हल्दी या टर्मरिक एक साल भर में पैदा होने वाली फसल है. इसका प्रयोग बहुतायत से मसालों में किया जाता है. इसका रंग खिलता हुआ पीला होता है. हल्दी को राइज़ोम से उगाया जाता है. यह राइज़ोम मार्च के महीने से मई तक लगा दिए जाते हैं. बारिश के पानी से इनसे हल्दी के पौधे निकलते हैं. ये बारिश में बढ़ने वाली फसल है. बरसात में यह खूब बढ़ती है. इसकी जड़ों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है. उसमें ही हल्दी के ट्यूबर या राइज़ोम पैदा होते हैं.
हल्दी छायादार जगह में भी आसानी से उग आती है और बढ़ती है. अक्टूबर- नवम्बर में इसके पौधे सूख जाते हैं. फरवरी से मार्च तक इसकी खुदाई करके फसल निकली जाती है. कच्ची हल्दी को मार्केट में लाने से पहले इसे उबालकर सुखा लिया जाता है.
हल्दी चाहे कच्ची हो या बाजार में मिलने वाली सुखी हल्दी ये एक गुणकारी मसाला ही नहीं एक बहुत गुणकारी दवा भी है. हल्दी चोट में लाभ करती है. इसमें शरीर के दर्दों को दूर करने की शक्ति है. चोट के स्थान पर हल्दी के साथ चुना मिलकर, दोनों का पेस्ट बनाकर, थोड़ा गर्म करके चोट के स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है. एक गिलास दूध के साथ हल्दी के एक चमच पाउडर का प्रयोग जोड़ों के दर्द और चोट, मोच के दर्द में लाभ्कारी है.
हल्दी के पाउडर को सामान मात्रा में दूध की मलाई में अच्छी तरह मिलकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाने से चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं और चेहरा चमक जाता है.
हल्दी को मोटा मोटा कूट कर थोड़े पानी और सामान मात्रा में अल्कोहल मिलाकर रख देते हैं. तीन दिन बाद इस मिश्रण को फ़िल्टर कर लेते हैं. ये चोट और घाव के लिए अच्छा लोशन बन जाता है. हल्दी कैंसर रोग में भी लाभदायक है. हल्दी में पाये जाने वाले तत्व कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. ऐसे रोगी जो अभी कैंसर की पहली, दूसरी अवस्था में हों उन्हें शुद्ध हल्दी के पाउडर का प्रयोग एक से तीन ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में चार बार पीने से लाभ मिलता है.
लेकिन ये ज़रूरी है की ऐसे मामले में हल्दी का पाउडर वह हो जो खुद बाजार में मिलने वाली हल्दी की गांठों को धोकर सूखा कर, और फिर ग्राइंड करके बनाया जाए, क्योंकि बाजार में मिलने वाली पिसी हल्दी में अशुद्धियाँ होती हैं, मिलावट के अलावा इसमें लापरवाई से पीसने पर धनिया और मिर्च मिल जाती है. या फिर हल्दी में रंग मिला दिया जाता है. ऐसे हल्दी सिवाए नुकसान के और कुछ नहीं करती.
हल्दी छायादार जगह में भी आसानी से उग आती है और बढ़ती है. अक्टूबर- नवम्बर में इसके पौधे सूख जाते हैं. फरवरी से मार्च तक इसकी खुदाई करके फसल निकली जाती है. कच्ची हल्दी को मार्केट में लाने से पहले इसे उबालकर सुखा लिया जाता है.
हल्दी चाहे कच्ची हो या बाजार में मिलने वाली सुखी हल्दी ये एक गुणकारी मसाला ही नहीं एक बहुत गुणकारी दवा भी है. हल्दी चोट में लाभ करती है. इसमें शरीर के दर्दों को दूर करने की शक्ति है. चोट के स्थान पर हल्दी के साथ चुना मिलकर, दोनों का पेस्ट बनाकर, थोड़ा गर्म करके चोट के स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है. एक गिलास दूध के साथ हल्दी के एक चमच पाउडर का प्रयोग जोड़ों के दर्द और चोट, मोच के दर्द में लाभ्कारी है.
हल्दी के पाउडर को सामान मात्रा में दूध की मलाई में अच्छी तरह मिलकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाने से चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं और चेहरा चमक जाता है.
हल्दी को मोटा मोटा कूट कर थोड़े पानी और सामान मात्रा में अल्कोहल मिलाकर रख देते हैं. तीन दिन बाद इस मिश्रण को फ़िल्टर कर लेते हैं. ये चोट और घाव के लिए अच्छा लोशन बन जाता है. हल्दी कैंसर रोग में भी लाभदायक है. हल्दी में पाये जाने वाले तत्व कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. ऐसे रोगी जो अभी कैंसर की पहली, दूसरी अवस्था में हों उन्हें शुद्ध हल्दी के पाउडर का प्रयोग एक से तीन ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में चार बार पीने से लाभ मिलता है.
लेकिन ये ज़रूरी है की ऐसे मामले में हल्दी का पाउडर वह हो जो खुद बाजार में मिलने वाली हल्दी की गांठों को धोकर सूखा कर, और फिर ग्राइंड करके बनाया जाए, क्योंकि बाजार में मिलने वाली पिसी हल्दी में अशुद्धियाँ होती हैं, मिलावट के अलावा इसमें लापरवाई से पीसने पर धनिया और मिर्च मिल जाती है. या फिर हल्दी में रंग मिला दिया जाता है. ऐसे हल्दी सिवाए नुकसान के और कुछ नहीं करती.