मंगलवार, 19 नवंबर 2019

दुर्लभ बूटी नाग छतरी

नाग छतरी एक बूटी है जो पहाड़ो की ऊंचाइयों पर पैदा होती है. ये बूटी अब विलुप्त होने के कगार पर है क्योंकि इसे बहुत अधिक मात्रा में पहाड़ी चट्टानों से निकाला गया है. इसका साइंटिफिक नाम  trillium govanianum है. ये तीन पत्ती की बूटी है जिस पर गहरे लाल ब्राउन रंग का फूल खिलता है. अपनी अजीब शक्ल के कारण ये आसानी से पहचानी जा सकती है.
हिमालय में ये बूटी पायी जाती है और इसका भी जंगलों से अत्यधिक मात्रा में अवैध रूप से दोहन हुआ है. ये कैंसर रोधी है इसकी जड़ दवा के रूप में काम आती है. इस जड़ी बूटी में सूजन को घटाने के गुण हैं. ये जर्म्स  को नष्ट करती है. इसमें फफूंदीनाशक गुण भी है. कुल मिलकर ये ऐसे सभी रोगों में असरकारक है जिनमे सूजन, घाव, जर्म्स या फंगस का प्रकोप हो.
इसके अतिरिक्त इस जड़ी बूटी को पुरुषत्व की दवाई बनाने में भी प्रयोग किया जा रहा है. इसलिए इसकी मांग बढ़ती जा रही है.

चट्टानी बूटी ज़ख्म-ए-हयात

ज़ख्म-ए-हयात चट्टानों पर उगने वाली जड़ी बूटी है. हिमालय बहुत से दुर्लभ पौधों का घर है. पहाड़ो के दामन में चमत्कारी जड़ी बूटियां उगती हैं.  ज़ख्म-ए-हयात उनमें से एक है.
इसका साइंटिफिक नाम bergenia ciliata है. ये पौधा चट्टानों की दरारों में उगता है. इसमें गुलाबी और सफ़ेद फूल खिलते हैं. पहले दुर्लभ जड़ी बूटियां भी आसानी से मिल जाती थीं. लेकिन जबसे पैसे के लालच में जंगलो का दोहन शुरू हुआ जड़ी बूटियों और दुर्लभ पौधों पर संकट गहरा गया. इन पौधों के चोरी छुपे उखाड़ने से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि इनके लुप्त होने का खतरा भी पैदा हो गया है.
ज़ख्म-ए-हयात में फरवरी से अप्रैल तक फूल खिलते है. अपने गुलाबी सफ़ेद फूलों से ये पौधा आसानी से पहचाना जा सकता है. पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं. इसकी जड़ चट्टानों में गहरी जाती है. जड़ भी दवाई के काम में आती है. ज़ख्म-ए-हयात घावों को ठीक करती है इसका नाम ही घावों से जुड़ा है. इसके अलावा ये ठण्ड के असर, नज़ला ज़ुकाम और खांसी में भी फैयदेमन्द है. इसका स्वभाव गर्म है. पेट के रोगों में लाभ करती है.
ज़ख्म-ए-हयात एक गुणकारी बूटी है। 

शनिवार, 16 नवंबर 2019

सोने की चिड़िया और काली मिर्च

 कहा जाता है कि भारत कभी सोने की चिड़िया कहलाता था. यहाँ इतनी दौलत थी कि दूर दूर के देशों की निगाह भारत पर लगी रहती थी. भारत को सोने की चिड़िया बनाने में भारत के दक्षिण में उगने वाले मसालों का बड़ा योगदान था और इसमें काली मिर्च प्रमुख थी.


भारत काली मिर्च का घर था. काली मिर्च राज घरानो में प्रयोग की जाती थी. इसका मिलना आसान नहीं था. अरब व्यापारियों ने सबसे पहले समुद्र के रस्ते से भारत से मसालों का व्यापर करना शुरू किया.  योरुप के व्यापारी भारत के  समुद्री रास्ते से वाकिफ नहीं थे. भारत की खोज करते करते कोलम्बस ने 1492 में नयी दुनिया की खोज की जिसे आज अमरीका के नाम से जाना जाता है.
काली मिर्च और मसालों के वयापार ने योरुप को भारत की ओर आकर्षित किया क्योंकि इनके व्यापर में बहुत पैसा था. इतिहास में कभी काली मिर्च सोने के भाव भी बिकी है.


काली मिर्च का स्वाद तीखा होता है. इसका स्वाभाव गर्म और खुश्क है. ये सर्दी ज़ुकाम को दूर करती है. पेट के लिए फायदेमंद है और मेमोरी को बढाती है.
काली मिर्च कई प्रकार के पेट के कैंसर जैसे आंतो का कैंसर, कोलोन और रेक्टम के कैंसर से बचाती है. प्रोस्टेट कैंसर की लिए भी ये बचाव करती है.
जिन्हे कब्ज़ की शिकायत हो, जोड़ो में दर्द हो, वज़न बढ़ गया हो उनके लिए अमरुद  पर पिसी हुई काली मिर्च छिड़ककर खाने से लाभ होता है. ये प्रयोग नियमित 3 माह तक करना चाहिए.
काली मिर्च को केवल मसालों में ही नहीं बल्कि दवाओं के दुष्प्रभाव दूर करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है. ब्राह्मी का सुरक्षित प्रयोग काली मिर्च के साथ किया जाता है. ब्राह्मी का चूर्ण एक ग्राम सामान मात्रा में काली मिर्च और बादाम की गिरी का चूर्ण मिलाकर दूध के साथ प्रयोग करने से मेमोरी बहुत बढ़ जाती है. इस तरह इस्तेमाल करने से ब्राह्मी का ठंडापन निकल जाता है और उसका पूरा लाभ मिलता है. 
इसी प्रकार बुखार की आयुर्वेदिक दवा में भी तुलसी के पत्ते काली मिर्च के साथ पीसकर सेवन करने से लाभ मिलता है. 


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