मंगलवार, 11 सितंबर 2018

अनन्नास का किसान और शराब

एक किसान  अनन्नास की खेती करता  था. वह बहुत मेहनत करता. अनन्नास के पौधों की देखभाल करता, उनपर कीड़ेमार दवाई छिड़कता. चार अनन्नास का जूस रोज़ पीता और खुश रहता.
धीरे धीरे उसकी तबियत बिगड़ने लगी. डाक्टरों ने कहा तुम्हारा जिगर यानि लिवर ख़राब है. उसने बड़े अस्पताल में अच्छे डाक्टर से जो लिवर का स्पेशलिस्ट था दिखाया, डाक्टर ने बहुत सरे  टेस्ट कराए. डाक्टरों ने कहा तुम्हें लिवर सिरोसिस है तुम पुराने शराबी हो. शराब का सेवन बंद कर दो नहीं तो ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ेंगे.
किसान ने कहा मैंने कभी शराब का सेवन नहीं किया है. मैं केवल अपने खेत के ताज़े अनन्नास का जूस रोज़ाना पीता हूं।  डाक्टर को विशवास नहीं हुआ. उसने एक और टेस्ट लिखा जिससे किसान की बात की सच्चाई पता चले.
टेस्ट पॉज़िटिव आया और पुष्टि हो गयी की ये पुराना  शराबी है.  और बात को झुठला रहा है.
डाक्टर ने उसकी रिपोर्ट सामने रखी और उसकी  पत्नी और बच्चों को बुलाकर पूछा - सच सच बताओ ये शराब पीते हैं या नहीं. ये इनकी ज़िंदगी का सवाल है.
उसकी पत्नी और बच्चों ने भी इंकार किया।
डाक्टर चक्कर में पड़  गया.
किसी दवा का इस्तेमाल तो नहीं करते. डाक्टर ने पूछा.
हां - पत्नी ने कहा ये आयुर्वेदिक दवा दशमूलारिष्ट का सेवन करते हैं जिससे पेट ठीक रहे.
पत्नी ने कहा पहले इनका पेट ठीक रहता था. कुछ दिन से गैस की समस्या हो गयी. ये अनन्नास का जूस पीते थे. गैस बनती थी तो दशमूलारिष्ट पीते थे.
लेकिन दशमूलारिष्ट तो सुरक्षित दवा है. बरसो से लोग इसका सेवन कर रहे हैं. डाक्टर ने कहा.
जब और गहन जांच की गयी तो पता चला कि अनन्नास पर छिड़के पेस्टीसाइड ने उसकी सेहत को बिगाड़ा. इसीसे पेट ख़राब हुआ. दशमूलारिष्ट जैसी दवाओं में अल्कोहोल की मात्रा होती है लेकिन उस मात्रा की कोई माप या डिग्री नहीं है. ये अनकंट्रोल्ड अल्कोहोल वाली दवाई है. किसान लम्बे समय से बिना जाने अल्कोहोल का सेवन कर रहा था जिसने लिवर को डैमेज कर दिया.
सभी दवाएं सुरक्षित नहीं होतीं. और न सबको सूट करती हैं. 


डूबते सूरज का रंग

डूबते सूरज का रंग बाजार की भाषा में सनसेट यलो एफ सी एफ कहलाता है. ये रंग भी टार से बनता है. इसे भी खाने और दवाओं में प्रयोग किया जाता है. इसे E-110 और  FD&C YELLOW 6 भी कहते हैं.

ये रंग खाने को संतरे जैसा रंग देता है. चिकन से बने खाने, चिकन कोरमा, चिकन फ्राई, चिकन रोस्टेड को इसी रंग में खूब लपेटा जाता है जिससे रंग सुन्दर दिखाई दे. पनीर के पकवान जैसे शाही पनीर, पनीर कढ़ाई, पनीर हांड़ी, पालक पनीर में भी खूब मिलाया जाता है.
इसके अलावा नमकीन, स्नैक्स, बिस्किट, और उनमे लगाने वाली क्रीम में भी यही रंग बहुतायत से पाया जाता है. इसी रंग को लाल रंग के साथ मिलकर ब्राउन रंग बनाया जाता है जो चॉकलेट और केक में प्रयोग होता है. सॉफ्ट ड्रिंक और फलों के जूस का भी ये अच्छा रंग है.
टॉनिक, पेट की दवाएं जैसे जेल और टेबलेट में भी ये मिलाया जाता है.
मानक के अनुसार ये रंग खाने की चीज़ों में एक किलो  में 4 मिलीग्राम तक  मिलाया जा सकता है. लेकिन हमारे देश में ये 100 - 200 गुना तक मिला दिया जाता है और इससे फ़ूड पॉइज़निंग होने का खतरा रहता है क्योकि ये इतनी मात्रा में पेट में पहुँचता है जो निर्धारित मानक से कहीं ज़्यादा होती है.
घरों में खाने की चीज़ो में मिलते समय ये नहीं देखा जाता की इसकी मात्रा कितनी है. अधिक से अधिक मात्रा का प्रयोग घरेलु महिलाओं द्वारा, हलवाइयों द्वारा मिठाइयों में किया जाता है.
ये रंग भी एलर्जी पैदा कर सकता है और ये भी कहा जाता है की इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो कैंसर को जन्म दे.
इसलिए घबराने की कोई बात नहीं लेकिन आप वह चीज़ें क्यों खा रहे हैं जो खाने की नहीं हैं ?  

एक जंग कलर के खिलाफ

 खाने में आपको कुछ भी खिलाया और पिलाया जा रहा है. क्या आपने कभी सोचा है की इस मल्टी-नैशनल बाजार में तरह तरह की खाने की चीज़े परोसी जा रही हैं. पीले कलर के ऐसे कोल्ड ड्रिंक हैं जो आम जैसे फलों के जूस के नाम पर बेचे जा रहे हैं. इनको पीने से दांत तक पीले पड़  जाते हैं.

पीले फ़ूड कलर में कई तरह के रंग प्रयोग होते हैं. इनमें मुख्य रंग है टार्टराजिन  ये खिलता हुआ पीला कलर नीबू जैसा  है और टार से बनता है. इसे E - 102 से भी जाना जाता है. इसे एफ डी एंड सी यलो नंबर 5 भी कहते हैं. 
 ये रंग सॉफ्ट ड्रिंक, कोल्ड ड्रिंक, फलों के जूस, आइस क्रीम, कैंडी, पॉप कॉर्न, आलू के चिप्स, नमकीन, नूडल्स, ब्रेड, आदि और बहुत सी ऐसी चीज़ों में मिलाया जाता है जिसका आपको पता भी नहीं चलता.
खाने के आलावा लगाने की चीज़ों में जैसे साबुन, क्रीम, शैम्पू, हेयर ऑइल, दवाओं की टेबलेट, पीने की दवाएं, लगाने की दवाएं भी इस रंग से युक्त होती हैं.
ये रंग एलर्जी पैदा करता है. दमे के रोगियों को नुकसान करता है. इसके प्रयोग से बच्चो में हाइपर होने की सम्भावना बढ़ जाती है.
दुनिया में फ़ूड कलर के रूप में सबसे ज़्यादा यही रंग प्रयोग किया जाता है. कुछ चीज़ों में ये इतनी काम मात्रा में मिला होता है जिसे रंग का पता भी नहीं चलता. इसकी मात्रा 7. 5 मिलीग्राम एक किलो में ली जा सकती है. कहा जाता है की कैंसर का कारण यही रंग है लेकिन साइंटिस्ट इसे  नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार ऐसा कुछ नहीं पाया गया. उनका कहना है की ये एक निष्क्रिय पदार्थ है और अन्य पदार्थो से क्रिया नहीं करता.

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