गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

जटामांसी

जटामांसी को बालछड़  भी कहते हैं. इस जड़ी बूटी का प्रयोग पुराने ज़माने से आयुर्वेद  और यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता है. इसका पौधा हिमालय के पहाड़ों में पैदा होता है. इसकी जड़ को दवा के रूप में प्रयोग करते हैं. इसकी जड़ के बारीक रेशे बालों के समान होते हैं. इसीलिए इसे बाल - छड़ या बालों की छड़ी और जटामांसी यानि मनुष्य के बाल कहते हैं.

ये अपनी आकृति के अनुरूप बालों को बढ़ाने   वाली, उन्हें कला, घना और मुलायम रखने वाली जड़ी बूटी है. इसकी जड़ का प्रयोग पाउडर के रूप में बालों को धोने, और शैम्पू के अव्यव के रूप में होता हैं. इसका तेल बालों को घना बनाता  है.
ये दिमाग को शक्ति देती है. उलझन, घबराहट, उदासी दूर करती है. इसका इस्तेमाल एपिलेप्सी या मिर्गी के रोग में किया जाता है.
बालछड़ को यूनानी हकीम पेशाबआवर यानि डाययुरेटिक और दर्द निवारक दवा के रूप में प्रयोग करते हैं. हकीमों के अनुसार ये जिगर यानि लिवर को ताकत देती है. पेट की बीमारीयों में लाभकारी है. यूनानी दवाओं में बालछड़ पेट की बीमारियों की दवाओं का एक आवशयक अव्यव है.
बालछड़ लिवर को शक्ति देता है. ये पीलिया रोग और लिवर के बढ़ जाने में इस्तेमाल किया जाता है.
बालछड़ चेहरे के दाग धब्बे मिटाता है. इसके लिए बालछड़ को बारीक पीसकर उसका पाउडर और सफ़ेद चन्दन का बुरादा समान मात्रा में  दूध में मिलाकर, पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाया जाता है और जब ये लेप सूखा जाए तो पानी से धोकर साफ कर दिया जाता है. कुछ दिन में चेहरे के दाग धब्बे मिट जाते हैं.


  

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

हल्दी

हल्दी या टर्मरिक एक साल भर में पैदा होने वाली फसल है. इसका प्रयोग बहुतायत से मसालों में किया जाता है. इसका रंग खिलता हुआ पीला होता है. हल्दी को राइज़ोम से उगाया जाता है. यह राइज़ोम मार्च के महीने से मई तक लगा दिए जाते हैं. बारिश के पानी से इनसे हल्दी के पौधे निकलते हैं. ये बारिश में बढ़ने वाली फसल है. बरसात में यह खूब बढ़ती है. इसकी जड़ों पर मिटटी चढ़ा दी जाती है. उसमें ही हल्दी के ट्यूबर  या राइज़ोम पैदा होते हैं.

हल्दी छायादार जगह में भी आसानी से उग आती है और बढ़ती है. अक्टूबर- नवम्बर में इसके पौधे सूख जाते हैं. फरवरी से मार्च तक इसकी खुदाई करके फसल निकली  जाती है. कच्ची हल्दी को मार्केट में लाने से पहले इसे उबालकर सुखा लिया जाता है.
हल्दी चाहे कच्ची हो या बाजार में मिलने वाली सुखी हल्दी ये एक गुणकारी मसाला ही नहीं एक बहुत गुणकारी दवा भी है. हल्दी चोट में लाभ करती है. इसमें शरीर के दर्दों को दूर करने की शक्ति है. चोट के स्थान पर हल्दी के साथ चुना मिलकर, दोनों का पेस्ट बनाकर, थोड़ा गर्म करके चोट के स्थान पर लेप करने से आराम मिलता है. एक गिलास दूध के साथ हल्दी के एक चमच पाउडर का प्रयोग जोड़ों के दर्द और चोट, मोच के दर्द में लाभ्कारी है.
हल्दी के पाउडर को सामान मात्रा में दूध की मलाई में अच्छी तरह मिलकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाने से चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं और चेहरा चमक जाता है.
हल्दी को मोटा मोटा कूट कर थोड़े पानी और सामान मात्रा में अल्कोहल मिलाकर रख देते हैं. तीन दिन बाद  इस मिश्रण को  फ़िल्टर कर लेते हैं. ये चोट और घाव के लिए अच्छा लोशन बन जाता है. हल्दी कैंसर रोग में भी लाभदायक है. हल्दी में पाये जाने वाले तत्व कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. ऐसे रोगी जो अभी कैंसर की पहली, दूसरी अवस्था में हों उन्हें शुद्ध हल्दी के पाउडर का प्रयोग एक से तीन ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में चार बार पीने से लाभ मिलता है.
लेकिन ये ज़रूरी है की ऐसे मामले में हल्दी का पाउडर वह हो जो खुद बाजार में मिलने वाली हल्दी की गांठों को धोकर सूखा कर, और फिर ग्राइंड करके बनाया जाए, क्योंकि बाजार में मिलने वाली पिसी  हल्दी में अशुद्धियाँ होती हैं, मिलावट के अलावा इसमें लापरवाई से पीसने पर धनिया  और मिर्च  मिल जाती है. या फिर हल्दी में रंग मिला दिया जाता है. ऐसे हल्दी सिवाए नुकसान के और कुछ नहीं करती.  
 

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

काहू के चमत्कारी फायदे

काहू के  नाम से इस पौधे को केवल हकीम, या वो लोग जानते जो इसकी खेती और व्यापार करते हैं. इसका प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है. मार्केट में ये आसानी से मिल जाता है. अंग्रेजी भाषा में इसे लेटिस कहते हैं. ये एक सीजनल पौधा है. सितम्बर अक्टूबर में इसका बीज बोया जाता है. जाड़ों के महीनो में इसके पत्तों को सलाद की तरह इस्तेमाल किया जाता है.

इसके पत्ते हरे, झुर्रियों और टेढ़ी मेढ़ी सतह के होते हैं. देखने में ये बहुत खूबसूरत लगता है. उतना ही ये गुणकारी है. कहु उत्तेजना को शांत करता है और गहरी नींद लाता है. आज के युग में बहुत से बीमारियां उत्तेजना और नींद न आने के कारण हो रही हैं. आज के रोगों की ये बड़ी औषधि है.
इसमें डायूरेटिक यानी मूत्र प्रवाह बढ़ाने के शक्ति है. अपने इस गन के कारण ये गुर्दों को साफ करता है और उनके विषैले पदार्थ या टाक्सिन बाहर निकलता है. ये यूरिक एसिड के समस्या से निजात दिलाता है.
इसके पत्तों में मौजूद डाइटरी फाइबर या खाद्य रेशे आँतों की सफाई करते हैं. यहाँ भी ये टॉक्सिन यानि विषैले पदार्थ बहार निकलने का काम करता है. इसमें मौजूद रसायन आंतों को कैंसर जैसे रोग से बचने में सहायता करते हैं.

हकीम काहू के बीजों के तेल या रोगन काहू को नींद न आने के समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए इस्तेमाल करते थे. ये सदियों से यूनानी और देसी इलाज के पद्धति में  प्रयोग किया जा रहा है.
काहू के पौधे सलाद के लिए लगाए जाते हैं इसलिए ये पत्तों का गुच्छा बड़ा होते ही काट लिए जाते हैं. कहु के पौधे के तने से अगर रस निकला जाए तो ये रस सूख कर कला पड़  जाता है और गाढ़ा हो जाता है. इस रस  का प्रयोग भी नींदलाने  की दवाओं में हकीमों द्वारा किया जाता था.
काहू के पत्ते चूँकि झुर्रियोंदार होते हैं इसलिए इसमें तरह तरह के जर्म्स आसानी से पल जाते हैं. इसमें फंगस भी लग जाता है. इसके पत्तों को सलाद के रूप में इस्तेमाल करने से कभी कभी डायरिया, पेचिश या पेट के अन्य रोग हो जाते हैं. इसके पत्तों को खूब अच्छी तरह धोकर इस्तेमाल करना चाहिए.

Popular Posts

महल कंघी Actiniopteris Radiata

महल कंघी एक ऐसा पौधा है जो ऊंची दीवारों, चट्टानों की दरारों में उगता है.  ये छोटा सा गुच्छेदार पौधा एक प्रकार का फर्न है. इसकी ऊंचाई 5 से 10...