गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

तुख्मे खुबाज़ी tukhme khubazi


तुख्मे खुबाज़ी मैलो जाति के पौधे के बीज हैं जो देसी, यूनानी दवाओं में प्रयोग किये जाते हैं. इसका पौधा छोटे आकार का खुदरौ यानि खाली पड़े स्थानों पर स्वयं उगने वाला होता है और इसकी खेती भी की जाती है. इसके बीज गोल आकार के बटन जैसे किनारों से उभरे और बीच से दबे हुए होते हैं. यूनानी दवाओं का एक मुख्य अव्यव है. नज़ले ज़ुकाम के लिए जो काढ़ा या जोशांदा दिया जाता है उसका एक मुख्य घटक है. 

जोशांदे में मुख्य रूप से सात दवाएं पड़ती हैं.  (1) गुलबनफ्शा जिसे लोग गुल बनकशा भी कहते हैं.  (2) तुख्मे खत्मी (3 ) तुख्मे खुबाज़ी (4 ) सपिस्ताँ जिसे लभेड़ा भी कहा जाता है. (5 ) उन्नाब (6 ) बर्गे गावज़बाँ (7 ) मुलेठी

गुलबनफ्शा के स्थान पर हंसराज का प्रयोग भी किया जाता है. हंसराज भी एक बहुत कारगर दवा है. यदि खांसी न हो तो मुलेठी डालने की भी ज़रूरत नहीं है. बुखार के लिए इसी जोशांदे में दो से तीन इंच का टुकड़ा गुर्च की बेल का भी कुचल कर डाल दिया जाता है. ये जोशांदा नज़ला ज़ुकाम, बुखार,गले की खराश, में फायदा करता है.  इसे ज़ुकाम और फ्लू से रक्षा के लिए भी पिया जाता है.

खांसी, बुखार, जुकाम के लिए आजकल इस काढ़े का प्रयोग किया जाता हैं, इसे खांसी जुकाम से बचाव के लिए भी प्रयोग किया जा रहा है: 

(1) हंसराज   (2) तुख्मे खत्मी (3 ) तुख्मे खुबाज़ी (4 ) सपिस्ताँ जिसे लभेड़ा भी कहा जाता है. (5 ) उन्नाब (6 ) बर्गे गावज़बाँ (7 ) मुलेठी (8) मुनक्का (9) गुर्च 

इन सब दवाओं को समान मात्र में लगभग हर दवा 10 ग्राम की मात्र में पानी के साथ पकाकर काढ़े के रूप में सुबह शाम दो समय प्रयोग की जाती है। ये देसी नुस्खा है। 

देसी जड़ी बूटियां नुकसान नहीं करतीं और इस जोशांदे में कोई ऐसी जड़ी बूटी नहीं है जो हानिकारक हो. लेकिन इसे हाकिम या वैद्य की सलाह से ही प्रयोग करना चाहिए. 

तुख्मे खुबाज़ी में बलगम को निकालने और फेफड़ों को शक्ति देने के गुण हैं. ये शोथ को घटाती है इसलिए फेफड़ों में ब्रोंकाइटिस की वजह से बारीक़ नालियों में जो सूजन आ जाती है ये उसे ठीक करती है और कफ आसानी से निकलने लगता है. गले की सूजन, गुर्दे की सूजन, लीवर की सूजन को घटाकर आराम दिलाती है. 

खुबाज़ी में त्वचा को कांति देने, घाव को भरने, ब्लड को साफ़ करने के गुण हैं. अन्य दवाओं के साथ प्रयोग करने पर ये स्किन की बीमारियों जैसे खुजली, फोड़े, एक्ज़िमा आदि से निजात दिलाती है. 

तुख्मे खुबाज़ी का यूनानी दवा में बहुतायत से प्रयोग होता है.  

डिसक्लेमर 

इस ब्लग में जो भी जानकारी दी गयी है वह  देसी दवाओं, पौधों, और जड़ी बूटियों के बारे में  ज्ञान बढ़ाने के लिए है। इसका प्रयोग बिना वैद्य, हकीम, डाक्टर की सलाह से न किया जाए।  

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

डोडा बंडाल

घुसलाइंद,  घुसलता, और बंडाल एक बेल के नाम हैं. डोडा बंडाल इस बेल के फल को कहते हैं. ये बेल बरसात में बढ़ती है और पास की झाड़ियों पर चढ़ जाती है. लोग इसे कुछ अहमियत नहीं देते. लेकिन ये कमाल की दवा है. इसका जितना भी मूल्य लगाया जाए कम है, क्योंकि इसका कोई जोड़ नहीं. 


जड़ी बूटियों के जानने वाले और इसकी खासियत से वाक़िफ़ लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके पत्ते तुरई के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. इसमें सफ़ेद रंग का फूल आता है. इसका फल कांटेदार होता है. इसके पत्तों पर भी कांटे या रुआं सा होता है. लेकिन इसके फल के कांटे हाथ में चुभने वाले नहीं होते. ये कांटे मुलायम होते हैं. इसकी मुख्यत: दो किस्में हैं. एक के फल सूखने पर पोस्टकार्ड कलर के हो जाते हैं. दूसरी के फल सूखकर डार्क ब्राउन या काले से हो जाते हैं.

इसका फल सूखकर जब चटकता है तो इसके सामने से एक ढक्कन सा खुल जाता है. ऊपर फोटो में ऐसा मुंह खुला फल दिखाई दे रहा है. इस ढक्कन के खुल जाने से बीज गिर जाते हैं और इन बीजों से बरसात में नए पौधे उगते हैं 

ये जिगर के लिए बहुत बड़ी दवा है. पीलिया तो इसके सामने टिक नहीं सकता इसके सूखे फल को भिगोकर उसका पानी पिलाने से पीलिया रोग नष्ट हो जाता है. इसके फल का अर्क नाक में टपकाने से पीलिया का पीलापन नाक के रास्ते पीले पानी के रूप में बह जाता है. 

लीवर के अन्य रोगों जैसे लीवर सिरोसिस और लीवर कैंसर में भी ये गुणकारी है. इसका उचित इस्तेमाल किसी काबिल वैद्य की निगरानी में इस रोग से छुटकारा दिला सकता है. 

इसका इस्तेमाल लीवर सेल को पुनर्जीवित करता है. लिकेन इसकी मात्रा बहुत कम होनी चाहिए. ये दवा बहुत कड़वी होती है. कड़वेपन के कारण जी मिचलाना और उल्टी की शिकायत हो सकती है. लीवर के रोगों में उल्टी आने का लक्षण मिलता है. 

इस दवा का सावधानी से प्रयोग जान बचा सकता है.  




सोमवार, 3 अगस्त 2020

अदरक

अदरक मसाले के रूप में प्रयोग की जाती है. ये आखिर बरसात के मौसम से जाड़ों भर मार्केट में मिलती है. यही नयी अदरक की फसल का समय है. इसको कंद से फरवरी मार्च के महीनों में बोया जाता है.
इसका स्वाद तीखा और विशेष गंध होती है. अपनी खुशबु से अदरक पहचानी जाती है. अधिक बढ़ जाने पर इसमें रेशे पड़ जाते हैं. इसलिए सब्ज़ी में कच्ची अदरक जिसमें अभी रेशा न पड़ा हो उपयोग होती है.
अदरक को उबाल कर सुखा लिया जाता है, अब इसका नाम सोंठ या ड्राई जिंजर पड़ जाता है. सोंठ का प्रयोग भी मसालों में किया जाता है. ये खाने की डिश, हलवा, पंजीरी, और बहुत सी दवाओं में इस्तेमाल होती है.
अदरक का स्वाभाव गर्म और खुश्क है. ये खांसी में फायदेमंद है.

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