गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बरगद और अमरत्व

 बरगद ऐसा वृक्ष है जो कभी नहीं मरता. ये एक अजर अमर वृक्ष है. इसे अगर प्रकृति की शक्तियां और मानव नष्ट न करे तो ये हज़ारों साल तक बाकी रह सकता है. बरगद और अमरत्व साथ साथ चलते हैं. कहा जा सकता है कि नेचर में अगर किसी वृक्ष ने अमरत्व प्राप्त किया है तो वह बरगद है. बेलों में अमरत्व प्राप्त करने वाली गुर्च की बेल  है. इसीलिए गुर्च का एक नाम अमृता भी है.
इसके अलावा भी ऐसे पौधे और पेड़ हैं जिनमें अमरत्व के के गुण पाए जाते हैं. लेकिन इन दो पौधों को  लोग  आम तौर से जानते और पहचानते हैं. इन पौधों में जीवन दायिनी और पुनरुत्पादन शक्ति अन्य पौधों के मुकाबले तेज़ होती है.
गुर्च और बरगद दोनों में हवाई जड़ें निकलती हैं जो पौधे को नया जीवन और सहारा देती हैं. बरगद लेटेक्स या दूध वाला पेड़ है जबकि गुर्च में दूध नहीं होता. गुर्च में एक चिपचिपा पदार्थ होता  है. यही दूध बरगद को और चिपचिपा पदार्थ गुर्च को सूखने से बचाता है. पानी न मिलने पर भी ये पौधे ज़िन्दा रहते हैं.
बरगद के पेड़ से हवाई जड़ें निकलकर लटकती हैं. इन्हीं जड़ों को बरगद की जटाएं कहते हैं. जैसे बरगद कोई आदमी हो और ये जटाएं उसके बाल हों. इन्हीं जड़ों को बरगद की दाढ़ी भी कहते हैं.
ये जड़ें या जटाएं नीचे की ओर आकर ज़मीन में चली जाती हैं. अजीब बात ये है की जो भाग ज़मीन के अंदर चला जाता है वह जड़ का काम करता है और ऊपरी भाग तना बन जाता है. यही तना मोटा हो जाता है. ये शाखाओं को सहारा भी देता है. बिलकुल इसी तरह जैसे बिल्डिंग में पिलर होते हैं. मूल वृक्ष नष्ट भी हो जाए तो ये बहुत से पिलर पेड़ को बचाए रखते हैं. इस प्रकार ये पेड़ घना और मोटा होकर जड़ों और पिलर के सहारे फैलता  जाता है और एक बड़ा एरिया कवर कर लेता है.


बरगद के पेड़ को बोहड़, और बढ़ या बड़ का पेड़ भी कहते हैं. इसके फल पकने पर लाल हो जाते हैं. इनका आकार गूलर के फलों के आकार से छोटा होता है. ये फल चिड़ियां और बन्दर चाव से खाते हैं. ये परिंदे बरगद के बीजों को दूर तक बिखरने में मदद करते हैं. बरगद के पेड़ इन्हीं बीजों से जमते हैं.
बरगद एक दूध वाला वृक्ष है. इसका दूध, फल, जटा सब दवा के रूप में इस्तेमाल होते हैं. लेकिन इनका प्रयोग आम तौर पर नहीं किया जाता. अजीब बात ये है कि दवाई के रूप में इसका प्रयोग कम ही किया गया है.
कहते हैं की बरगद के पेड़ के नीचे बैठने और सोने से शरीर दुबला हो जाता है. बरगद की सूखी जटा अगर पानी में भिगो दी जाए और इन जटाओं का पानी, जब भी पानी पीना हो, प्रयोग करें तो भी शरीर दुबला हो जाता है. लेकिन किसी भी दवा के प्रयोग से पहले  चिकित्सक की सलाह ज़रूरी है.
बरगद की जटाओं को तेल में पकाकर, छानकर  ये तेल बनाकर सर में लगाने से बाल बढ़ते हैं ऐसा विश्वास प्रचलन में है. लेकिन कुछ लोगों के इसके प्रयोग से गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है और सर में जितने बाल थे वह भी झड़ गये. इसलिए किसी भी दवा/ जड़ी बूटी/पेड़ पौधे का बिना किसी हकीम या वैद्य की सलाह के प्रयोग नुकसानदायक साबित हो सकता है. पुरुषों की समस्याओं में बरगद का दूध बताशे में भरकर खाने को बताया जाता है. कई लोगों को इसके इस्तेमाल से पेट में दर्द और डिसेंट्री की शिकायत हो गयी है. एक व्यक्ति ने दांत के दर्द के लिए बरगद का दूध खोखले दांत में भर दिया. मसूढ़े सूज गए और ऑपरेशन कराना पड़ा.
पौधों का दूध अपने गुणों में  सबसे ज़्यादा असरदार होता है. चाहे वह बरगद का दूध हो, आक  का दूध हो या थूहड़ का. इसलिए पौधों के दूध का प्रयोग बहुत सावधानी और जानकारी चाहता है.
ऐसे प्रयोगों से सावधान रहें क्योंकि जीवन अनमोल है.

शीशम लगाएं और भूल जाएं

 शीशम को अधिकतर लकड़ी प्राप्त करने के लिए लगाया जाता है. इसकी लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर और इमारती लकड़ी के रूप में होता है. इसकी बढ़वार धीरे धीरे होती है. लगाने के लगभग 20 वर्ष के बाद शीशम का पेड़ लकड़ी प्राप्त करने के लिए तैयार होता है. और अधिक पुराने शीशम के वृक्षों से बहुत अच्छी और पक्की लकड़ी प्राप्त होती है.
वृक्ष पुराना होने पर इसकी लकड़ी अंदर से भूरी / डार्क ब्राउन/ काली पड़ जाती है. इसे ही पक्के शीशम की लकड़ी कहते हैं. मार्केट में शीशम की पक्की लकड़ी ऊँचे दामों बिकती है. शीशम की लकड़ी साधारण लकड़ी के रंग की हो या डार्क ब्राउन दोनों में दुसरे पेड़ों की लकड़ियों की मिलावट की जाती है और ग्राहक को नकली लकड़ी शीशम के नाम पर बेच दी जाती है.
ये ऐसा वृक्ष है जिसका बड़ा व्यापारिक महत्त्व है. इसके पत्ते गोल गोल पान के आकर के लम्बी नोक वाले होते हैं. सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इसका वृक्ष आसानी से पहचाना जा सकता है. इसमें लम्बी लम्बी फलियां लगती हैं जिनमें बीज होते हैं. इसके पत्तों का आकर भी छोटा, लगभग रूपये के सिक्के के बराबर होता है. फलियां भी ज़्यादा लम्बी नहीं होतीं. ये भी आधा इंच चौड़ी और तीन से चार इंच लम्बी होती हैं. फलियों का रंग लाइट ग्रीन होता है. ये गुच्छों में लगती हैं.
शीशम को टाली और टाहली भी कहते हैं. ये शब्द पंजाब से सम्बंध रखता है. सीसो, सासम, सीसम के नाम भी प्रचलित हैं. शीशम का स्वाभाव ठंडा है. इसलिए ये गर्मी से आयी सूजन घटाने में कारगर है. अपने ठन्डे स्वाभाव के कारण ये पेट की गर्मी और एसिडिटी को शांत करता है. इसके लिए इसके 10 से 20 ग्राम पत्तों को थोड़ा कुचलकर एक गिलास पानी में भिगो दें और 4 घंटे बाद छानकर थोड़ी सी मिश्री या शकर मिलाकर पीने से लाभ होता है.
शीशम लिकोरिया रोग में भी लाभकारी है. इसके लिए इसके पत्तों को ऊपर बताई गयी तरकीब से सुबह, शाम पीने से लाभ होता है.
शीशम अपने ठन्डे स्वाभव के कारण ब्लड की गर्मी को भी शांत करता है. इसलिए चर्म रोगों में भी प्रयोग किया जाता है. शीशम की लकड़ी का बुरादा पानी में भिगोकर शरबत बनाकर पीने से चर्म रोग, खुजली, एक्ज़िमा, यहां तक की कोढ़ रोग भी नष्ट हो जाता है. इसके लिए कम से कम  तीन माह तक इसका इस्तेमाल ज़रूरी है. खाने में केवल बेसन के रोटी और सब्ज़ी के आलावा कुछ न खाया जाए. और इसका प्रयोग किसी काबिल हकीम या वैद्य की निगरानी में किया जाए. स्वयं उपचार नुकसान कर सकता है.
शीशम की दातुन दांतों को मज़बूत करती है. मुंह के दानों और छालों से रक्षा करती है. अगर मुंह में छाले हो जाएं तो शीशम की कच्ची फलियां कत्थे के साथ चबाने से फ़ायदा होता है. इन्हे पान की तरह चबाकर थूक दिया जाए.
अजीब बात है और वृक्षों की तरह शीशम का मौसम के हिसाब से पतझड़ नहीं होता. ये हमेशा हरा भरा रहता है. इसकी छाया भी घनी नहीं होती. ये बीज से आसानी से उग आता है. इसके लिए अधिक पानी के भी आवश्यकता नहीं है. कहते हैं शीशम  लगाएं और भूल जाएं. 

रविवार, 26 जुलाई 2020

अमरुद

अमरुद मीडियम ऊंचाई का वृक्ष है. इसे घरों में भी लगाया जाता है. लगाने के 3 वर्ष के बाद इसमें फल आने लगते हैं. सामान्य अमरुद के पेड़ों में दो मौसम में फल आते हैं. एक बरसात के मौसम में और दुसरे जाड़े के मौसम में. जाड़े का मौसम का अमरुद अधिक स्वादिष्ट और मीठा होता है. बरसात का अमरुद थोड़ा कच्चा जिसे गद्दर या अधपका कहते हैं, खाना ठीक रहता है. ज़्यादा पकने और पीला पड़ने पर इसमें कीड़े पड़ जाते हैं.
अमरुद कब्ज़ की बड़ी दवा है. पक्का अमरुद खाने से कब्ज़ दूर होता है. इसके लिए बेहतर ये है की अमरुद पर काली मिर्च का पाउडर और थोड़ा सा नमक छिड़क कर खाया जाए.
कच्चे और अधपके अमरुद को खाने से बलगम बनता है और खांसी भी हो सकती है. लेकिन अजीब बात ये है की पक्का अमरुद अगर भूनकर खाया जाए तो खांसी में आराम मिलता है और बलगम आसानी से निकल जाता है.
अमरुद का नियमित इस्तेमाल पेट को साफ़ करता है. इसमें रक्त को डिटॉक्स करने के गुण हैं.
अमरुद के पत्ते भी दवा में इस्तेमाल होते हैं. अमरुद के पुराने, पक्के पत्ते 3 - 4 की मात्रा में, थोड़ी सी गेहूं के आटे की भूसी, 3 -4 काली मिर्च जिन्हें टुकड़ों में तोड़ लिया गया हो और एक चुटकी नमक, ये सब एक से डेढ़ ग्लास पानी में डालकर पकने रख दें. जब पानी आधा रह जाए तो छानकर गुनगुना पीने से ज़ुकाम में राहत मिलती है. ये बिना पैसे का जोशांदा / काढ़ा है.
अमरुद की कोंपल भी बड़े काम की चीज़ है. इसके नए छोटे पत्ते और कोंपल चबाने से दांत मज़बूत होते हैं. मुंह के अल्सर, मुंह में दाने/छाले  इससे ठीक हो जाते हैं. इसके पत्तों को कुचलकर काढ़ा बनाकर ठंडा करके कुल्ला / गार्गल करने से भी लाभ मिलता है.
एक बड़े हकीम ने मुंह के छालों का इलाज फ्री में बिना किसी दवा के किया था. मरीज़ मुंह के छालों से बहुत परेशान था और दवा खा खाकर तंग आ चूका था. हकीम ने कहा अमरुद के पत्ते, गुलाब की पत्ती, हरा धनिया मरीज़ के सरहाने रख दो. मरीज़ इन तीन चीज़ों में से किसी न किसी पत्ती को अपने मुंह में रखे, किसी समय भी मुंह खाली  नहीं रहना चाहिए.
मरीज़ ने ऐसा ही किया और बगैर दवा के ठीक हो गया.


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