तितली का पौधा रबी की फसल में गेहूं के खेतों में उगता है. इसकी पत्तियां छोटी इमली के पत्तों से मिलती जुलती लेकिन आगे से गोलाई लिए होती हैं. इसमें पीले रंग की फूल खिलते हैं. इसके बीज कवर के अंदर बंद होते हैं. बीज सूखने पर चटक कर बीज गिर जाते हैं और अगले साल जमने के लिए ज़मीं इन्हें सुरक्षित रख लेती है.
इसका दूसरा नाम सुदाब है. इसका पंचांग बर्गे सुदाब के नाम से देसी दवा के रूप में मिल जाता है. इसको अंग्रेजी भाषा में Common Rue कहते हैं. इसका साइंटिफिक नाम Ruta Graveolens है.
Ruta Graveolens को होम्योपैथी में भी इस्तेमाल किया जाता है. इसको हकीम बर्गे सुदाब जड़ी बूटी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. हकीमों के लिए ये आम तौर से इस्तेमाल होने वाली दवा है. जोड़ों के दर्द, खासकर कलाई और उंगलियों के दर्दों में बहुत कारगर है. इसका स्वभाव गर्म है. गर्म मिज़ाज होने के कारण इसके प्रयोग से रुका हुआ मासिक खुल जाता है. गर्भवती महिलाओं को इसके प्रयोग से बचना चाहिए.देहाती लोग बरसों से इसके दर्द निवारक प्रयोग से अच्छी तरह वाकिफ हैं. वह इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर शहद के साथ, थोड़ा सा गर्म करके जोड़ों पर लगाते हैं जिससे दर्दों में बहुत आराम मिलता है. इसके पंचांग को तेल में जलाकर , छानकर प्रयोग करने से भी दर्द ठीक हो जाता है
कहते हैं की चेहरे को लकवा मार जाए तो ताज़ा सुदाब की पत्तियों का रस निकलकर नाक में दो बून्द टपकाने से लकवा रोग में फ़ायदा होता है।
सुदाब त्वचा पर खराब असर दाल सकता है. कभी इसके प्रयोग से एलर्जी हो जाती है. त्वचा पर छाले पड़ जाते हैं. इसलिए सुदाब या तितली के पौधे को मामूली पौधा न समझें. इसका प्रयोग हकीम की निगरानी में ही करे तभी नुकसान से बचे रहेंगे.