कबरा या केपर बुश एक कांटेदार बेल की तरह फैलने वाली झाड़ी है. ये ढलवां चट्टानों पर उगता है. इसे कम पानी चाहिए होता है. इसे कांटो की वजह से बागो की हिफाज़त के लिए लगाया जाता है.
ये एक दवाई पौधा है. इसके फूल तीन पंखुड़ी के सफ़ेद खिलते हैं दुसरे दिन यही फूल बैगनी रंग के हो जाते हैं.
ये पौधा लिवर की बड़ी औषधि है. लिवर के तमाम विकारों को दूर करने में सक्षम है. इसे पेट के रोगों में गैस से रहत पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. दवा के रूप में इसके जड़ छाल प्रयोग की जाती है. गुर्दे के रोगों में लाभकारी है. इसके इस्तेमाल से पेशाब अधिक आता है. इस मामले में ये डायूरेटिक का काम करता है.
जलंधर या ड्रॉप्सी के रोग में इसके काढ़े को पीने से लाभ मिलता है.
गठिया के रोगों और जोड़ों की सूजन में भी ये अच्छी औषधि है.
इसकी जड़ की छाल या जड़ का पाउडर 3 से 5 ग्राम तक की मात्रा में दिन में दो से तीन बार लिया जा सकता है. कुछ लोगों में कबरा के इस्तेमाल से पेट दर्द, जी मिचलाना और उलटी की शिकायत हो सकती है. इसका दवाई के रूप में प्रयोग हाकिम या वैध के बिना नहीं करना चाहिए.
ये एक दवाई पौधा है. इसके फूल तीन पंखुड़ी के सफ़ेद खिलते हैं दुसरे दिन यही फूल बैगनी रंग के हो जाते हैं.
ये पौधा लिवर की बड़ी औषधि है. लिवर के तमाम विकारों को दूर करने में सक्षम है. इसे पेट के रोगों में गैस से रहत पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. दवा के रूप में इसके जड़ छाल प्रयोग की जाती है. गुर्दे के रोगों में लाभकारी है. इसके इस्तेमाल से पेशाब अधिक आता है. इस मामले में ये डायूरेटिक का काम करता है.
जलंधर या ड्रॉप्सी के रोग में इसके काढ़े को पीने से लाभ मिलता है.
गठिया के रोगों और जोड़ों की सूजन में भी ये अच्छी औषधि है.
इसकी जड़ की छाल या जड़ का पाउडर 3 से 5 ग्राम तक की मात्रा में दिन में दो से तीन बार लिया जा सकता है. कुछ लोगों में कबरा के इस्तेमाल से पेट दर्द, जी मिचलाना और उलटी की शिकायत हो सकती है. इसका दवाई के रूप में प्रयोग हाकिम या वैध के बिना नहीं करना चाहिए.