रविवार, 8 सितंबर 2019

बेरी और झड़बेरी

 बेर के पेड़ को बेरी कहते हैं. बेर एक बहुत आम पौधा है. ये कांटेदार होता है. आसानी से उग आता है. इसे शुष्क ज़मीन और शुष्क मौसम पसंद है. इसलिए रेगिस्तानी इलाको और चट्टानी जगहों पर हो जाता है. इसको बरसात के अलावा पानी के भी ज़्यादा ज़रुरत नहीं है. बरसात गुजरने के बाद इसमें छोटे छोटे फूल गुच्छो में लगते हैं. जिन्हे बेरी के खिचड़ी कहा जाता है. उसके बाद ये पौधा फलों से भर जाता है. ये फल जाड़े के मौसम में पक जाते है. इन फलों को बेर कहते हैं.
बेरी की बहुत सी किस्में हैं. बेरी के छोटे आकर के झाड़ीनुमा पौधों को झड़बेरी कहते हैं. ये पौधे रेलवे लाइनों और सड़कों के किनारे और खली पड़े शुष्क स्थानों पर उग आते हैं. इनमें छोटे आकर के गोल या अंडाकार फल लगते हैं जो पकने पर गहरे लाल  रंग के हो जाते हैं. यही फल झड़बेरी के बेर कहलाते हैं.
कलमी बेर बड़े आकर के होते हैं. सेब के आकर के बड़े बड़े बेर भी बाजार में मिलते हैं. ये बेर काफी बड़े होते हैं.
बेर के पौधे के कम पानी चाहिए होता है. हे सूखे स्थानों में आसानी से हो जाता है. इसके लिए बरसात का पानी ही काफी है.
बेरी के पत्ते पीसकर सर में लगाने से झड़ते बालों के समस्या से छुटकारा मिलता है. इसके लिए बेरी के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर शैम्पू के तरह बालों को धोया जाता है. बेर में बहुत से खनिज जैसे लोहा, मैग्नीशियम, कैल्शियम, ज़िंक आदि पाया जाता है. ये दांतो और हड्डियों के लिए फायदेमंद है. रक्त के प्रवाह को बढ़ता है और रक्त में धक्का नहीं बनने देता.
बेर में चिपचिपापन होता है. इस कारन ये आँतों के लिए फायदेमंद है. जिनको कब्ज़ रहता हो वे लोग सीज़न में पक्के बेरों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
बेर खाने और बेर के पक्के फलों को पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा कांतिमान बनता है.


मंगलवार, 30 जुलाई 2019

पुनर्नवा या सांठ

पुनर्नवा का मतलब है फिर से नया करना. ये एक जड़ी बूटी का नाम है जो बरसात में तेज़ी से सड़कों के किनारे और खली पड़े स्थानों पर उगती है. इसकी लम्बी लम्बी शाखें ज़मीन में फैलती चली जाती हैं. ये रेलवे लाइनों के किनारे भी मिल जाती है. ये एक ज़मीन पर फैलने वाला पौधा है. इसके पत्ते कुछ गोल, अंडाकार से होते हैं. इसमें बैगनी रंग के या फिर सफ़ेद फूल खिलते हैं.
इसकी शाखाए भी बैगनी या लाल रंग लिए हुए होती हैं. इसकी पहचान आसानी से की जा सकती है.
इसको अंग्रेजी भाषा में हॉगवीड  और वैज्ञानिक नाम बोर्हाविआ डिफ़युसा है. कहते हैं के शरीर को पुनः जीवन दान करने और नया बनाने के कारन ही इसका नाम पुनर्नवा पड़ा है. या फिर इसलिए की तेज़ गर्मी के दिनों में इसका पौधा सूख जाता है और बरसात आने पर फिर उग आता है. इसलिए भी इसे पुनर्नवा कहते हैं. कहीं कहीं इसे बिसखपड़ा और इटसिट  भी कहते हैं. लेकिन बिसखपड़ा के नाम से एक और पौधा भी जाना जाता है. जो खेतों में बरसात में खर पतवार के रूप में उगता है. इसलिए पुनर्नवा को अन्य पौधों से अलग पहचानना ज़रूरी है. कई बार एक नाम से भिन्न भिन्न जड़ी बूटियां अलग अलग स्थानों पर जानी जाती हैं. उनकी विशेष पहचान के लिए ही जड़ी बूटी का फोटो इस ब्लॉग में दिया जाता है.
पुनर्नवा का एक नाम सांठ भी है.

पुनर्नवा लिवर या जिगर के अच्छी दवा है. शराब पीने से ख़राब होने वाला लिवर इससे ठीक हो जाता है. लेकिन पहले शराब का छोड़ना ज़रूरी है. इसके लिए पुनर्नवा के पत्तों की सब्ज़ी बनाकर खाना चाहिए. पुनर्नवा शरीर सो टॉक्सिन यानि ज़हरीले पदार्थ निकाल देता है. ये पेशाब लाने वाली जड़ी है. गुर्दे के रोगों में फ़ायदा करती है. कहते हैं कि इसके इस्तेमाल से गुर्दे के रोगों में आराम मिलता है.
पुनर्नवा ब्लड प्रेशर घटाता है. शरीर और दिमाग को शांत करता और ठंडा रखता है.
पुनर्नवा दिल की सेहत को बनाये रखता है. इसका इस्तेमाल कोलेस्ट्रॉल का सही स्तर  बनाये रखता है. जो लोग स्वस्थ हैं वे अगर कभी कभी पुनर्नवा को सब्ज़ी के रूप में इस्तेमाल करते रहें तो बहुत से रोगों से बच सकते हैं.
पुनर्नवा ड्रॉप्सी के बीमारी जिसमें जिगर की खराबी के कारण पेट में पानी भर जाता है, के लिए उपयोगी है. इसके अलावा ये सूजन को दूर करता है. जिनका शरीर जिगर की  खराबी से सूज गया हो उन्हें नियमित पुनर्नवा के सब्ज़ी इस्तेमाल करनी चाहिए.
पुनर्नवा का नियमित इस्तेमाल शरीर और पेट के मोटापे को घटाता है. जो लोग मोटापे का शिकार हैं उन्हें इसकी सब्ज़ी खाना  चाहिए।
इसकी जड़ का पाउडर पेट के कीड़े मारकर निकल देता है.
पुनर्नवा एक सुरक्षित दवा है. एक ऐसी जड़ी हैं जिसकी जितनी भी प्रशंसा की  जाए कम  है. 



रविवार, 26 मई 2019

जंगल जलेबी

जंगल जलेबी एक बड़ा और कांटेदार वृक्ष है. सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इस पौधे के इनवेसिव पौधों की श्रेणी में रखा गया है. ये खुद-ब - खुद बीजो की सहायता से उग आता है और दूर दूर तक जंगल जलेबी का जंगल फैल जाता है.
इसकी लकड़ी का रेशा ऐंठा हुआ होता है. इसलिए इसके पेड़ सीधे नहीं होते. टेढ़े, तिरछे होते हैं. इसका तना भी ऊबड़ खाबड़ होता है. ये सूखी जलवायु को आराम से झेल लेता है. रेगिस्तानों और कम पानी वाली ज़मीनो में आराम से लग जाता है.
इसकी फलियां लम्बी लेकिन चक्रदार होती हैं. इसी लिए इसे जंगल जलेबी कहते हैं. जलेबी का आकार और मीठी होने की वजह से इसे ये नाम मिला हैं. कुछ लोग इसे मीठी इमली भी कहते हैं. इसकी फलियां पककर लाल हो जाती हैं  अंदर का गूदा फलियां फट जाने से बाहर दिखने लगता है. इस गूदे में काले काले बीज होते है. इन बीजों का आवरण चिकना और मज़बूत होता है. शुष्क ज़मीनो में ये कई साल तक पड़े रह सकते हैं. और आवश्यक नमी मिलने पर नए पौधे उग आते हैं.
जंगल जलेबी का स्वाभाव ठंडा और तर है. ये पेट के ढीलेपन को दूर करती है. पेचिश और दस्तों के मरीज़ों के लिए फायदेमंद है.
जंगल जलेबी के पेड़ की छल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है. इसकी छल का पाउडर सुबह शाम तीन से पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ इस्तेमाल करने से पुराने दस्त रुक जाते हैं.
जंगल जलेबी की दातुन करने से दांत मज़बूत होते हैं और उनसे खून आना बंद हो जाता है. 

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