बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

डोडा बंडाल

घुसलाइंद,  घुसलता, और बंडाल एक बेल के नाम हैं. डोडा बंडाल इस बेल के फल को कहते हैं. ये बेल बरसात में बढ़ती है और पास की झाड़ियों पर चढ़ जाती है. लोग इसे कुछ अहमियत नहीं देते. लेकिन ये कमाल की दवा है. इसका जितना भी मूल्य लगाया जाए कम है, क्योंकि इसका कोई जोड़ नहीं. 


जड़ी बूटियों के जानने वाले और इसकी खासियत से वाक़िफ़ लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके पत्ते तुरई के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं. इसमें सफ़ेद रंग का फूल आता है. इसका फल कांटेदार होता है. इसके पत्तों पर भी कांटे या रुआं सा होता है. लेकिन इसके फल के कांटे हाथ में चुभने वाले नहीं होते. ये कांटे मुलायम होते हैं. इसकी मुख्यत: दो किस्में हैं. एक के फल सूखने पर पोस्टकार्ड कलर के हो जाते हैं. दूसरी के फल सूखकर डार्क ब्राउन या काले से हो जाते हैं.

इसका फल सूखकर जब चटकता है तो इसके सामने से एक ढक्कन सा खुल जाता है. ऊपर फोटो में ऐसा मुंह खुला फल दिखाई दे रहा है. इस ढक्कन के खुल जाने से बीज गिर जाते हैं और इन बीजों से बरसात में नए पौधे उगते हैं 

ये जिगर के लिए बहुत बड़ी दवा है. पीलिया तो इसके सामने टिक नहीं सकता इसके सूखे फल को भिगोकर उसका पानी पिलाने से पीलिया रोग नष्ट हो जाता है. इसके फल का अर्क नाक में टपकाने से पीलिया का पीलापन नाक के रास्ते पीले पानी के रूप में बह जाता है. 

लीवर के अन्य रोगों जैसे लीवर सिरोसिस और लीवर कैंसर में भी ये गुणकारी है. इसका उचित इस्तेमाल किसी काबिल वैद्य की निगरानी में इस रोग से छुटकारा दिला सकता है. 

इसका इस्तेमाल लीवर सेल को पुनर्जीवित करता है. लिकेन इसकी मात्रा बहुत कम होनी चाहिए. ये दवा बहुत कड़वी होती है. कड़वेपन के कारण जी मिचलाना और उल्टी की शिकायत हो सकती है. लीवर के रोगों में उल्टी आने का लक्षण मिलता है. 

इस दवा का सावधानी से प्रयोग जान बचा सकता है.  




सोमवार, 3 अगस्त 2020

अदरक

अदरक मसाले के रूप में प्रयोग की जाती है. ये आखिर बरसात के मौसम से जाड़ों भर मार्केट में मिलती है. यही नयी अदरक की फसल का समय है. इसको कंद से फरवरी मार्च के महीनों में बोया जाता है.
इसका स्वाद तीखा और विशेष गंध होती है. अपनी खुशबु से अदरक पहचानी जाती है. अधिक बढ़ जाने पर इसमें रेशे पड़ जाते हैं. इसलिए सब्ज़ी में कच्ची अदरक जिसमें अभी रेशा न पड़ा हो उपयोग होती है.
अदरक को उबाल कर सुखा लिया जाता है, अब इसका नाम सोंठ या ड्राई जिंजर पड़ जाता है. सोंठ का प्रयोग भी मसालों में किया जाता है. ये खाने की डिश, हलवा, पंजीरी, और बहुत सी दवाओं में इस्तेमाल होती है.
अदरक का स्वाभाव गर्म और खुश्क है. ये खांसी में फायदेमंद है.

रविवार, 2 अगस्त 2020

पपीता Papaya

पपीता ऐसा फल है जिसे सभी जानते हैं. इसका पेड़ सीधा बढ़ता है. ऊपरी भाग पर बड़े बड़े पत्ते लगते हैं. इन्हीं पत्तों के बीच तने पर फल और फूल लगते हैं. पपीते में आम तौर से शाखें नहीं होतीं.  कभी कभी पपीते के पेड़ में शाखें भी निकलती हैं और उनमें फल भी लगते हैं.
पपीते का तना कमज़ोर होता है. लगाने के एक वर्ष के भीतर ही इसमें फल आने लगते हैं. फल तने में चरों ओर लगते हैं. कुछ लोग इसे अरण्ड ख़रबूज़ा भी कहते हैं. क्योंकि इसके पत्ते अरण्ड से मिलते जुलते होते हैं.
अजीब बात है की पपीते के पौधे तीन तरह के होते हैं. एक नर पौधे जिसमें केवल फूल आते हैं और फल नहीं लगते. दुसरे वह जिनमे छोटे फल लगते हैं लेकिन ये मादा पौधे होते हैं. इनको पॉलेन न मिलने से फल बढ़ते नहीं हैं. या तो छोटे ही रहते हैं या सूखकर गिर जाते हैं. पपीते का तीसरे प्रकार का पौधा द्विलिंगी होता है. इनमें फल लगते हैं और बीज बनते हैं. बागों में यही पौधे लगाए जाते हैं.
पपीते के अंदर छोटे काले बीज होते हैं. ये बीज काली मिर्च के आकर के लेकिन कुछ लम्बे, अंडाकार होते हैं. काली मिर्च गोल होती है. काली मिर्च में पपीते के बीजों की मिलावट आसानी से बीजों के आकार से पहचानी जा सकती है. पपीते के गीले बीज चिपचिपे आवरण से ढके रहते हैं.

पपीता दूध वाला पेड़ है. इसका पत्ता तोड़ने पर या फल में खुरचने पर दूध निकलता है. ये दूध या लेटेक्स मीट को मुलायम करने और गलाने में उपयोगी है. इसी गुण के कारण पपीता पाचन करने में मददगार साबित होता है. पपीते और अदरक का चूरन एक प्रसिद्ध दवा है जो खाने के बाद खाने से बदहज़मी, खट्टे डकार, एसिडिटी और गैस बनने की समस्या से छुटकारा दिलाता है.
पपीते को चूरन के रूप में उपयोग करने के लिए कच्चे पपीते को पतले स्लाइस में काटकर सुखा  लिया जाता है. फिर इसका पाउडर बनाकर चूरन में डाला जाता है. इसी प्रकार सुखी अदरक जिसे सोंठ कहते हैं, पाउडर बनाकर चूरन में डालते हैं. इसके साथ चूरन में डाली जाने वाले अन्य मसाले/दवाएं जैसे काला नमक, हरड़, सेंधा नमक, आदि डालकर चूरन बनाया जाता है.

पपीते का लेटेक्स दूध में डालने पर उसे फाड़ देता है.  पनीर बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.
कच्चे पपीते की सब्ज़ी भी बनायीं जाती है. पपीता जिगर के लिए लाभकारी है. पका पपीता न सिर्फ पौष्टिक है बल्कि लिवर/जिगर के सेहत के लिए अच्छा है. ये जिगर की सूजन घटाता है. लेकिन पपीता स्वयं देर में पचता है. इसलिए जॉन्डिस के मरीज़ों को पका पपीता थोड़ी मात्रा में ही सेवन करना चाहिए. अधिक सेवन से अपच हो सकता है और मरीज़ को नुकसान पहुंच सकता है.
इसके दूध का प्रयोग सीधा खाने और लगाने में न करें. ये बहुत हानिकारक है. लगाने से स्किन पर एलर्जी हो सकती है. खाने में प्रयोग करने से जी मिचलाना, उलटी, डायरिया आदि की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

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