अंजीर दो से चार की मात्र में  पानी में भिगोकर खाने से कब्ज़ ठीक होता है. अंजीर और अखरोट साथ खाने पर जोड़ों का दर्द जाता रहता है. अंजीर का गन गर्म और तर है. गर्मी   सोच समझकर करना चाहिए. इससे गर्म स्वाभ वाले लोगों को नुक्सान हो सकता है. जाड़े के मौसम में अंजीर का इस्तेमाल फायदेमंद है. 

मंगलवार, 31 मई 2016

जलजमनी बूटी

जलजमनी

जलजमनी बूटी एक बेल है जो बरसात के मौसम से ठीक पहले अप्रैल, मई के महीनों में उगना शुरू होजाती है. इसका दूसरा नाम शेख फरीद बूटी भी है. कुछ स्थानों पर इसे निर्बिसी भी कहा जाता है. इसकी जड़ ज़मीन में पौधा सूख जाने के बाद  बहुत दिनों तक सुरक्षित  रहती है और उपयुक्त मौसम आने पर जड़ से बेल फूट निकलती है और पास के पौधों पर चढ़ जाती है.
ये बरसात  के मौसम में बहुतायत से पाई जाती है. इसका स्वाद फीका होता है. इसका अजीब गुण  ये है कि  ये पानी को जमा देती है. पानी जमाने का कमाल दिखाने के लिए इसके पत्तों को एक सूती कपडे में बांध कर ढीली सी पोटली बनालें. फिर उसे पानी में डाल कर पत्तों को हाथ से मसलें जिससे पत्तों का हरा रस  निकल कर पानी में मिल जाए. पत्तों को इतना रगड़ा जाए कि पानी का रंग गहरा हरा हो जाए. अब इस पानी को बर्तन में बिना हिलेडुले पंद्रह से बीस मिनट रखा रहने दें. पानी ऐसा जम जाएगा जैसे दही.

मजमा लगाने वाले इसी तरकीब से पानी को जमा देते हैं. इस पानी को टुकड़ों में चाकू से काटा जा सकता है. मजमा लगाकर दवाएं बेचने वाले इस बूटी का यही कमाल दिखाकर शक्तिवर्धक दवाएं बेचते हैं. 
ये बूटी खून को साफ़ करती है और गुण में ठंडी होने के कारण गर्मी से होनो वाले रोगों में लाभकारी है. पानी ज़माने के गुण के कारण ये शक्तिवर्धक के रूप में भी प्रयोग की जाती है. 

सोमवार, 30 मई 2016

गुर्च की बेल Tinospora Cordifolia, Giloy

इसके दुसरे नाम गिलोय, गुर्ज, गुरज, गिलो, गुडूची  आदि हैं. ये एक  बेल है जिसके पत्ते पान से मिलते जुलते होते हैं. ये पास के पेड़ पौधों, दीवारों पर चढ़ जाती है. इसका स्वाद कड़वा होता है. नीम के पेड़ पर चढ़ी हुई गिलो को गिलोय नीम  कहा जाता है और ऐसी गिलो गुणों में उत्तम मानी जाती है. ये बहुत आसानी से जड़ जड़ पकड़ लेती है. इसकी शाखा काटकर कर रख देने से महीनों  सूखती नहीं है. बरसात के मौसम में इसमें हवाई जड़ें फूटती हैं. रखी हुई शाखा  भी हरी हो जाती है और ज़मीन में लगाने पर पौधा परवान चढ़ जाता है.
इसमें बहुत छोटे फूल  भी खिलते हैं. बाद में. मटर के आकर के हरे गोल बीज लगते हैं जो पक कर लाल हो जाते हैं. दवाओं में इसकी  डंडी  या शाखा प्रयोग की जाती है. इसकी शाखा को कुचलने पर इसमें से चिपचिपा लेसदार रस निकलता है. गिलो का ये चिपचिपा लेसदार रास ही औषधीय गुणों से भरपूर होता है. गिलो को अन्य दवाओं के साथ पकाकर या पानी में भिगोकर ऐसे ही बिना पकाये सेवन किया जाता है.
गिलो बुखार की प्रसिद्ध देसी दवा है. ज़ुकाम के लिए दिए जाने वाले जोशांदे या काढ़े  में गिलो की दो से चार इंच की शाखा कुचलकर डाल दी जाती है और जोशांदे के साथ पकाकर गुनगुनी हालत में पीने से बुखार में लाभ होता है. बुखारों के लिए जो पुराने हों गिलो नीम का चार इंच का टुकड़ा शाम को कुचल कर थोड़े पानी में भिगोकर रख दिया जाता है और सुबह को वही पानी पिलाने से बरसों पुराना बुखार जाता रहता है. बुखार के अलावा गिलो जिगर के रोगों में भी लाभकारी है. हकीम युपियावी ने एक  आदमी को जो पुराना हिपैटाईटीस का मरीज़ था  गिलो का घोटा बताया था. गिलो को घोटकर काली मिर्च मिलाकर दिन में तीन बार पीना था. गिलो के रस में शहद मिलाकर सुबह शाम पीने से पेट के रोग ठीक होते हैं. ये रेसिपी खून साफ़ करने में भी मदद करता है. 
बाजार में सत गिलो के नाम से एक सफ़ेद सा पाउडर बिकता है. कहा जाता है की ये सत गिलो असली नहीं होता. इसे इस्तेमाल करने से गिलो का नाम बदनाम होता है क्योंकि ये कोई फायदा नहीं करता. ज़रूरी है कि सत गिलो खुद बनाया जाए जो एक मेहनत का काम है. 


सत गिलो बनाने के  लिए गिलो के टुकड़े काट लें और उन्हें अच्छी तरह कुचलकर पानी में कई दिन भिगो दें. रोज़ पानी को अच्छी तरह हिला दिया करें. उसके बाद पानी को छानकर अलग करलें और खोजड फ़ेंक दें. फिर इस पानी को हलकी आंच पर धीरे धीरे सुखाएं जब पानी सूखते सूखते बहुत काम रह जाए तो आग से उतार लें और हवा या  धुप में धूल से बचाकर किसी फैले बर्तन जैसे थाली आदि में रखदे. ये धीरे धीरे सूख जाएगा.  बर्तन की तली में एक पदार्थ सा जमा हुआ होगा उसे खुरचकर निकाल लें यही सत  गिलो है जो बाजार के सत  गिलो जैसा सफ़ेद नहीं होगा लेकिन असली होगा. इसे आप बुखारों और जिगर / लीवर के रोगों में समझदारी से इस्तेमाल कर सकते हैं. 
बुखार के लिए सत गिलो, बंसलोचन, समान भाग मिलाकर रखलें. ये दवा 2 से 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलकर दिन में 3 से 4 बार इस्तेमाल करने से पुराने बुखारों में भी लाभ होता है. 
कहते हैं की गिलो का थोड़ी मात्रा में नियमित सेवन करने से बुढ़ापा जल्दी नहीं आता और चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़तीं हैं. 
गिलो अपने गुणों के कारण अमृत के सामान है इसलिए इसका एक नाम अमृता भी है. या फिर क्योंकि ये बेल बिना सूखे बहुत दिनों तक हरी रहती है और बहुत आसानी से जड़ पकड़ लेती है इसलिए इसके अमृत्व गुण के कारण  ही इसका नाम अमृता पड़ा है. 


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