जंगल जलेबी एक बड़ा और कांटेदार वृक्ष है. सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इस पौधे के इनवेसिव पौधों की श्रेणी में रखा गया है. ये खुद-ब - खुद बीजो की सहायता से उग आता है और दूर दूर तक जंगल जलेबी का जंगल फैल जाता है.
इसकी लकड़ी का रेशा ऐंठा हुआ होता है. इसलिए इसके पेड़ सीधे नहीं होते. टेढ़े, तिरछे होते हैं. इसका तना भी ऊबड़ खाबड़ होता है. ये सूखी जलवायु को आराम से झेल लेता है. रेगिस्तानों और कम पानी वाली ज़मीनो में आराम से लग जाता है.
इसकी फलियां लम्बी लेकिन चक्रदार होती हैं. इसी लिए इसे जंगल जलेबी कहते हैं. जलेबी का आकार और मीठी होने की वजह से इसे ये नाम मिला हैं. कुछ लोग इसे मीठी इमली भी कहते हैं. इसकी फलियां पककर लाल हो जाती हैं अंदर का गूदा फलियां फट जाने से बाहर दिखने लगता है. इस गूदे में काले काले बीज होते है. इन बीजों का आवरण चिकना और मज़बूत होता है. शुष्क ज़मीनो में ये कई साल तक पड़े रह सकते हैं. और आवश्यक नमी मिलने पर नए पौधे उग आते हैं.
जंगल जलेबी का स्वाभाव ठंडा और तर है. ये पेट के ढीलेपन को दूर करती है. पेचिश और दस्तों के मरीज़ों के लिए फायदेमंद है.
जंगल जलेबी के पेड़ की छल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है. इसकी छल का पाउडर सुबह शाम तीन से पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ इस्तेमाल करने से पुराने दस्त रुक जाते हैं.
जंगल जलेबी की दातुन करने से दांत मज़बूत होते हैं और उनसे खून आना बंद हो जाता है.
इसकी लकड़ी का रेशा ऐंठा हुआ होता है. इसलिए इसके पेड़ सीधे नहीं होते. टेढ़े, तिरछे होते हैं. इसका तना भी ऊबड़ खाबड़ होता है. ये सूखी जलवायु को आराम से झेल लेता है. रेगिस्तानों और कम पानी वाली ज़मीनो में आराम से लग जाता है.
इसकी फलियां लम्बी लेकिन चक्रदार होती हैं. इसी लिए इसे जंगल जलेबी कहते हैं. जलेबी का आकार और मीठी होने की वजह से इसे ये नाम मिला हैं. कुछ लोग इसे मीठी इमली भी कहते हैं. इसकी फलियां पककर लाल हो जाती हैं अंदर का गूदा फलियां फट जाने से बाहर दिखने लगता है. इस गूदे में काले काले बीज होते है. इन बीजों का आवरण चिकना और मज़बूत होता है. शुष्क ज़मीनो में ये कई साल तक पड़े रह सकते हैं. और आवश्यक नमी मिलने पर नए पौधे उग आते हैं.
जंगल जलेबी का स्वाभाव ठंडा और तर है. ये पेट के ढीलेपन को दूर करती है. पेचिश और दस्तों के मरीज़ों के लिए फायदेमंद है.
जंगल जलेबी के पेड़ की छल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है. इसकी छल का पाउडर सुबह शाम तीन से पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ इस्तेमाल करने से पुराने दस्त रुक जाते हैं.
जंगल जलेबी की दातुन करने से दांत मज़बूत होते हैं और उनसे खून आना बंद हो जाता है.