रविवार, 26 मई 2019

जंगल जलेबी

जंगल जलेबी एक बड़ा और कांटेदार वृक्ष है. सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इस पौधे के इनवेसिव पौधों की श्रेणी में रखा गया है. ये खुद-ब - खुद बीजो की सहायता से उग आता है और दूर दूर तक जंगल जलेबी का जंगल फैल जाता है.
इसकी लकड़ी का रेशा ऐंठा हुआ होता है. इसलिए इसके पेड़ सीधे नहीं होते. टेढ़े, तिरछे होते हैं. इसका तना भी ऊबड़ खाबड़ होता है. ये सूखी जलवायु को आराम से झेल लेता है. रेगिस्तानों और कम पानी वाली ज़मीनो में आराम से लग जाता है.
इसकी फलियां लम्बी लेकिन चक्रदार होती हैं. इसी लिए इसे जंगल जलेबी कहते हैं. जलेबी का आकार और मीठी होने की वजह से इसे ये नाम मिला हैं. कुछ लोग इसे मीठी इमली भी कहते हैं. इसकी फलियां पककर लाल हो जाती हैं  अंदर का गूदा फलियां फट जाने से बाहर दिखने लगता है. इस गूदे में काले काले बीज होते है. इन बीजों का आवरण चिकना और मज़बूत होता है. शुष्क ज़मीनो में ये कई साल तक पड़े रह सकते हैं. और आवश्यक नमी मिलने पर नए पौधे उग आते हैं.
जंगल जलेबी का स्वाभाव ठंडा और तर है. ये पेट के ढीलेपन को दूर करती है. पेचिश और दस्तों के मरीज़ों के लिए फायदेमंद है.
जंगल जलेबी के पेड़ की छल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है. इसकी छल का पाउडर सुबह शाम तीन से पांच ग्राम की मात्रा में पानी के साथ इस्तेमाल करने से पुराने दस्त रुक जाते हैं.
जंगल जलेबी की दातुन करने से दांत मज़बूत होते हैं और उनसे खून आना बंद हो जाता है. 

शनिवार, 4 मई 2019

बोया पेड़ बबूल का

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाओगे. ये एक कहावत है जिसका मतलब है कि बुराई करोगे तो बुराई ही मिलेगी. लेकिन जड़ी बूटी विज्ञानं में बबूल का अपना बड़ा महत्त्व है. ये एक कांटेदार पेड़ है. इसकी कई जातियां है. बबूल का पेड़ बारीक पत्तियों वाला और कांटे दर होता है. इसमें बहुत कांटे होते हैं. इसलिए  खेतो और बागो की बाढ़ों पर लगाया जाता है.
ये शुष्क और रेगिस्तानी इलाकों का पेड़ हैं. इसे आम तौर से गोंद के लिए जाना जाता है. जंगलों से इसका गोंद इकठ्ठा किया जाता है. जो टेढ़ी मेढ़ी डलियो / टुकड़ो में होता है. इसका रंग सफ़ेद, हल्का पीला और डार्क ब्राउन भी होता है. ये गोंद चिपकाने के काम में आता हैं. अब स्टेशनरी के लिए बहुत से एडहेसिव का चलन होने की वजह से बबूल का गोंद चिपकाने के काम में काम इस्तेमाल होता है.
बबूल के  गोंद का दूसरा बड़ा प्रयोग दवाई के रूप में और घरेलू डिश में खाने के काम में होता है. ये स्वाभाव से शुष्क और गर्म होता है. इसलिए  इसका प्रयोग सर्दी के दिनों में घी में भूनकर किया जाता है. घी में भूनने से ये फूल जाता है. तब इसे पीस लिया जाता है और दवाओं या फिर घरेलू डिश जैसे हलवे आदि में मिलाया जाता है. ये जोड़ो के दर्दो को दूर करता है. जोड़ो को शक्ति देता है. प्रसव के बाद बबूल के  गोंद का हलवा खिलने से प्रसूता को बहुत सी बीमारियों से लाभ मिलता है.
बबूल की कच्ची फली जिसमे अभी बीज पका  न हो सुखाकर पाउडर बना लिया जाता है. इन फलियों का पाउडर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में सामान मात्रा में कच्ची शकर से साथ सुबह शाम इस्तेमाल करने से स्त्रियों के श्वेत प्रदर में विशेष लाभकारी है. पुरुषों के लिए स्तम्भनकारी है.
बबूल की कच्ची फलियां जिनका बीज अभी पका न हो, सुखाकर रख ली जाती हैं. यही फलियां दवा में काम आती हैं. ये दवा की दुकान और पंसारी की दुकान से भी मिल सकती हैं (जिन दुकानों पर देसी दवाएं बिकती हैं. ) सूखी फलियों का पाउडर बनाकर शकर या मिश्री के साथ सुबह शाम तीन से पांच ग्राम की मात्रा में पानी या दूध के साथ इस्तेमाल करने से जोड़ों के दर्द में बहुत लाभ मिलता हैं. ये न केवल सूजन घटती हैं, कैल्सियम बढाती हैं, हड्डियों में लचक पैदा करती है और जोड़ मज़बूत होते हैं.
किसी भी देसी जड़ी बूटी  के इस्तेमाल में जो रहस्य है उसका जानना ज़रूरी है. दवा के रूप में बबूल की वही फली प्रयोग होगी जिसका बीज कच्चा हो. बीज पड़ने के बाद पहली का छिलका मोटा हो जाता है. और बीज पक्का होकर फली फट जाती है और बीज बिखर जाते हैं. ये पके बीज और पका छिलका दवाई के काम का नहीं है.
बबूल की दातून करने से दांतो की बीमारियां दूर होती हैं. दांतो से खून आना बंद हो जाता है. यही काम बबूल की पत्तियां और छाल भी करती हैं. बबूल की छाल का नित्य प्रयोग करने से दांत मज़बूत हो जाते हैं.
कांटो को शूल कहा जाता है. बबूल के शूल पेट शूल के लिए लाभदायक हैं. जो लोग पेट शूल यानि पेट दर्द की समस्या से ग्रस्त हैं. वे बीस ग्राम बबूल के कांटे और बीस ग्राम काला  नमक एक लीटर पानी में भिगो दें फिर उस पानी को हलकी आंच पर इतना पकाएं की पानी आधा रह जाए. इस पानी को ठंडा करके बोतल में रख लें. खाने के बाद दोनों समय इस पानी को दो चमच की मात्रा में इस्तेमाल करने से पेट शूल के पुराने मर्ज़ से निजात मिल जाती है. 

शनिवार, 30 मार्च 2019

गूलर एक चमत्कारी वृक्ष है




 गूलर या गूलड़ एक बड़ा वृक्ष है. इसके पत्तों पर गुमड़ियां या गोल गोल से उभार होते हैं. इसके फल पककर लाल रंग के होजाते हैं. इन फलों में विशेष प्रकार के उड़ने वाले भुनगे पाए जाते हैं. इसका साइंटिफिक नेम फिक्स रेसिमोसा है. और इसकी एक वैराइटी फिक्स ग्लोमेराटा है. इसे उदम्बर भी  कहते हैं.
गूलर के फल उसके तने और मोटी शाखाओं में लगते हैं. इनकी शकल अंजीर से मिलती जुलती होती है. इसलिए इसे क्लस्टर फिग या गुच्छे वाला अंजीर भी कहते हैं.
इसकी पत्तियां जानवरों विशेषकर बकरियों के लिए चारे का काम देती हैं. गूलर का धार्मिक महत्त्व भी है.
गूलर के पक्के फलों की विशेष महक होती है. स्वाभाव से ये एक ठंडा वृक्ष है. इसकी छाल, फल और पत्तियां सभी में ठंडा और तर गुण है. गर्मी में जिनकी नकसीर फूटती हो, नाक से खून बहता हो उनके लिए इसके पक्के फलो का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद है.
इसकी पत्तियां दस्तों में लाभ करती हैं. इनको पीसकर थोड़े पानी में मिलकर पीने से दस्तों की  बीमारी में लाभ मिलता हैं.
गूलर के पक्के फलों का शरबत पीने से हाई ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. मीठा होने के वजह से ये डाईबेटिस के मरीज़ों को नुकसान करता है. ऐसे मरीज़ कच्चे गूलर की  सब्ज़ी बनाकर खा सकते हैं. 

गूलर के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं. 

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