शनिवार, 2 दिसंबर 2017

बनकचरा

बनकचरा बरसात  दिनों में खेतों  और अन्य स्थानों में उगने वाला पौधा है. बनकचरे की बेल होती है. इसके पत्ते ख़रबूज़े के पत्तों से मिलते हुए होते  हैं. इसमें छोटे छोटे पीले रंग के फूल खिलते हैं. बनकचरे के फल दो से तीन इंच लम्बे बेलनाकार होते हैं. इनपर लम्बाई में धारियां पड़ी होती हैं.

कच्चा बनकचरा स्वाद में फीका होता है. पककर ये मीठा हो जाता है. कुछ बनकचरे खट्टे और कुछ कड़वे भी होते हैं. इसमें ख़रबूज़े से मिलती जुलती सुगंध आती है.

बनकचरा पेशाब-आवर यानि डाययुरेटिक है. इसके खाने से पेशाब खुलकर आता है और गुर्दों की सफाई हो जाती है. इसके बीज भी ख़रबूज़े के बीजों के समान लेकिन आकर में छोटे होते हैं. बीजों को थोड़ा कुचलकर काढ़ा बनाकर पीने से मूत्र रोगों में लाभ होता है.
बनकचरा खेतों में अतिरिक्त या फालतू पौधे के रूप में उगता है इसलिए इसे या तो जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है या फालतू जंगली फल समझ कर खाया जाता है इसके मेडिसिनल प्रभाव की तरफ कोई तवज्जो नहीं दी गयी.

रविवार, 7 मई 2017

बेल

बेल या बलागुंड, बिल्व फल एक सख्त छिलके वाला पहल है. इसका पौधा बड़ा होता है. इसके पौधे में बड़े बड़े कांटे होते हैं. अप्रैल मई में इसमें पतझड़ होकर नए पत्ते आते हैं और उसके साथ ही फूल भी आते हैं. इसका फल फरवरी मार्च में पकने लगता है.
इसके पत्तों का स्वाद कड़वा होता है. पत्तियों को थोड़ी मात्रा में पीसकर पानी में मिलकर पीने से डायबेटिस में लाभ होता है. शुगर को घटाने में ये प्रयोग मददगार साबित हुआ है.
बेल का फल पेट के लिए फायदेमंद है. ये डिसेंट्री को दूर करता है. इसका गूदा खाने में चिपचिपा होता है. इसका यही चिपचिपापन आँतों में जर्मस को लपेटकर शरीर के बाहर निकल देता है. बेल का मुरब्बा भी बनाया जाता है. इसे सुखाकर भी दवाओं में प्रयोग किया जाता है.
अपने रेचक स्वाभाव के कारण ये आंतो में जमे मल की निकलने और कब्ज़ को दूर करने में सहायक होता है. इसमें नेचुरल फाइबर पाया जाता है. ये नेचुरल फाइबर आँतों के सफाई करता है. गर्मी के मौसम में इसका प्रयोग बहुत सी पेट के बीमारियों से बचाता  है.
इसके स्वाद में कुदरती कड़वापन होता है. बीज एक गाढ़े चिपचिपे पदार्थ से लिपटे होते हैं. फल बेचने वाले कच्चे बेल को केमिकल के सहायता से पकाते हैं जिससे इसका कड़वापन और बढ़ जाता है और स्वाद अच्छा नहीं लगता.
इसका इस्तेमाल शरीर के अंदरूनी भागों से होने वाले खून के रिसाव को भी बंद करता है.

चौलाई

चौलाई  दो प्रकार की होती है. एक बिना काँटों की और दूसरी कांटेदार चौलाई. जंगली या खुद बी खुद उगने वाली चौलाई सब्ज़ी के रूप में प्रयोग की जाती है. खेतों में बोई जाने वाली चौलाई के पत्ते और पौधे जंगली चौलाई से बड़े होते हैं. इनके पत्तों का रंग ऊपर से हरा और नीचे लाल होता है. एक प्रकार की चौलाई जो बगीचों में सजावटी पौधों के रूप में लगाई जाती है, गहरे लाल या बैगनी रंग की होती है.
चौलाई के सभी वैराइटी खाई जा सकती हैं. लेकिन दो प्रकार की चौलाई ही आम तौर से खाई जाती है. बाजार में मिलने वाली खेतों में उगाई चौलाई और खुद उगने वाली जंगली चौलाई.

चौलाई के पत्तियों का शाक खाया जाता है. इसका मज़ा सीठा फीका होता है. कुछ लोगों को इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता. चौलाई खून साफ़ करती है. शरीर से विभिन्न प्रकार के विष और हानिकारक पदार्थों को निकल देती है. ये गुर्दों की सेल को री - जनरेट करती है. जिगर को विषैले पदार्थों से साफ़ करती है.
चौलाई डायूरेटिक या पेशाबआवर है. इसका इस्तेमाल स्किन को कांतिमय बनाता  है.
चौलाई खली पड़ी स्थानों और घास फूस के साथ अप्रैल- मई से लेकर अगस्त-सितम्बर तक पायी जाती है. बरसात में ये खूब फूलती फलती  है. बरसात के दिनों में ये गरीब लोगों का भोजन है. इसमें मिनरल्स और विटामिन की सूक्ष्म मात्रा है. ये किसी भी व्यक्ति या मरीज़ को नुकसान नहीं करती. इसका प्रयोग बिना किसी हिचकिचाहट के किया जा सकता है.  

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