गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

आम

आम एक बहुत आम पौधा है इसीलिए इसे आम कहते हैं. उत्तर भारत का ये एक मशहूर फल है. यूपी में मलिहाबाद इसकी तरह तरह की वैराइटी के लिए प्रसिद्ध है. बिहार और बंगाल के आम भी प्रसिद्ध हैं.
जनवरी आखिर से फरवरी के महीने में इसका पौधा बौर से भर जाता है. आम के फूल को बौर या मौर कहते हैं. ये भीनी भीने आम की खुशबु लिए होता है. कच्चे बौर को हाथों में मलने से हाथों में ऐसी तासीर आ जाती है जो बर्र या बिच्छू काटने पर बहुत काम करती है. हाथों को काटी हुई जगह पर रख देने से ठंडक पद जाती है और बिच्छू या बर्र का ज़हर नहीं चढ़ता. आम के बौर की ये अजीब बात एक जादू की तरह काम करती है. पुराने समय में जो लोग आम के बौर की इस तासीर से वाकिफ थे वह ऐसा जादुई हाथ बनाकर लोगों में प्रसिद्ध हो जाते थे. ऐसे लोगों को लोग संत और महात्मा कहा करते थे.
आम एक ऐसा पौधा है जो ज़िन्दगी की ज़रूरतों से जुड़ा है. आम को सुखाकर खटाई के रूप में मसाले की तरह साल भर प्रयोग किया जाता है. इसका अचार और मुरब्बा भी बनाया जाता है जो साल भर प्रयोग किया जाता है. कच्चा आम भूनकर उसका रास निकल कर शरबत बनाकर पिलाने से लू या सं स्ट्रोक में फायदा होता है. जिन दिनों में लू लगती है उन्हीं दिनों में कच्चा आम होता है. ये एक कुदरती दवा है. आम की गुठली की अंदर की गिरी जिसे बिजली और आम का बीज भी कहते हैं दांतों से खून आने और मसूढ़ों की सूजन में लाभ करती है. इसे कच्चा ही मुंह में डालकर चबाने से लाभ मिलता है. पक्के आम की गुठली को उबाल कर कुछ दिन बरसात में खुले में पड़ा रहने देते हैं. फिर इसको तोड़कर इसका बीज निकल कर खाने से पेट के रोग दूर होते हैं आँतों के घावों और दस्त के कारण जिन मरीज़ों के सेहत नहीं बनती उन्हें फ़ायदा करती है.

पक्के आम में शुगर की मात्रा बहुत होती  है. ये एक पौष्टिक फल है. जिनका वज़न काम हो आम के नियमित प्रयोग से उनका वज़न बढ़ जाता है. लेकिन डायबिटीज के मरीज़ों के लिए आम का प्रयोग घातक हो सकता है. उन्हें बहुत ही सावधानी से थोड़ा सा आम डाक्टर की सलाह के अनुसार खाना चाहिए.

आम की छाल को सुखाकर और उसक पाउडर बनाकर उसमें जामुन की छाल का पाउडर मिलकर दिन में दो से तीन  बार  पानी के साथ खाने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है. ये एक गुणकारी दवा है.




रविवार, 25 मार्च 2018

छोटा चांद

छोटा चांद एक ऐसी जड़ी बूटी है जो कई नामों से जानी जाती है. इसे चन्दभागा, छोटी चन्दन, असरौल, और सर्पगंधा कहते हैं. इसकी कच्ची जड़ों में सांप जैसी  गंध होती है. कुछ लोग ये भी मानते हैं की इसके पौधे के पास सांप नहीं आता. कुछ भी हो ये एक कमल की दवा है और पागलों के इलाज के लिए दुनिया भर में जानी जाती है.

जून के दिन थे. एक परिवार की बहु पागलों जैसे हरकतें करने लगी थी. उस का बहुत दवा इलाज किया गया. आखिर में डाक्टरों ने बिजली के झटके से इलाज की बात कही. परिवार वाले इसके लिए तैयार नहीं थे.
एक दोपहर उनके दरवाज़े के बेल बज उठी. देखा तो एक बहुत मशहूर हाकिम जी खड़े थे. हकीमजी के इस परिवार से पुराने संबंध थे. उन्हें अंदर बुलाया और पूछा हकीमजी इस वक्त कैसे. हकीमजी ने कहा मुझे लखनऊ जाना था इधर से गुज़र रहा था. आपका ध्यान आया तो मैं कुछ देर रुकने के लिए चला आया.
परिवार वालो ने सोचा ऐसे में हकीमजी का आना ईश्वर की इच्छा  है. परिवार वालो ने ने हकीमजी से कहा हम लोग आजकल  बहुत परेशान  हैं. हमारी बहु जिसकी शादी हुए अभी कुछ महीने ही बीते हैं पागलों जैसे हरकते करने लगी है. हकीमजी ने मरीज़ की नब्ज़ देखी और उसके हालत मालूम किये. फिर कलम निकाला और एक पर्चे पर असरौल का नाम लिख दिया. कहा. ये एक जड़ी बूटी है. जड़ी बूटियां बेचने वाले पंसारी या अत्तार की दुकान पर मिल जायेगी. इसे लाकर हावनदस्ते/इमामदस्ते  में खूब कूटकर पाउडर बना लेना. इस दवा का एक चुटकी पाउडर सेब के मुरब्बे पर छिड़ककर मरीज़ को सुबह शाम खिला देना. अगर मरीज़ खाने से  इनकार करे तो इस दवा को उसके होंठो पर लगा देना
सर्पगंधा के इस प्रयोग से वह मरीज़ ठीक हो गया.
ये जड़ी बूटी पागलो की दवा होने के अलावा ब्लड प्रेशर घटाती है और उसे कंट्रोल में रखती है. इसके अलावा नींद न आने के बीमारी में भी कारगर है. इसका अन्य दवाओं के साथ उचित प्रयोग नींद लाने  में सहायता करता है.


गुरुवार, 8 मार्च 2018

गुलखैरा

तुख्मे-खत्मी एक मौसमी पौधे के बीज हैं जो हकीमी दवाओं में इस्तेमाल किये जाते हैं.  इस पौधे को बगीचों में सुंदरता के लिए लगाया जाता है. इसे हॉलीहॉक के नाम से आम तौर से लोग जानते हैं. गुलखैरा के नाम से भी प्रसिद्ध है. यह मैलो परिवार का पौधा है. हकीम इसकी एक वैराइटी को खत्मी कहते हैं और इसके बीज तुख्मे-खत्मी और जड़ को रेशा-ए -खत्मी के नाम से इस्तेमाल करते हैं.

इसके फूल कई रंग के होते हैं. अजीब बात ये है कि इस पौधे में आम तौर से कोई शाखा नहीं निकलती और सारे फूल इसके तने में लगते हैं. कुछ पौधों में शाखाएं भी निकलती हैं लेकिन ऐसा कम होता है.  पौधा सीधा बढ़ता जाता है और तने में कलियां आती रहती हैं जो बारी  बारी खिलती रहती हैं.
तुख्मे-खत्मी नज़ला, ज़ुकाम और खांसी में कारगर है. बरसों से हकीम इसके बीजों को अन्य दवाओं के साथ जोशांदे में इस्तेमाल कर रहे हैं. तुख्मे-खत्मी नज़ला और खांसी में आराम देता हैं. इसका जोशांदा जिसे तुख्मे-खत्मी की चाय या काढ़ा भी कहते हैं खांसी से राहत दिलाता है.

ये गले की खराश में भी फायदा करता है. इसके बीजों और जड़ में म्यूसिलेज या चिपचिपा पदार्थ होता है. ये म्यूसिलेज आंतों में फिसलन पैदा करता है जिससे डिसेन्ट्री के जर्म्स उसमें लिपट कर निकल जाते हैं. इसकी जड़ को पेचिश के इलाज में प्रयोग किया जाता है.
हॉलीहॉक एक सजावटी पौधा ही नहीं एक बड़ी और कारगर दवा है.
कहा जाता है की मेडिकल आइकन के तौर पर जिस निशान का प्रयोग किया जाता है जिसमें एक छड़ी पर एक सांप लिपटा होता है वह गुलखैरे की लकड़ी है.
दवाई गुण के कारण ही गुलखैरे को इतनी अहमियत दी गई है. 

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