रविवार, 23 सितंबर 2018

बदबूदार पौधा पंवाड़

पंवाड़ बरसात में उगने वाला पौधा है. इसमें से अजीब सी दुर्गन्ध आती है. ये सड़कों के किनारे और खाली पड़े स्थानों में ऊगा हुआ मिल जाएगा. इसमें पीले रंग के फूल आते हैं और लम्बी लम्बी फलियां लगती हैं. सूख जाने पर फलियां चटक जाती हैं और उनके बीज बिखर जाते हैं.
इसको पंवाड़, पमडुआ, आदि नामो से जाना जाता है. अंग्रेजी में इसे फीटिड कैरिया और कैशिया टोरा कहते हैं. अंग्रेजी के दोनों नाम भी दुर्गन्धयुक्त पौधे की तरफ इशारा करते हैं.
इसके बीजों की गिरी का पाउडर इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है. इससे बना पंवाड़ का गोंद या कैशिया टोरा गम खाने की चीज़ों में, कुत्ते, बिल्ली के फ़ूड में इस्तेमाल किया जाता है. कैशिया टोरा गम जेल के रूप में और बाइंडर के रूप में इस्तेमाल होता है. आइसक्रीम में मिलाने पर ये पानी को क्रिस्टल  में जमने नहीं देता और आइसक्रीम को एक चिपचिपा रूप देता है.
पंवाड़ जीवाणु नाशक और फफूंदी नाशक है. इसके बीजों को पीसकर और दही में मिलकर कुछ दिन रख दिया जाता है. इसमें दुर्गन्ध पैदा हो जाती है. इस पेस्ट को त्वचा पर लगाने से खुजली और दाद नष्ट हो जाता  है.
इसके बीजों का पाउडर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ इस्तेमाल करने से त्वचा के रोगों में आराम मिलता है. ये बीज कब्ज़ को भी दूर करते हैं.
पंवाड़ जोड़ों के दर्द में भी लाभकारी है. इसके लिए इसके बीजों के पाउडर का प्रयोग किया जाता है.
पंवाड़ के  पत्ते  फलियां और बीजों की कम्पोस्ट खाद खेतों में डालने से कीड़ा नहीं लगता और फफूंदी की समस्या भी नहीं रहती.
प्राकृतिक कीड़े मार दवा के रूप में पंवाड़ के बीजों का काढ़ा बनाकर, ठंडा करके पौधों पर छिड़कने से कीड़े मर जाते हैं. यदि इस काढ़े में नीम के बीज भी कुचलकर मिला दिये जाएं तो ये बहुत अच्छा कीड़ानाशक बन जाता है.
पंवाड़ का असर बहुत तेज़ होता है. कुछ लोगों को इसके प्रयोग से जी मिचलाना, उलटी, पेट दर्द की शिकायत हो सकती है. इसलिए पंवाड़ के अंदरूनी इस्तेमाल से पहले किसी काबिल हकीम या वैद्य की  सलाह ज़रूरी है. 

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

खून को जमने से बचाए एस्प्रिन

एस्प्रिन  खून का थक्का बनने से रोकती है. दिल के मरीज़ों के लिए, जिन्हे पहले दिल का दौरा पड़ चुका हो, ये एक कारगर और ज़रूरी दवा बताई जाती है. डाक्टर ऐसे मरीज़ों को जिन्हे स्टेन्ट लग चुका हो एस्प्रिन की कम खुराक या लो डोज़ लेने की सलाह देते हैं जिससे खून पतला रहे और थक्का बनने की परेशानी न हो.
इसके आलावा एस्प्रिन रोज़मर्रा के टेंशन, टेंशन  से होने वाले सरदर्द, शरीर के दर्द, दांत दर्द और बुखार में भी बड़ी सुरक्षित दवा के रूप में ली जाती है. कुछ लोग एस्प्रिन की गोलियां जेब में रखते हैं और ज़रुरत पड़ने पर फ़ौरन इस्तेमाल करते हैं.
लेकिन वे लोग जिनका खून पहले ही किसी वजह, दवा या बीमारी की वजह से या तो  पतला है, या अंदरूनी अंगो में रक्त - स्राव हो रहा है, उन्हें एस्प्रिन जानलेवा साबित हो सकती है.
कभी कभी सर के दर्द में खून की बारीक नसों यानि कैपिलरीज से ब्लड ऊज़िंग या रक्त स्राव होने लगता है. इस प्रकार के सर दर्द में एस्प्रिन की एक खुराक ब्रेन हैमरेज का कारण बन जाती है और मरीज़ के लेने के देने पड़ जाते हैं.
बार बार और अत्यधिक मात्रा में एस्प्रिन की खुराक से खून इतना पतला हो जाता है कि शरीर की अंदरूनी झिल्लियों से बहने लगता है. जैसे हेमीचुरिया या पेशाब में खून आना, आंतों से मल के साथ खून आने की समस्या.
दिल के कई मरीज़ एस्प्रिन के इसी प्रभाव के कारण दिल को बचाते बचाते हैमरेज का शिकार हो गये.
लेकिन नयी रिसर्च में पता लगाया गया है की एस्प्रिन कैंसर को फैलने से रोकती है. इसकी लो - डोज़ जो दिल के मरीज़ों को दी जाती है, कैंसर के फैलाव को रोकने में कारगर है.

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

रेड 40 फ़ूड कलर

रेड 40 फ़ूड कलर खाने की चीज़ों और मुख्य रूप से पेय पदार्थ जैसे फलों के जूस, शरबत, सॉस, केचप, चटनी, बच्चों के लिए मिठाइयां, मीठी चीज़ें, बच्चों की दवाएं, खांसी के सीरप, आदि में इस्तेमाल किया जाता है. 

ये रूई के गले वाली मिठाई जिसे बच्चे कॉटन कैंडी कहते हैं का विशेष रंग है. देसी और आयुर्वेद के नाम पर जो ठगी की जा रही है, वे लोग भी देसी दवाओं के नाम पर तरह तरह के नाम रखकर शरबत बना रहे हैं और रेड 40 कलर मिलाकर खूबसूरत फूलों और फलों के नाम पर बेच रहे हैं. इस कलर को एलोरा रेड भी कहते हैं. बहुत से चीज़ों में इसे मिलाया जाता है.
सौंदर्य प्रसाधनों का भी ये विशेष रंग है. साबुन से लेकर, क्रीम, बालों के तेल, में भी मिलाया जाता है. अन्य सिंथेटिक रंगों की तरह इसके भी दुष्प्रभाव हैं और उन पर विभिन्न एजेंसियां रिसर्च भी कर चुकी हैं. लेकिन इनके परिणाम लोगों से छिपाये जाते हैं. केवल यही कहा जाता है की ये रंग 7 मिलीग्राम तक एक व्यक्ति एक दिन में इस्तेमाल कर सकता है. और इसका दुष्प्रभाव  एलर्जी और बच्चों में हाइपर सेंस्टिविटी के आलावा कुछ भी नहीं है. लेकिन ये भी कहा जाता है कि ये सभी रंग कैंसर का कारण हैं. क्योंकि ये खाने की चीज़ नहीं है. एलर्जी  स्किन के ऊपर प्रकट होती है. जब कलर शरीर में प्रवेश करता है तो पाचन तंत्र से ब्लड में जाता है और वहां से कुछ तो मूत्र के रस्ते बाहर निकल जाता है और सूक्ष मात्रा में शरीर की कोशिकाओं में पहुंचता है. यदि शरीर उसे सहन नहीं करता तो स्किन की कोशिकाओं में भेज देता है. इससे कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और नतीजा एलर्जी के रूप में निकलता है.
ये एलर्जी दवाओं से भी नहीं जाती क्योंकि खाने के चीज़ों से कलर बराबर शरीर में पहुंच रहा होता है और इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता.
इसे प्रकार ये हानिकारक चीज़ें शरीर के  अंदर ऊतकों को नष्ट करती हैं तो नतीजा कैंसर के रूप में निकलता है.
लेकिन ये दुनिया एक बड़ा बाजार है इसलिए रिसर्च के परिणाम भी छिपाये जाते हैं जिससे बिज़नेस चलती रहे.



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