शीशम को अधिकतर लकड़ी प्राप्त करने के लिए लगाया जाता है. इसकी लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर और इमारती लकड़ी के रूप में होता है. इसकी बढ़वार धीरे धीरे होती है. लगाने के लगभग 20 वर्ष के बाद शीशम का पेड़ लकड़ी प्राप्त करने के लिए तैयार होता है. और अधिक पुराने शीशम के वृक्षों से बहुत अच्छी और पक्की लकड़ी प्राप्त होती है.
वृक्ष पुराना होने पर इसकी लकड़ी अंदर से भूरी / डार्क ब्राउन/ काली पड़ जाती है. इसे ही पक्के शीशम की लकड़ी कहते हैं. मार्केट में शीशम की पक्की लकड़ी ऊँचे दामों बिकती है. शीशम की लकड़ी साधारण लकड़ी के रंग की हो या डार्क ब्राउन दोनों में दुसरे पेड़ों की लकड़ियों की मिलावट की जाती है और ग्राहक को नकली लकड़ी शीशम के नाम पर बेच दी जाती है.
ये ऐसा वृक्ष है जिसका बड़ा व्यापारिक महत्त्व है. इसके पत्ते गोल गोल पान के आकर के लम्बी नोक वाले होते हैं. सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इसका वृक्ष आसानी से पहचाना जा सकता है. इसमें लम्बी लम्बी फलियां लगती हैं जिनमें बीज होते हैं. इसके पत्तों का आकर भी छोटा, लगभग रूपये के सिक्के के बराबर होता है. फलियां भी ज़्यादा लम्बी नहीं होतीं. ये भी आधा इंच चौड़ी और तीन से चार इंच लम्बी होती हैं. फलियों का रंग लाइट ग्रीन होता है. ये गुच्छों में लगती हैं.
शीशम को टाली और टाहली भी कहते हैं. ये शब्द पंजाब से सम्बंध रखता है. सीसो, सासम, सीसम के नाम भी प्रचलित हैं. शीशम का स्वाभाव ठंडा है. इसलिए ये गर्मी से आयी सूजन घटाने में कारगर है. अपने ठन्डे स्वाभाव के कारण ये पेट की गर्मी और एसिडिटी को शांत करता है. इसके लिए इसके 10 से 20 ग्राम पत्तों को थोड़ा कुचलकर एक गिलास पानी में भिगो दें और 4 घंटे बाद छानकर थोड़ी सी मिश्री या शकर मिलाकर पीने से लाभ होता है.
शीशम लिकोरिया रोग में भी लाभकारी है. इसके लिए इसके पत्तों को ऊपर बताई गयी तरकीब से सुबह, शाम पीने से लाभ होता है.
शीशम अपने ठन्डे स्वाभव के कारण ब्लड की गर्मी को भी शांत करता है. इसलिए चर्म रोगों में भी प्रयोग किया जाता है. शीशम की लकड़ी का बुरादा पानी में भिगोकर शरबत बनाकर पीने से चर्म रोग, खुजली, एक्ज़िमा, यहां तक की कोढ़ रोग भी नष्ट हो जाता है. इसके लिए कम से कम तीन माह तक इसका इस्तेमाल ज़रूरी है. खाने में केवल बेसन के रोटी और सब्ज़ी के आलावा कुछ न खाया जाए. और इसका प्रयोग किसी काबिल हकीम या वैद्य की निगरानी में किया जाए. स्वयं उपचार नुकसान कर सकता है.
शीशम की दातुन दांतों को मज़बूत करती है. मुंह के दानों और छालों से रक्षा करती है. अगर मुंह में छाले हो जाएं तो शीशम की कच्ची फलियां कत्थे के साथ चबाने से फ़ायदा होता है. इन्हे पान की तरह चबाकर थूक दिया जाए.
अजीब बात है और वृक्षों की तरह शीशम का मौसम के हिसाब से पतझड़ नहीं होता. ये हमेशा हरा भरा रहता है. इसकी छाया भी घनी नहीं होती. ये बीज से आसानी से उग आता है. इसके लिए अधिक पानी के भी आवश्यकता नहीं है. कहते हैं शीशम लगाएं और भूल जाएं.
वृक्ष पुराना होने पर इसकी लकड़ी अंदर से भूरी / डार्क ब्राउन/ काली पड़ जाती है. इसे ही पक्के शीशम की लकड़ी कहते हैं. मार्केट में शीशम की पक्की लकड़ी ऊँचे दामों बिकती है. शीशम की लकड़ी साधारण लकड़ी के रंग की हो या डार्क ब्राउन दोनों में दुसरे पेड़ों की लकड़ियों की मिलावट की जाती है और ग्राहक को नकली लकड़ी शीशम के नाम पर बेच दी जाती है.
ये ऐसा वृक्ष है जिसका बड़ा व्यापारिक महत्त्व है. इसके पत्ते गोल गोल पान के आकर के लम्बी नोक वाले होते हैं. सड़कों के किनारे लगाया जाता है. इसका वृक्ष आसानी से पहचाना जा सकता है. इसमें लम्बी लम्बी फलियां लगती हैं जिनमें बीज होते हैं. इसके पत्तों का आकर भी छोटा, लगभग रूपये के सिक्के के बराबर होता है. फलियां भी ज़्यादा लम्बी नहीं होतीं. ये भी आधा इंच चौड़ी और तीन से चार इंच लम्बी होती हैं. फलियों का रंग लाइट ग्रीन होता है. ये गुच्छों में लगती हैं.
शीशम को टाली और टाहली भी कहते हैं. ये शब्द पंजाब से सम्बंध रखता है. सीसो, सासम, सीसम के नाम भी प्रचलित हैं. शीशम का स्वाभाव ठंडा है. इसलिए ये गर्मी से आयी सूजन घटाने में कारगर है. अपने ठन्डे स्वाभाव के कारण ये पेट की गर्मी और एसिडिटी को शांत करता है. इसके लिए इसके 10 से 20 ग्राम पत्तों को थोड़ा कुचलकर एक गिलास पानी में भिगो दें और 4 घंटे बाद छानकर थोड़ी सी मिश्री या शकर मिलाकर पीने से लाभ होता है.
शीशम लिकोरिया रोग में भी लाभकारी है. इसके लिए इसके पत्तों को ऊपर बताई गयी तरकीब से सुबह, शाम पीने से लाभ होता है.
शीशम अपने ठन्डे स्वाभव के कारण ब्लड की गर्मी को भी शांत करता है. इसलिए चर्म रोगों में भी प्रयोग किया जाता है. शीशम की लकड़ी का बुरादा पानी में भिगोकर शरबत बनाकर पीने से चर्म रोग, खुजली, एक्ज़िमा, यहां तक की कोढ़ रोग भी नष्ट हो जाता है. इसके लिए कम से कम तीन माह तक इसका इस्तेमाल ज़रूरी है. खाने में केवल बेसन के रोटी और सब्ज़ी के आलावा कुछ न खाया जाए. और इसका प्रयोग किसी काबिल हकीम या वैद्य की निगरानी में किया जाए. स्वयं उपचार नुकसान कर सकता है.
शीशम की दातुन दांतों को मज़बूत करती है. मुंह के दानों और छालों से रक्षा करती है. अगर मुंह में छाले हो जाएं तो शीशम की कच्ची फलियां कत्थे के साथ चबाने से फ़ायदा होता है. इन्हे पान की तरह चबाकर थूक दिया जाए.
अजीब बात है और वृक्षों की तरह शीशम का मौसम के हिसाब से पतझड़ नहीं होता. ये हमेशा हरा भरा रहता है. इसकी छाया भी घनी नहीं होती. ये बीज से आसानी से उग आता है. इसके लिए अधिक पानी के भी आवश्यकता नहीं है. कहते हैं शीशम लगाएं और भूल जाएं.