रविवार, 4 फ़रवरी 2018

हल्दी

हल्दी या टर्मरिक एक साल भर में पैदा होने वाली फसल है. इसका प्रयोग बहुतायत से मसालों में किया जाता है. इसका रंग खिलता हुआ पीला होता है. हल्दी को राइज़ोम से उगाया जाता है. यह राइज़ोम मार्च के महीने से मई तक लगा दिए जाते हैं. बारिश के पानी से इनसे हल्दी के पौधे निकलते हैं. ये बारिश में बढ़ने वाली फसल है. बरसात में यह खूब बढ़ती है. इसकी जड़ों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है. उसमें ही हल्दी के ट्यूबर  या राइज़ोम पैदा होते हैं.

हल्दी छायादार जगह में भी आसानी से उग आती है और बढ़ती है. अक्टूबर- नवम्बर में इसके पौधे सूख जाते हैं. फरवरी से मार्च तक इसकी खुदाई करके फसल निकली  जाती है. कच्ची हल्दी को मार्केट में लाने से पहले इसे उबालकर सुखा लिया जाता है.
हल्दी चाहे कच्ची हो या बाजार में मिलने वाली सुखी हल्दी ये एक गुणकारी मसाला ही नहीं एक बहुत गुणकारी दवा भी है. हल्दी चोट में लाभ करती है. इसमें शरीर के दर्दों को दूर करने की शक्ति है. चोट के स्थान पर हल्दी के साथ चुना मिलकर, दोनों का पेस्ट बनाकर, थोड़ा गर्म करके चोट के स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है. एक गिलास दूध के साथ हल्दी के एक चमच पाउडर का प्रयोग जोड़ों के दर्द और चोट, मोच के दर्द में लाभ्कारी है.
हल्दी के पाउडर को सामान मात्रा में दूध की मलाई में अच्छी तरह मिलकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाने से चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं और चेहरा चमक जाता है.
हल्दी को मोटा मोटा कूट कर थोड़े पानी और सामान मात्रा में अल्कोहल मिलाकर रख देते हैं. तीन दिन बाद  इस मिश्रण को  फ़िल्टर कर लेते हैं. ये चोट और घाव के लिए अच्छा लोशन बन जाता है. हल्दी कैंसर रोग में भी लाभदायक है. हल्दी में पाये जाने वाले तत्व कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. ऐसे रोगी जो अभी कैंसर की पहली, दूसरी अवस्था में हों उन्हें शुद्ध हल्दी के पाउडर का प्रयोग एक से तीन ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में चार बार पीने से लाभ मिलता है.
लेकिन ये ज़रूरी है की ऐसे मामले में हल्दी का पाउडर वह हो जो खुद बाजार में मिलने वाली हल्दी की गांठों को धोकर सूखा कर, और फिर ग्राइंड करके बनाया जाए, क्योंकि बाजार में मिलने वाली पिसी  हल्दी में अशुद्धियाँ होती हैं, मिलावट के अलावा इसमें लापरवाई से पीसने पर धनिया  और मिर्च  मिल जाती है. या फिर हल्दी में रंग मिला दिया जाता है. ऐसे हल्दी सिवाए नुकसान के और कुछ नहीं करती.  
 

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

काहू के चमत्कारी फायदे

काहू के  नाम से इस पौधे को केवल हकीम, या वो लोग जानते जो इसकी खेती और व्यापार करते हैं. इसका प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है. मार्केट में ये आसानी से मिल जाता है. अंग्रेजी भाषा में इसे लेटिस कहते हैं. ये एक सीजनल पौधा है. सितम्बर अक्टूबर में इसका बीज बोया जाता है. जाड़ों के महीनो में इसके पत्तों को सलाद की तरह इस्तेमाल किया जाता है.

इसके पत्ते हरे, झुर्रियों और टेढ़ी मेढ़ी सतह के होते हैं. देखने में ये बहुत खूबसूरत लगता है. उतना ही ये गुणकारी है. कहु उत्तेजना को शांत करता है और गहरी नींद लाता है. आज के युग में बहुत से बीमारियां उत्तेजना और नींद न आने के कारण हो रही हैं. आज के रोगों की ये बड़ी औषधि है.
इसमें डायूरेटिक यानी मूत्र प्रवाह बढ़ाने के शक्ति है. अपने इस गन के कारण ये गुर्दों को साफ करता है और उनके विषैले पदार्थ या टाक्सिन बाहर निकलता है. ये यूरिक एसिड के समस्या से निजात दिलाता है.
इसके पत्तों में मौजूद डाइटरी फाइबर या खाद्य रेशे आँतों की सफाई करते हैं. यहाँ भी ये टॉक्सिन यानि विषैले पदार्थ बहार निकलने का काम करता है. इसमें मौजूद रसायन आंतों को कैंसर जैसे रोग से बचने में सहायता करते हैं.

हकीम काहू के बीजों के तेल या रोगन काहू को नींद न आने के समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए इस्तेमाल करते थे. ये सदियों से यूनानी और देसी इलाज के पद्धति में  प्रयोग किया जा रहा है.
काहू के पौधे सलाद के लिए लगाए जाते हैं इसलिए ये पत्तों का गुच्छा बड़ा होते ही काट लिए जाते हैं. कहु के पौधे के तने से अगर रस निकला जाए तो ये रस सूख कर कला पड़  जाता है और गाढ़ा हो जाता है. इस रस  का प्रयोग भी नींदलाने  की दवाओं में हकीमों द्वारा किया जाता था.
काहू के पत्ते चूँकि झुर्रियोंदार होते हैं इसलिए इसमें तरह तरह के जर्म्स आसानी से पल जाते हैं. इसमें फंगस भी लग जाता है. इसके पत्तों को सलाद के रूप में इस्तेमाल करने से कभी कभी डायरिया, पेचिश या पेट के अन्य रोग हो जाते हैं. इसके पत्तों को खूब अच्छी तरह धोकर इस्तेमाल करना चाहिए.

शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

शतावरी

शतावरी, सतावर, एक कांटेदार बेल है. इसके पत्ते बारीक़ नुकीले होते हैं. बारीक़ पत्तियों के गुच्छों के कारन ये बेल बहुत सुन्दर लगती है. इसे सजावट के लिए घरों और बगीचों में लगाया जाता है. घनी पत्तियों और कांटेदार होने के वजह से इसको दीवारों और बगीचों की बाढ़ पर सुरक्षा के लिए भी लगाया जाता है.

दवा के रूप में इसकी जड़ या कंद प्रयोग की जाती है. इसकी जड़े गुच्छेदार, बीच से मोटी और किनारों पर पतली होती हैं. इन्हे सूखा लिया जाता है. बाजार में देसी दवाओं और जड़ी बूटियों की दुकानों पर सतावर या शतावरी के नाम से इसकी सुखी हुई जड़े मिलती हैं. सूखने पर इन जड़ो पर लम्बाई में झुर्रियां और सिलवटे पद जाती है. सतावर का स्वाद खाने में कुछ मीठा और बाद में हल्का कड़वापन लिए होता है.
सतावर एक पौष्टिक दवा है. पुष्टकारक दवाओं में इसका प्रयोग किया जाता है. ये शरीर को बलशाली बनती है. दुबले लोग इसके नियमित प्रयोग से मोटे  हो जाते हैं.
सतावर दूध पिलाने वाली माओं के लिए एक टानिक का काम करती है. ये दूध की मात्रा बढाती है. श्वेत प्रदर को जड़ से नष्ट कर देती है.
जो लोग यूरिक एसिड की समस्या से ग्रस्त हैं. जिनकी शुगर बढ़ी हुई है उन्हें सतावर के प्रयोग से बचना चाहिए.
सतावर की पत्तियां स्वाभाव से ठंडी होती  हैं. इनको शाक के रूप में काम मात्रा में इस्तेमाल करने से नकसीर का खून बहना बंद हो जाता है.

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